भारत की स्वतंत्रता के पश्चात देश के संविधान निर्माताओं के द्वारा देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना के लिए राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। देश के नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय प्रदान करने के लिए संविधान में नीति निर्देशक तत्वों का समावेश किया गया है। भारत की लोकतांत्रिक व्यवस्था में राज्य के नीति निर्देशक तत्व आधारभूत नीति निर्धारक तत्व के रूप में कार्य करते है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको संविधान में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy) सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करने वाले है। संघ लोक सेवा आयोग (UPSC), राज्य लोक-सेवा आयोग, ग्रुप-C परीक्षाओं, स्नातक स्तरीय परीक्षाओं, रेलवे एवं अन्य एकदिवसीय प्रतियोगी परीक्षाओ में राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Rajya Ke Niti Nirdeshak Tatva) टॉपिक से सम्बंधित प्रश्न पूछे जाते है ऐसे में यह टॉपिक सभी अभ्यर्थियों के लिए महत्वपूर्ण है। साथ ही राजनीति विज्ञान के छात्रों के लिए भी यह टॉपिक महत्वपूर्ण रहने वाला है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व क्या है ?
भारत की आजादी के पश्चात देश के संविधान निर्माताओं के द्वारा देश के सभी नागरिकों को प्रदत संविधान के भाग-3 में मौलिक अधिकारों का विस्तृत वर्णन किया गया है। हालांकि देश के संविधान निर्माताओं को दृढ-विश्वास था की मौलिक अधिकारों के द्वारा राजनीतिक लोकतंत्र की आधारशिला सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना के आधार पर ही रखी जा सकती है। यही कारण रहा की संविधान निर्माताओं के द्वारा संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) को समाहित किया गया। राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP) देश की नीति-निर्माण का आधार तत्त्व है जिसके आधार पर देश में विभिन नीतियों का निर्माण किया जाता है।
वास्तविक रूप से नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) का मुख्य उद्देश्य सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना करके देश में सभी नागरिको को सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक न्याय सुनिश्चित कर देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy) देश की नीति-निर्माण में मूलभूत तत्त्व होते है जो की संविधान की प्रस्तावना में वर्णित आदर्शो की पूर्ति के लिए दीपस्तंभ (light-house) की भांति कार्य करते है। राज्य के नीति निर्देशक तत्व देश के प्रशासकों के लिए आचार-संहिता की भांति कार्य करके जनकल्याणकारी योजनाओं का आधार बिंदु होते है। DPSP संविधान द्वारा देश के प्रशासकों के लिए निर्देश होते है की वे इस प्रकार से नीतियाँ बनायें जिससे की अधिकतम जनकल्याण सुनिश्चित किया जा सके। DPSP का मूलाभाव देश में कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की स्थिति
भारतीय संविधान में कल्याणकारी राज्य की स्थापना की पूर्ति के लिए सरकार को नीति-निर्देशों तत्वों को ध्यान में रखना आवश्यक होता है। वास्तव में ये निर्देश जनता के प्रति सरकार के दायित्वों के घोतक के रूप में प्रयुक्त किए जाते है। भारतीय संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP), आयरलैंड के संविधान से गृहीत किए गए है। भारत के संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) का वर्णन किया गया है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) को उद्देश्य, वैचारिक सिद्धांत एवं प्रकार्यो के आधार पर मुख्यत 3 भागो में बाँटा जाता है।
- समाजवादी सिद्धांत (Socialistic Principles)
- गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)
- उदार और बौद्धिक सिद्धांत (Liberal-Intellectual Principles)
राज्य के नीति निर्देशक तत्व (DPSP)
यहाँ आपको राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy) के सम्बन्ध में विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है।
- अनुच्छेद 38– राज्य इस प्रकार की सामाजिक-व्यवस्था को सुनिश्चित करेगा की जिससे की सभी नागरिको को सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय मिल सके।
- अनुच्छेद 39- लोककल्याण के लिए राज्य अपनी नीति का निर्धारण इस प्रकार करेगा की निम्न दशाओं को सुनिश्चित किया जा सके :-
- अनुच्छेद 39-क (Article 39-A)- नागरिको को आजीविका प्राप्त करने के पर्याप्त अवसर, सभी नागरिको को निशुल्क विधिक सहायता एवं सभी नागरिको हेतु न्याय सुनिश्चित करना
- अनुच्छेद 39-ख़ (Article 39-B)- सार्वजनिक धन के नियंत्रण, प्रबंधन एवं स्वामित्व इस प्रकार करना की वह जनकल्याण के अधिकतम हितों की पूर्ति करे
- अनुच्छेद 39-ग़ (Article 39-C)- इस प्रकार की व्यवस्था का निर्माण करना जिससे धन का सकेन्द्रण कुछ ही व्यक्तियों एवं समूहो के हाथ में ना हो
- अनुच्छेद 39-घ (Article 39-D)- स्त्रियों एवं पुरुषो को समान कार्य के लिए समान वेतन
- अनुच्छेद 39–ड़ (Article 39-E)- स्त्री, पुरुष एवं बच्चो के स्वास्थ्य एवं क्षमता के शोषण से बचाव के लिए उपाय हेतु प्रबंध करना एवं इस प्रकार की नीति निर्धारित करना की उन्हें आर्थिक स्थिति के कारण इस प्रकार के कार्यो के लिए विवश ना होना पड़े जो स्वास्थ्य एवं क्षमता के अनुकूल ना हो
- अनुच्छेद 39-च (Article 39-F)- बच्चो एवं युवाओ को विकासवर्धक वातावरण प्रदान करना एवं उन्हें नैतिक एवं आर्थिक दशाओ की शून्यता से बचाना
- अनुच्छेद 40– लोकतंत्र के विकेन्द्रीकरण एवं स्थानीय स्वायत्तता को सुनिश्चित करने के लिए राज्य द्वारा ग्राम पंचायतो का गठन किया जायेगा।
- अनुच्छेद 41– राज्य के द्वारा अपनी आर्थिक सीमा के अंतर्गत राज्य के नागरिको को वृद्धवस्था, बीमारी, दिव्यांगता एवं रोजगार ना होने की स्थिति में आवश्यक सहायता प्रदान की जाएगी।
- अनुच्छेद 42– यह राज्य का कर्त्तव्य होगा की वह यह सुनश्चित करे की सभी नागरिको को कार्य करने के लिए न्यायसंगत एवं मानवोचित दशाएँ मिले। साथ ही महिला कामगारों को प्रसूति की स्थिति में भी सहायता प्रदान की जाए।
- अनुच्छेद 43– विभिन कार्यो के संलग्न कर्मकारो को यथोचित निर्वाचित मजदूरी मिल सके एवं जीवन में सांस्कृतिक एवं सामाजिक उन्नति के लिए यथाचित अवकाश प्राप्त हो सके। कुटीर उद्योगों के विकास के लिए सरकार का दायित्व
- अनुच्छेद 43-A- कर्मकारो को उद्योगों के प्रबंधन की प्रक्रिया में शामिल किया जायेगा।
- अनुच्छेद 44- सरकार का कर्त्तव्य है की वह सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का निर्माण करेगा एवं इसे लागू करेगा।
- अनुच्छेद 45– 6 वर्ष से 14 वर्ष की आयु के बच्चों को निशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना राज्य का कर्त्तव्य है।
- अनुच्छेद 46- अनुसूचित जाति, अनुसूचित-जनजाति एवं अन्य दुर्बल वर्गों की शिक्षा एवं आर्थिक स्थिति में सुधार के लिए राज्य द्वारा यथोचित विधि का उपबंध किया जायेगा।
- अनुच्छेद 47– राज्य के द्वारा सार्वजानिक स्वास्थ्य में सुधार, पोषाहार स्तर को ऊँचा करना, नागरिको के स्वास्थ्य कल्याण हेतु समुचित उपाय एवं मादक एवं नशीले द्रव्यों के निषेध हेतु समुचित प्रबंध किए जाएँगे।
- अनुच्छेद 48– राज्य का कर्त्तव्य होगा की वह कृषि एवं पशुपालन को संगठित करने के लिए उचित प्रबंध करेगा। इसके अंतर्गत वैज्ञानिक विधियों एवं उपायों के माध्यम से कृषि में उन्नति हेतु प्रयास एवं दुधारू पशुओं की नस्ल में सुधार एवं इनका वध निषेध करने हेतु विधि निर्माण
- अनुच्छेद 48A– पर्यावरण का संरक्षण एवं संवर्धन हेतु कार्य तथा वन तथा वन्य जीवों की सुरक्षा की वृद्धि के लिए उपाय
- अनुच्छेद 49- ऐतिहासिक धरोहर एवं कला के संरक्षण हेतु राज्य का कर्त्तव्य होगा की वह सभी राष्ट्रीय महत्व के ऐतिहासिक धरोहरों, स्मारकों एवं अन्य सम्बंधित स्थानों की रक्षा एवं संवर्धन करे।
- अनुच्छेद 50– न्यायपालिका एवं कार्यपालिका को पृथक रखने सम्बंधित सिद्धांत
- अनुच्छेद 51– अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा को बनाये रखने के लिए राज्य समुचित उपाय करेगा। इसके अंतर्गत राज्य का कर्त्तव्य होगा की :-
- राष्ट्रों के मध्य न्यायपूर्ण एवं सम्मानजनक संबंधो को बढ़ाना
- अंतर्राष्ट्रीय संधि एवं विधियों के प्रति सम्मान में वृद्धि करना
- अंतर्राष्ट्रीय विवादों के सम्बन्ध में मध्यस्थता को प्रोत्साहन देना
इसके अतिरिक्त अनुच्छेद 350-A के अनुसार सभी बच्चो को मातृभाषा में शिक्षा प्रदान करना एवं आर्टिकल-351 के तहत हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार एवं उन्नति के लिए राज्य के कर्तव्यों को भी प्रायः राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में शामिल किया जाता है।
मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों में अंतर
संविधान के द्वारा सभी नागरिको को मौलिक अधिकार प्रदान किए गए है। मौलिक अधिकारों के माध्यम से नागरिकों को मूलभूत अधिकार प्रदान किए जाते है जिन्हे संविधान द्वारा सुनिश्चित किया जाता है। हालांकि हमे मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों में अंतर के बारे में जानकारी होनी भी आवश्यक है। मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों में सबसे मूलभूत एवं महत्वपूर्ण अंतर यह होता है की मौलिक अधिकारों को न्यायालय के द्वारा प्रवर्तित किया जा सकता है। इसका अर्थ यह है की यदि राज्य द्वारा किसी नागरिक के मौलिक अधिकारों का हनन किया जाता है तो नागरिक अपने अधिकारों को लागू करवाने के लिए न्यायलय की शरण ले सकता है। वही राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy) न्यायालय के द्वारा प्रवर्तित नहीं किए जा सकते है जिसका अर्थ है की न्यायालय द्वारा राज्य को नीति-निर्देशक तत्वों का पालन करने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। इसके अतिरिक्त मौलिक अधिकार एवं नीति निर्देशक तत्वों में निम्न अंतर है :-
मौलिक अधिकार | राज्य के नीति निर्देशक तत्व |
मौलिक अधिकारों को अमेरिका के संविधान से ग्रहण किया गया है। | राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को आयरलैंड के सिद्धांत से ग्रहण किया गया है। |
मौलिक अधिकारों को न्यायालय के द्वारा प्रवर्तित किया जाता है। | राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को न्यायालय के द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जाता है। इनको (DPSP) लागू करने के लिए कोर्ट की शरण नहीं ले सकते है। |
मौलिक अधिकार व्यक्ति के मौलिक अधिकारों से सम्बंधित है। | राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। |
मौलिक अधिकारों का वर्णन संविधान के भाग-3 में किया गया है। | राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का वर्णन संविधान के भाग-4 में किया गया है। |
मौलिक अधिकारों को क़ानूनी संरक्षण प्राप्त है। | राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को क़ानूनी संरक्षण प्राप्त नहीं है। |
मौलिक अधिकारों के माध्यम से सरकार के अधिकार में कमी आती है। | राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के माध्यम से सरकार के अधिकारों में वृद्धि होती है। |
राज्य के नीति-निर्माण में नीति निर्देशक तत्वों का महती योगदान है। वास्तव में नीति-निर्देशक तत्त्व ही वे महत्वपूर्ण नियम है जिनके अनुसार सरकार द्वारा अपनी नीतियों का निर्धारण किया जाता है। संविधान के निर्देश के रूप में परिभाषित नीति निर्देशक तत्वों के माध्यम से देश में एक आदर्श एवं कल्याणकारी समाज की स्थापना को सुनिश्चित किया जा सकता है।
Directive Principles of State Policy सम्बंधित पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Directive Principles of State Policy) संविधान में वर्णित मूलभूत सिद्धांत है जिनके माध्यम से राज्य द्वारा विभिन नीतियों का निर्माण किया जाता है। वास्तव में राज्य के नीति निर्देशक तत्व संविधान द्वारा राज्य की नीति के लिए वर्णित दिशा-निर्देश है जिनके माध्यम से कल्याणकारी राज्य की स्थापना को सुनिश्चित किया जाता है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का मूलभूत उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को राज्य द्वारा नीति-निर्माण में निर्देश के रूप में प्रयुक्त किया जाता है। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को नीति निर्माण में प्रकाश-स्तम्भ की भांति प्रयोग किया जाता है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों द्वारा नागरिको हेतु सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक न्याय सुनिश्चित किया गया है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (Directive Principles of State Policy) को आयरलैंड देश के संविधान से ग्रहण किया गया है।
भारत के संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (DPSP) का वर्णन किया गया है।
राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को प्रायः 3 भागो में विभाजित किया जाता है जो की निम्नवत है :-
समाजवादी सिद्धांत (Socialistic Principles)
गांधीवादी सिद्धांत (Gandhian Principles)
उदार और बौद्धिक सिद्धांत (Liberal-Intellectual Principles)
प्रो खुशाल तलाकसी शाह (Khushal Talaksi Shah) या के. टी. शाह द्वारा राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों की तुलना एक ऐसे चेक से की गयी थी जिसको बैंक की सुविधा के अनुसार भुगतान किया जायेगा।
नहीं। राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को न्यायालय के द्वारा प्रवर्तित नहीं किया जा सकता है।
संविधान में राज्य शब्द केंद्र सरकार, राज्य-सरकार, स्थानीय निकायों एवं अन्य प्रशासनिक विभागों के लिए प्रयुक्त किया गया है।
संविधान में भाग-4 में वर्णित राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के अंतर्गत आर्टिकल-44 में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का वर्णन का वर्णन किया गया है।