भारतीय संविधान द्वारा देश के नागरिको को कुछ मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है। संविधान द्वारा देश के नागरिको के मौलिक अधिकारों की रक्षा को सुनिश्चित करने के लिए न्यायिक अधिकरणों को याचिका/रिट (Writ/ petition) जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी है। देश के न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा नागरिको के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करने के लिए याचिका शक्ति प्रयोग किया जाता है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको याचिका क्या है और कितने प्रकार की याचिका भारतीय संविधान में दी गयी है ? (Types of Writ in Hindi) सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले है। इस आर्टिकल के माध्यम से आपको याचिका (Writ) क्या है ? इसका महत्व क्या है एवं भारतीय संविधान में कितने प्रकार की रिट का वर्णन किया गया है सम्बंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान की जाएगी।
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विभिन प्रतियोगी परीक्षाओ की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए याचिका/रिट (Writ/ petition) के बारे में जानकारी प्राप्त होना आवश्यक है चूँकि विभिन परीक्षाओ में इस टॉपिक से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है। विधि छात्रों (Law student) एवं न्यायिक परीक्षाओ की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए यह आर्टिकल अत्यंत महत्वपूर्ण रहने वाला है।
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याचिका / रिट क्या है ?
भारत के संविधान के भाग-3 में देश के नागरिको को प्रदत मौलिक अधिकारों का वर्णन किया गया है। नागरिकों के मौलिक अधिकारों की रक्षा के लिए संविधान द्वारा देश के सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्यों के उच्च-न्यायालयों को याचिका / रिट की शक्ति प्रदान की गयी है। राज्य या किसी भी व्यक्ति, संस्था या अन्य, द्वारा नागरिकों के मौलिक अधिकारों का हनन होने पर न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा याचिका जारी की जाती है। याचिका / रिट न्यायायिक प्राधिकरणों (सर्वोच्च न्यायालय एवं राज्यों के उच्च-न्यायालयों) के द्वारा जारी लेख, निर्देश तथा आदेश होते है जिनके माध्यम से नागरिको के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाता है।
भारतीय संविधान द्वारा संवैधानिक उपचारो का अधिकार के तहत सर्वोच्च न्यायालय को अनुच्छेद 32 एवं उच्चतम न्यायालयों को अनुच्छेद 226 के तहत याचिका / रिट जारी करने की शक्ति प्रदान की गयी है। संवैधानिक उपचारो का अधिकार (अनुच्छेद 32) वास्तव में नागरिको के मूलभूत अधिकारों का रक्षक माना जाता है।
याचिका/रिट कितने प्रकार की होती है ?
भारतीय संविधान द्वारा देश के न्यायायिक प्राधिकरणों- उच्चतम न्यायालय एवं सभी राज्यों के उच्च-न्यायालयों को याचिका/रिट (Writ/ petition) की शक्ति प्रदान की गयी है। संविधान में 5 प्रकार की रिट का वर्णन किया गया है जो निम्नवत है :-
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
- परमादेश (Mandamus)
- उत्प्रेषण (Certiorari)
- निषेधाज्ञा (Prohibition)
- अधिकार पृच्छा (Quo warranto)
याचिका/रिट (Writ/ petition) की विस्तृत जानकारी
संविधान में वर्णित 5 प्रकार की याचिका/रिट (Writ/ petition) का विस्तृत विवरण इस प्रकार से है :-
1. बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
बन्दी प्रत्यक्षीकरण लैटिन भाषा के शब्द “Habeas Corpus” से व्युत्पन है जिसका अर्थ होता है की “शरीर पेश किया जाए”। न्यायिक अधिकरणों द्वारा बन्दी प्रत्यक्षीकरण उस स्थिति में जारी किया जाता है जब किसी व्यक्ति को हिरासत में रखा गया है। बन्दी प्रत्यक्षीकरण याचिका द्वारा न्यायालय हिरासत में रखे हुए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश करने का आदेश देती है एवं हिरासत में रखने के कारणों पर विचार करती है। यदि न्यायालय को लगता है की व्यक्ति की हिरासत विधिसम्मत नहीं है तो इस स्थिति में बंदी को तुरंत रिहा कर दिया जाता है।
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पुलिस द्वारा किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सम्मुख पेश करना आवश्यक होता है यदि पुलिस ऐसा नहीं करती तो सम्बंधित व्यक्ति के परिवार वाले, साथी या कोई भी अन्य व्यक्ति सम्बंधित व्यक्ति की तरफ से न्यायालय में बन्दी प्रत्यक्षीकरण रिट दायर कर सकता है। इस स्थिति में न्यायालय द्वारा व्यक्ति की गिरफ्तारी पर विचार किया जायेगा एवं विधिसम्मत ना होने पर सम्बंधित व्यक्ति को रिहा किया जाता है।
- बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus) रिट जारी की जा सकती है :-
- सार्वजनिक एवं निजी प्राधिकरणों दोनों के विरुद्ध
2. परमादेश (Mandamus)
Mandamus (परमादेश) लैटिन भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है ” हम आदेश देते है” . न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा परमादेश (Mandamus) याचिका का प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है जब कोई सार्वजनिक प्राधिकरण अपने कार्यो एवं दायित्वों का निर्वाह करने से इंकार करता है या अपने कार्यो के संपादन में विफल रहता है। परमादेश रिट के माध्यम से न्यायालय द्वारा सम्बंधित प्राधिकरण को अपने कर्तव्यों के निर्वहन का आदेश दिया जाता है।
- परमादेश (Mandamus) रिट जारी की जा सकती है :-
- सार्वजनिक प्राधिकरणों, संगठनो के विरुद्ध
- ट्रिब्यूनल एवं निचली अदालत
- परमादेश (Mandamus) रिट निजी प्राधिकरणों एवं व्यक्तियों (private individual) के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।
3. उत्प्रेषण (Certiorari)
उत्प्रेषण (Certiorari) लैटिन भाषा के शब्द Certiorari से बना है जिसका अर्थ होता है ‘सूचित करने के लिए’ . उत्प्रेषण (Certiorari) रिट को न्यायिक प्राधिकरणों द्वारा निचले न्यायालयों एवं ट्रिब्यूनल को जारी किया जाता है जिसके अंतर्गत न्यायालय द्वारा निचले अदालतों एवं ट्रिब्यूनल को आदेश दिया जाता है की वे किसी विशेष मामले को रिट जारी करने वाले न्यायालय (सुप्रीम-कोर्ट या हाईकोर्ट) में ट्रांसफर करें या मामले से सम्बंधित किसी आदेश या निर्णय को निरस्त करें। यह रिट आमतौर पर तब जारी की जाती है जब न्यायालय को लगता है की सम्बंधित न्यायिक प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल द्वारा अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर के मामले पर निर्णय दिया गया है।
- उत्प्रेषण (Certiorari) रिट जारी की जा सकती है :-
- न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों के विरुद्ध
- उत्प्रेषण (Certiorari) रिट निजी व्यक्तियों, प्रशासनिक एवं विधायी प्रधिकरणो के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।
4. निषेधाज्ञा (Prohibition)
निषेधाज्ञा (Prohibition) लैटिन भाषा के Prohibition शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है “मना करना या बंद करना” . निषेधाज्ञा (Prohibition) रिट किसी वरिष्ठ न्यायालय (आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट या हाई-कोर्ट) द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायिक निकाय को जारी की जाती है, जब सम्बंधित न्यायालय को लगता है की अधीनस्थ न्यायालय द्वारा अपनी अधिकारिकता क्षेत्र से बाहर जाकर किसी विशेष मामले की सुनवाही की गयी है। इसका अर्थ न्यायायिक प्राधिकरणों के अधिकार क्षेत्र को तय करना है।
- निषेधाज्ञा (Prohibition) रिट जारी की जा सकती है :-
- अधीनस्थ न्यायिक एवं अर्ध-न्यायिक प्राधिकरणों के विरुद्ध
- निषेधाज्ञा (Prohibition) रिट निजी व्यक्तियों, प्रशासनिक एवं विधायी प्रधिकरणो के विरुद्ध जारी नहीं की जा सकती है।
5. अधिकार पृच्छा (Quo warranto)
अधिकार पृच्छा लैटिन भाषा के Quo warranto शब्द से व्युत्पन है जिसका अर्थ है “किस अधिकार से” . न्यायालय द्वारा अधिकार पृच्छा रिट को उस स्थिति में जारी किया जाता है जब न्यायालय को लगता है की कोई व्यक्ति अवैधानिक रूप से किसी सार्वजानिक पद पर आसीन है। इस रिट के माध्यम से न्यायालय द्वारा सम्बंधित व्यक्ति से पूछा जाता है की वह किस अधिकार के तहत सम्बंधित सार्वजनिक पद पर कार्य कर रहा है।
- अधिकार पृच्छा (Quo warranto) रिट जारी की जा सकती है :-
- सार्वजनिक पद पर आसीन व्यक्तियों के विरुद्ध
- अधिकार पृच्छा (Quo warranto) निजी व्यक्तियों के विरुद्ध जारी नहीं की जाती है।
इस प्रकार से यहाँ आपको याचिका/रिट (Writ/ petition) (Types of Writ in Hindi) सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं की जानकारी प्रदान की गयी है।
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याचिका/रिट (Writ/ petition) सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
याचिका / रिट न्यायिक अधिकरणों (सुप्रीम -कोर्ट एवं हाईकोर्ट) द्वारा जारी किए जाने वाले लेख, निर्देश तथा आदेश होते है जिनके माध्यम से नागरिको के मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित किया जाता है।
याचिका/रिट 5 प्रकार की होती है जिनका वर्णन निम्न है :-
बन्दी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
परमादेश (Mandamus)
उत्प्रेषण (Certiorari)
निषेधाज्ञा (Prohibition)
अधिकार पृच्छा (Quo warranto)
संविधान में वर्णित सभी याचिका/रिट (Writ/ petition) की विस्तृत जानकारी के लिए ऊपर दिया गया आर्टिकल पढ़े। यहाँ आपको याचिका/रिट (Writ/ petition) सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है।
सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 32 अर्थात “संवैधानिक उपचारो का अधिकार” के अंतर्गत याचिका/रिट (Writ/ petition) जारी करने का अधिकार दिया गया है।
संविधान के अनुच्छेद-226 के तहत उच्च-न्यायालय को याचिका/रिट (Writ/ petition) जारी करने का अधिकार दिया गया है।