भारत में श्वेत क्रांति का इतिहास:- तो दोस्तों जैसा की आप सभी जानते हैं की भारत में स्वंत्रता से पूर्व बहुत सी क्रांति चलायी गयी। जैसे की – हरित क्रांति,रजत क्रांति, काली क्रांति आदि इन्हीं में से एक हैं श्वेत क्रांति। श्वेत क्रांति के कारण ही भारत को दूध के उत्पादन के लिए इसको पूरे विश्व में नंबर 1 पे लेके आया हैं। इसका श्रेय केवल एक ही व्यक्ति को जाता हैं जिसका नाम Dr. Verghese Kurien हैं। डॉ. वर्गीज कुरियन को श्वेत क्रांति का पिता भी माना जाता हैं। इन्ही के कारण दूध का उत्पादन न केवल गाँवों तक रहा इन्होने इसको शहरों में शुरू करवाया। डॉ. वर्गीज कुरियन के कारण ही पशुधन मालिकों आर्थिक रूप से मजबूत हो पाए हैं।
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तो दोस्तों क्या आप जानते हैं कि श्वेत क्रांति क्या हैं अगर नहीं तो उसमे आपको चिंता करने की कोई भी आवश्यकता नहीं हैं क्योंकि आज हम इस लेख में White Revolution के बारे में चर्चा करने वाले हैं आप सभी को इसके बारे में बहुत सी आवश्यक जानकरी भी प्रदान करने वाले हैं जैसे की – White Revolution क्या है, White Revolution का इतिहास क्या हैं आदि इससे सम्बंधित बहुत सी आवश्यक जानकारी के बारे में इस लेख में बताने वाले हैं। तो दोस्तों अगर आप भी White Revolution के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हैं तो उसके लिए आपको हमारे इस लेख को अंत अटक पढ़ना होगा तब ही आप इसके बारे में जानकारी प्राप्त कर सकोगे।
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श्वेत क्रांति क्या हैं | What is White Revolution?
श्वेत क्रांति वह क्रांति हैं जिसके कारन भारत के 700 से भी अधिक गाँव और शहरों को राष्ट्रिय दूध ग्रिड से जोड़ा। अगर कहा जाएँ तो इसने दूध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच में सम्बन्ध बनाये हैं। White Revolution की शुरुआत 1970 में हुई थी। इस क्रांति की वजह से भारत की आर्थिक स्थिति में बहुत से सुधार आये थे। इस क्रांति के कारण ही डेयरी इंडस्ट्री में भी बहुत से सुधर व बदलाव आये थे। इस क्रांति के चलते भारत में बहुत से किसानों को रोजगार भी मिला और उनको उससे लाभ भी हुआ। जिसकी मदद से भारत में जानवरो की संख्या भी बढ़ने लगी। श्वेत क्रांति के कारण ही भारत को विश्व में दूध उत्पादन के लिए प्रथम स्थान मिला।
इस क्रांति की शुरुआत Dr. Verghese Kurien के द्वारा हुई थी। इनकी वजह से दूध के उपभोगता और उत्पादकों में एक सम्बन्ध बना। इसलिए डॉ. वर्गीज कुरियन को श्वेत क्रांति का पिता भी कहा जाता हैं। इन्ही की वजह से दूध के उत्पादन के लिए मॉडर्न टेक्नोलॉजी का भी प्रयोग किया जाने लगा। एक समय ऐसा भी था जब भारत दूध की कमी से झूझता था लेकिन आज के समय में ऐसा नहीं है भारत विश्व का सबसे बड़ा दूध का उत्पादक हैं। इसी के कारन भारत में राष्ट्रीय दुग्ध दिवस हर साल 26 नवंबर को मनाया जाता हैं। इस क्रांति को ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता था। इस क्रांति का अंत 1996 में हुआ था। यह क्रांति तीन चरणों में हुई थी।
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सफेद क्रांति के पिता | Father of White Revolution in India
जैसा की हमने आपको बताया हैं की सफ़ेद क्रांति के पिता Dr. Verghese Kurien को माना जाता हैं। इनको Milk man of India भी कहा जाता था। इनके द्वारा ही इस क्रांति की शुरुआत की गयी थी। Dr. Verghese Kurien के द्वारा उस समय में भारत में सबसे बड़ी दूध का उत्पादन करने वाली कंपनी की शुरुआत की थी जिसका नाम अमूल हैं। अमूल कंपनी के चेयरमैन वर्गिस कुरियन ही थे। आपको यह भी बता दे की ऑपरेशन फ्लड की शुरुआत वर्गिस कुरियन के प्रायोगिक पैटर्न पर ही यह ऑपरेशन फ्लड आधारित था। इसी के चलते वर्गिस कुरियन को राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड का भी चेयरमैन बनाया गया। उस समय में भारत के प्रधान मंत्री श्री लाल बहादुर शास्त्री जी थे।
उन्ही के द्वारा ही राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड की शुरुआत की गयी थी और उसका चेयरमैन वर्गिस कुरियन को बनाया गया था। उसके बाद डॉक्टर वर्गिस कुरियन ने अपने मित्र एच.एम.डाल्या के साथ मिलकर इन्होने भैंस को दूध का पाउडर और कंडेंस्ड दूध बनाने की शुरुआत की थी।
श्वेत क्रांति का इतिहास | History of White Revolution
आज हम आपको यहाँ पर आप सभी को श्वेत क्रांति के इतिहास के बारे में बताने वाले हैं। श्वेत क्रांति को ऑपरेशन फ्लड के नाम से भी जाना जाता था। इस क्रांति की शुरुआत 1970 के दौरान की गयी थी। उस समय में इस ऑपरेशन की शुरुआत राष्ट्रिय डेरी विकास बोर्ड के द्वारा की गयी थी। इस क्रांति को उस समय का सबसे बड़ा प्रोग्राम भी माना गया था। उस समय एक और कंपनी थी उसका नाम इंडियन डेयरी कोरोपोरेशन था। यह कंपनी भी डॉक्टर वर्गिस कुरियन के द्वारा ही शुरू की गयी थी। ऐसा उन्होंने इसलिए किया था ताकि ऑपरेशन फ्लड को मंजूरी मिल सकें और ताकि मिल्क का उत्पादन बढ़। उस योजना की शुरुआत के समय में दूध का उत्पादन करीब 22,000 टन था से बढ़कर
जो की 1989 तक मिल्क पाउडर प्रोडक्शन 1,40,000 टन तक पहुँच गया। जिस समय इसकी शुरुआत अमूल के द्वारा की गयी थी उस समय में बाजार में बहुत सी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियां थी लेकिन अमूल ने उन सभी अंतर्राष्ट्रीय कंपनियों को कड़ी टक्कर दी थी। फिर उसके बाद अमूल की सभी चीजें लोगो को पसंद आने लगी और देखते देखते अमूल भारतीयों की पसंदीदा कंपनी बन चुकी थी। श्वेत क्रांति ने भारत में बहुत से बदलाव लाये थे जैसे की – श्वेत क्रांति से पहले यानि के 1951 में भारत जहाँ दूध का उत्पादन केवल 17 मिलियन टन करता था।श्वेत क्रांति के बाद यानि के 2001 के करीब भारत का दूध का उत्पादन बढ़कर 84.6 मिलियन टन तक बढ़ चूका हैं।
श्वेत क्रांति के चरण | Stages of White Revolution in India
तो दोस्तों जैसा की हमने आपको बताया था की श्वेत क्रांति तीन चरणों में हुई थी। तो दोस्तों आज हम आपको उसी के बारे में बताने वाले हैं की इस क्रांति के पहला चरण कब से कब तक हुआ था और दूसरा चरण कब से कब तक हुआ और इसका आखरी चरण यानि के तीसरे चरण में क्या और कब हुआ था। अगर आप भी इसके बारे में जानना चाहते हैं तो उसके लिए आपको इसको अंत तक पढ़ना होगा।
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श्वेत क्रांति के तीन चरण कुछ इस प्रकार हैं :-
- पहला चरण (1970-1980)
- दूसरा चरण (1981-1985)
- तीसरा चरण (1985-1996)
पहला चरण (1970-1980)
श्वेत क्रांति के पहले चरण की शुरुआत 1970 के जुलाई महीने में हुई थी और यह यह चरण 1980 तक चला था। इस क्रांति के पहले चरण का उद्देश्य यह था की 10 राज्यों में करीब 18 शेड्स लगाना था। जहाँ पर भी यह शेड्स लगाए गए लगते समय ये ध्यान में रखा गया की वह देश के चार मुख्य शहरों मार्किट से जुड़े हुए हैं और उनको शेड्स को उन्ही जगह पर लगाया गया जो जगह उन मुख्य शहरों की मार्किट से जुड़े हुए थे। वह चार मुख्य शहर हैं – दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई। जिस समय इस क्रांति का पहला चरण अपने अंत पर था उस समय तक देश में करीब 13,000 गाँवों में डेरी विकसित हो चुकी थी।
उनमे लगभग 15,000 किसान शामिल थे। इस क्रांति के इस चरण में यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी के द्वारा भी साथ दिया गया था। क्योंकि इस चरण में यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी के द्वारा दिए गए बटर व स्किम्ड मिल्क पाउडर की सेल की गयी थी। इसकी वजह से आर्थिक सहायता भी प्राप्त हुई था। राष्ट्रीय डेरी विकास बोर्ड (NDDB) के द्वारा यह प्लान किया गया था की यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी की इस मदद को डिटेल में निर्धारित की थी।
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दूसरा चरण (1981-1985)
श्वेत क्रांति का दूसरे चरण की शुरुआत 1981 में हुई थी और इस चरण का अंत 1985 में हुआ था और इस क्रांति के दूसरे चरण का यह उद्देश्य था की जिस प्रकार से पहले चरण में देश के चार मुख्य शहरों से जुड़े हुए मार्किट तक शेड्स लगाए गए थे उसी प्रकार देश के अन्य शहर जैसे की राजस्थान, कर्नाटक व मध्यप्रदेश जैसे शहरों में भी डेरी डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाये जाने चाहिए। माना यह जाता हैं की इस क्रांति के इस चरण के अंत तक करीब 136 शेड्स बनकर लग चुके थे और यह शेड्स करीब 34,500 गाँवों तक फैले हुए थे। उसके बाद देश के करीब 43000 गाँवों में 4.25 मिलियन लीटर तक दूध का उत्पादन होने लगा था।
उसके बाद 1989 तक दूध का घरेलु उत्पादन भी बढ़ने लगा था और वह बढ़कर करीब 22000 टन हो चूका था। इन सब्भी कार्यों में वर्ल्ड बैंक के द्वारा लिए गए लोन ने बहुत सी मदद की थी। ऐसा इसलिए था क्योंकि इस ऑपरेशन यानि के ऑपरेशन फ्लड को यूरोपियन इकनोमिक कम्युनिटी, वर्ल्ड बैंक और भारत के नेशनल डेयरी डेवलपमेंट को सभी मिलकर स्पांसर कर रहे थे। यूएनडीपी के द्वारा भी बहुत सी मदद की गयी जैसे की यूएनडीपी ने अपने पास से कंसलटेंट,नए उपकरण,और एक्सपर्ट्स भेज रहे थे जिसकी वजह से भी बहुत सी मदद मिली। केवल यह ही नहीं बल्कि वर्ल्ड बैंक के द्वारा और उसके सहयोगियों के द्वारा एग्रीकल्चर एक्सटेंशन,बारिश आधारित फिश फार्म,स्टोरेज और मार्केटिंग में भी सपोर्ट किया गया था।
तीसरा चरण (1985-1996)
श्वेत क्रांति के तीसरे चरण की शुरुआत 1985 में हुई थी और यह चरण 1996 तक चला था। इस क्रांति के तीसरे चरण के समय यह क्रांति पहले से मजबूत व विकसित हो चुकी थी। इस चरण के वक़्त देश में दूध का उत्पादन भी बढ़ चूका था और आधारभूत संरचना (Infrastructure) भी बेहतर हो चुकी थी। इनके कोपरेटिव सदस्यों को बहुत सी सुविधाएँ प्रदान की गयी जैसे की – वेटरनरी फर्स्ट एंड हेल्थ केयर सर्विसेज,फीड एंड आर्टिफिशयल इनसेमिनेशन सर्विसेज। क्रांति के इस चरण तक करीब 30000 नए डेरी कोपरेटिव भी जोड़े गए थे और 1988-1989 तक शेड्स की संख्या भी बढ़ चुकी थी शेड्स की संख्या 173 तक हो चुकी थी।
इस समय मुख्य फायदा यह भी हुआ की इसमें महिलाओं की संख्या में भी बढ़ोतरी हुई। केवल यह ही नहीं महिलाओं को बहुत प्रोत्साहित किया गया और 1995 में वुमन डेयरी कोऑपरेटिव लीडरशिप प्रोग्राम (WDCLP) नामक एक प्रोजेक्ट भी लांच किया गया था। इस प्रोजेक्ट को लांच करने के पीछे उनका केवल एक ही उद्देश्य था वह यह था की महिलाओं को डेरी कोपरेटिव मूवमेंट में बढ़ावा देना था। इसके लिए इन्होने महिलाओं को गाँवों में ट्रेनिंग भी दी और उनका लेटेन्ट पोटेंशियल भी बढ़ाया। इनकी ट्रेनिंग में बहुत सी चीजें सिखाई जाती थी जैसे की – जानवरों को पोषण वाला भोजन देना,नए इनोवेशन सीखाना जैसे की – थिलेरिओइसिस (Theileriosis) के लिए वैक्सीन बनाने,प्रोटीन फीड बाईपासिंग और दुधारों जानवरों की संख्या बढ़ाना आदि।
फिर उसके बाद सन 1996 में यह क्रांति समाप्त हो गयी थी और उस समय तक देश में 9.4 मिलियन (94 लाख) किसानों के बीच में 73,300 डेयरी कोपरेटिव बन चुके थे।
भारत में श्वेत क्रांति का इतिहास से सम्बंधित कुछ प्रश्न
श्वेत क्रांति वह क्रांति हैं जिसके कारन भारत के 700 से भी अधिक गाँव और शहरों को राष्ट्रिय दूध ग्रिड से जोड़ा। अगर कहा जाएँ तो इसने दूध उत्पादकों और उपभोक्ताओं के बीच में सम्बन्ध बनाये हैं।
श्वेत क्रांति का जनक डॉक्टर वर्गिस कुरियन को माना जाता हैं।
श्वेत क्रांति की शुरुआत 1970 में हुई थी और इस क्रांति का अंत 1996 में हुआ था।
अमूल कंपनी के चेयरमैन डॉक्टर वर्गिस कुरियन थे।
विश्व का सबसे बड़ा दूध उत्पादक देश भारत हैं।
भारत की सबसे बड़ी दूध की कंपनी अमूल हैं।
श्वेत क्रांति तीन चरणों में हुई थी
पहला चरण (1970-1980)
दूसरा चरण (1981-1985)
तीसरा चरण (1985-1996)