हाई क्वालिटी के लिए बहुत से भारतीय GM तेल को उपयोग में ला रहे है, इस बात की सच्चाई जाने

GM Edible Oil: जीन रूपांतरित (GM) फसलों को खाना या न खाना, यह एक ऐसा विषय है जिस पर लंबे समय से बहस चल रही है। इस विषय पर वैज्ञानिकों, किसानों और आम लोगों के बीच अलग-अलग मत हैं। भारत सरकार द्वारा हाल ही में GM सरसों की खेती को मंजूरी देने के फैसले को लेकर काफी विवाद है। इस फैसले के समर्थक और विरोधी दोनों पक्षों की अपनी-अपनी दलीलें हैं।

GM सरसों की खेती के समर्थकों का तर्क है कि इससे सरसों की पैदावार में वृद्धि होगी और किसानों की आय में सुधार होगा। इसके अलावा GM सरसों कीटों और बीमारियों के प्रति अधिक प्रतिरोधी होगी जिससे किसानों को कीटनाशकों और अन्य रसायनों के उपयोग में कमी आएगी।

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यहाँ से आयात हो रहा जीएम तेल

भारत में सिर्फ GM कपास की खेती की अनुमति है। भारत में पैदा होने वाले कॉटनसीड ऑयल का इस्तेमाल पहले से हो रहा है, जिसे GM कपास के बीज से बनाते हैं। इसके अलावा भारत में बड़े पैमाने पर खाद्य तेल का आयात होता है। अमेरिका में कनोला सीड जीएम फसल से तैयार होता है, जिसका तेल भारत में आता है।

पिछले कुछ साल से भारत में सोयामील का आयात हो रहा है, जो GM फसल से तैयार होती है। भारत सरकार ने GM खाद्य तेल के आयात को लेकर कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है। इसका कारण यह है कि भारत में खाद्य तेल की मांग बहुत अधिक है और उसे पूरी तरह से स्वदेशी उत्पादन से पूरा करना संभव नहीं है। इसलिए भारत को खाद्य तेल का आयात करना पड़ता है।

देश में तेल की खपत

भारत में खाद्य तेल की कुल खपत में GM फसलों का हिस्सा लगभग 30 प्रतिशत है। इसमें से अधिकांश हिस्सा आयातित सोया ऑयल और सनफ्लावर ऑयल से आता है। भारत में प्रतिवर्ष लगभग 230 लाख टन खाद्य तेल का उपभोग होता है। इसमें से 110 लाख टन घरेलू उत्पादन से आता है जो कॉटनसीड को छोड़ दें तो GM मुक्त है।

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कॉटन सीड से तेल का उत्पादन महज 10-11 लाख टन सालाना है। खाद्य तेल की कुल मांग 130 लाख टन आयात से पूरी होती है। पॉम ऑयल का 80 लाख टन आयात होता है, जो GM मुक्त है। वहीं सोया ऑयल, सनफ्लावर ऑयल GM टेक्नीक से उत्पादित बीजों से तैयार किए जाते हैं।

जीएम तेल का विरोध भी है

जीन रूपांतरित (GM) फसलों के स्वास्थ्य पर प्रभावों को लेकर वैज्ञानिक समुदाय में अभी भी मतभेद हैं। कुछ वैज्ञानिकों का मानना है कि GM फसलें मानव स्वास्थ्य के लिए सुरक्षित हैं, जबकि अन्य का मानना है कि इनमें लंबे समय तक स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं पैदा करने की क्षमता है।

GM फसलों के विरोधियों का तर्क है कि इनमें डाले गए जीन प्राकृतिक रूप से नहीं पाए जाते हैं और इनके दीर्घकालिक प्रभावों के बारे में अभी भी पर्याप्त जानकारी नहीं है। उनका कहना है कि GM फसलों के खाने से लोगों को जहरीले कीटनाशक काटे जा सकते हैं, जो कैंसर और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का कारण बन सकते हैं। इसके अलावा उनका मानना है कि GM फसलों के कारण देसी पैदावार के साधन खत्म हो सकते हैं।

GM तेल को लेकर मज़बूरी

GM फसलों की प्रति हेक्टेयर पैदावार पारंपरिक फसलों की तुलना में अधिक होती है। इससे खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ाने में मदद मिल सकती है और आयात पर निर्भरता कम हो सकती है। सरकार का यह तर्क सही है कि खाद्य तेल का आयात करने से विदेशी मुद्रा खर्च होती है। इसलिए खाद्य तेल का उत्पादन बढ़ाने के लिए GM फसलों का उपयोग करना एक विकल्प हो सकता है।

इसलिए भारत सरकार को GM फसलों के उपयोग को लेकर सावधानीपूर्वक निर्णय लेना चाहिए। सरकार को इस विषय पर वैज्ञानिक शोध और सार्वजनिक राय को ध्यान में रखना चाहिए।

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