दुनिया में प्राकृतिक संसाधनों अंधाधुन्द उपयोग किया जाता है जिससे प्राकृतिक संसाधन की मात्रा कम होती जा रही है। यदि ऐसे ही संसाधनों का दुरूपयोग होता रहा तो आने वाली पीढ़ी के उपयोग के लिए संसाधन ही नहीं बचेंगे जिससे उनको जीवन व्यतीत करने में काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ सकता है तो इसी लिए सतत् विकास की शुरुआत की गयी।
आज हम बात करेंगे सतत् विकास क्या है? Sustainable Development in Hindi और जानेगे सतत् विकास और उससे जुडी और भी जानकारिया। सतत् विकास कांसेप्ट है जो आपको बताता है कि आप संसाधनों का उपयोग कैसे करे ताकि आने वाली पीढ़ी के लिए भी संसाधन बचाये जा सके। तो चलिए अब गहराई से जानते है सतत् विकास क्या है? Sustainable Development in Hindi
सतत् विकास क्या है?
सतत् विकास (Sustainable Development in Hindi) एक ऐसी दूरदर्शी योजना है जो मानव विकास, आर्थिक वृद्धि, पर्यावरण संरक्षण के समावेश से विकास का आवाहन करती है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जो भविष्य में पीढ़ी को आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए वर्तमान की आवश्यकताओं को पूरा करने पर जोर देती है।
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सतत् विकास का अर्थ होता है प्राकृतिक संसाधनों का इस तरह से प्रयोग करना कि आने वाली पीढ़ी को भी प्राकृतिक संसाधनों के लिए समझौता न करना पड़े। यानि हमारी आने वाली पीढ़ी को संसाधन की कमी न हो। सतत विकास पर्यावरण को केवल संरक्षित ही नहीं करता बल्कि उसमे गुणात्मक सुधार के भी प्रयास करता है। सतत विकास में पर्यावरणीय घटक जैसे – वायु, जल, भूमि की गुणवत्ता बनी रहती है।
Sustainable Development in Hindi
आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधन की आवश्यकताओं से समझौता किये बिना वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं को पूरा करने हेतु विकास करना ही सतत् विकास है। जिसे हम टिकाऊ विकास या साधरणीय विकास भी कहते है। सतत् विकास एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके अंतर्गत आपको सभी प्राकृतिक संसाधनों को उपयोग इस तरह करना होता है की आने वाली पीढ़ी भी संसाधनो का उपयोग कर सके।
जैसा की आप सब जानते ही है पृथ्वी पर प्राकृतिक संसाधनों का अपार भंडार है। यदि हम सब इन सब चीजों का अच्छे से इस्तेमाल करेंगे तो आने वाले भविष्य के लिए भी हम उनको बचा सकते है। यदि आने वाली पीढ़ी को संसाधनों की कमी हुई तो उनको जीवन व्यतीत करने में काफी कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
सतत् विकास की शुरुआत कब हुई थी ?
ब्राटलैंड कमीशन ने 1987 में पहली बार सतत् विकास की व्याख्या की थी संयुक्त राष्ट्र विश्व आयोग द्वारा ब्राटलैंड की रिपोर्ट को 1987 में पर्यावरण और विकास के लिए प्रकाशित किया गया था। सतत् विकास की अवधारणा को वैश्विक स्तर पर 1992 में पृथ्वी शिखर सम्मेलन में विकास हेतु एजेंडा-21 में स्वीकृति मिली थी हालाँकि इससे पूर्व ही ब्राटलैंड ने सतत् विकास की अवधारणा स्पष्ट कर दी थी।
विकास ऐसा होना चाहिए जो न केवल तात्कालिक आवश्यकताओं की पूर्ति करे वरन स्थाई तौर पर भविष्य के लिए Sustainable Development का आधार प्रस्तुत करना है। पर्यावरण के नुकसान को रोकने और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को रोकने के लिए सतत विकास जरुरी है।
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1992 में हुए पृथ्वी सम्मेलन में सतत विकास और उससे होने वाले लाभों पर सोच-विचार किये गए। इस सम्मेलन में सतत विकास/टिकाऊ विकास की परिभाषा दी गयी। ब्राटलैंड के अनुसार सतत् विकास वो विकास है जो आने वाली पीढ़ी की जरुरत को पूरी करने की क्षमता से समझौता किये बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है और पारितंत्र भी स्वस्थ एवं सतत अवस्था में बना रहे।
सतत् विकास का महत्त्व | Importance of Sustainable Development in Hindi
सतत् विकास के कुछ महत्वपूर्ण कारक निम्न प्रकार है :-
- सतत् विकास महाहवपूर्ण है क्योंकि यह भविष्य में आने वाली पीढ़ी का ख्याल रखता है और यह सुनिचित करता है कि बढ़ती जनसँख्या से प्रकृति के कोई नुकसान ना हो
- यह कृषि तकनीकों को बढ़वा देता है जैसे फसल चक्रण और प्रभावी बीज बोने की तकनीक।
- सतत् विकास प्रथाओं द्वारा जलवायु परिवर्तन को रोकने में मदद मिलती है।
- जीवाश्म ईंधन वातावरण को नष्ट करने वाली गैसों को छोड़ते है इसलिए सतत् विकास इनका उपयोग कम करने को बढ़ावा देता है।
- यह एक ऐसे बुनियादी सिद्धांत पर आधारित है जो संसाधनों को लम्बे समय तक कायम रखने का काम करता है
- यदि Sustainable Development प्रक्रिया का उपयोग किया जाता है तो सभी जीवित जीव जन्तुओ के आवास समाप्त नहीं होंगे।
- सतत् विकास पारिस्थितिक तंत्र को संरक्षित करने पर केंद्रित है।
- यह जैव विविधता को बनाये रखने और संरक्षित रखने में सहायता प्रदान करता है।
सतत् विकास का उद्देश्य | Sustainable Development in Hindi
कई प्राकृतिक संसाधन पृथ्वी पर अब कम मात्रा में बचे है इसलिए हमारी सामाजिक जिम्मेदारी है की हम उनका उपयोग समझदारी से करे। Sustainable Development के लक्ष्यों को संयुक्त राष्ट्र के सदस्यों द्वारा 2015 में अपनाया गया था।
सतत् विकास प्रोडक्ट्स और सेवाओं को इस तरह प्रोत्साहित करता है जिससे पर्यावरण पर प्रभाव कम पड़ता है और मानव को संतुष्ट करने के लिए अनुकूल करता है।सतत् विकास के उद्देश्य निम्न प्रकार है :-
- लोगो के जीवन का स्तर ऊँचा करना।
- लोगो को आर्थिक रूप से मजबूत करना
- पर्यावरणीय भंडारण एवं आने वाली पीढ़ी को कोई नुक्सान ना पहुँचाना।
- मानवीय एवं भौतिकीय पूंजी के संरक्षण तथा वृद्धि के लिए आर्थिक विकास को तीव्र करना।
- प्राकृतिक प्रणाली के संतुलन और स्थिरता को बाधित किये बिना संसाधनों की उपयोग की अनुमति देना।
- पर्यावरण तथा जैविक नुक्सान की भरपाई करना।
- संसाधनों का सफल प्रबंधन करना जिससे मानव की परिवर्तनशील आवश्यकताओं को संतुष्टि मिल सके।
- वातावरण को शुद्ध एवं स्वच्छ रखना।
- आर्थिक विकास को प्रोत्साहित करना लेकिन इस बात का ध्यान रखना कि प्राकृतिक संसाधन सुरक्षित रहे।
- सभी के लिए न्यायसंगत, सुरक्षित, शांतिपूर्ण, समान और समृद्ध रहने योग्य विश्व का निर्माण करना।
- सामाजिक समावेश, आर्थिक विकास, पर्यावरण संरक्षण को व्यापक रूप से समाविष्ट करना।
- सभी लोगो को विकास के अवसर प्रदान करना
- गैर-प्रदूषण नवीनीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों का विकास करना
- जनसँख्या स्थिरीकरण के लिए महत्वपूर्ण
- पर्यावरण और शिक्षा स्तरों पर जागरूकता
- कचरे एवं अवशेषों का पुनर्चक्र
- वायु और जल में प्रदूषण नियंत्रित करने के लिए महत्वपूर्ण है
स्थिरता और सतत् विकास में सम्बन्ध
स्थिरता तीन स्तम्भों से बनी है पर्यावरण, आर्थिक, सामाजिक
पर्यावरण स्थिरता
यह प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा और वैश्विक पारिस्थितिक तंत्र की रक्षा करने के लिए जिम्मेदार है। इस प्रकार की स्थिरता का उद्देश्य मानव जीवन में सुधार करना है वो भी पारिस्थितिक तंत्र को बिना कोई नुक्सान पहुचाये। वनो की कटाई हमारे पर्यावरण के लिए हानिकारक है। इसलिए हमे संसाधनों का अंधाधुंध उपयोग नहीं करना चाहिए सोच समझ कर ही संसाधनों का उपयोग करना चाहिए। इसका उद्देश्य पर्यावरण प्रथाओं को अपनाना है जो हमारे पारिस्थितिक तंत्र को शुद्ध करते है।
आर्थिक स्थिरता
ये स्थिरता एक महत्वपूर्ण पहलू है जो दीर्घकालिक आर्थिक विकास का समर्थन करता है। आर्थिक स्थिरता प्राकृतिक संसाधनों के इष्टम उपयोग, पुनर्चक्रण और पुनःप्राप्ति के माध्यम, से दीर्घकालिक वर्तमान और भविष्य के मूल्य का निर्माण करती है। यह ऐसी गतिविधियों को बढ़ावा देने ला प्रयास करती है जिनके माध्यम से समुदाय के पर्यावरणीय सांस्कृतिक और सामाजिक पहलुओं पर नकारात्मक प्रभाव डाले बिना दीगृहकलिक विकास प्राप्त किया जा सकता है। आर्थिक स्थिरता के मूल तत्व कुछ इस प्रकार है :-
- पर्यावरणीय दृष्टि से विश्व में गरीबी और भूख दूर करने के लिए प्रभावी समाधान खोजना।
- आर्थिक स्थिरता को तीन श्रेणियों में बनता गया है मूल्य और मूल्यांकन, नीतिगत साधन और गरीबी, पर्यावरण।
- अर्थशास्त्र इस बात का अध्ययन है ककी समाज अपने प्राकृतिक संसाधनों को किस तरह इस्तेमाल करता है और जब इसको सतत् विकास के साथ जोड़ा जाता है तो ये आर्थिक विकास प्राप्त करने पर केंद्रित हो जाता है।
- मानव जीवन की गुणवत्ता और वातारण में सुधार करता है।
सामाजिक स्थिरता
सामाजिक स्थिरता सामाजिक जिम्मेदारियों का एक रूप है। यह लोगों पर व्यावसायिक प्रक्रियाओं के सकारात्मक एवं नकारात्मक प्रभावों की पहचान की पुष्टि करता है। व्यवसायो को सामजिक स्थिरता के लिए पहल करने की आवश्यकता है क्यूंकि यह प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष दोनों ही रूपों से समुदाय को प्रभावित करते है। समुदाय के विभिन्न वर्गों की जरुरत पर ध्यान केंद्रित करती है और कमजोर वर्ग को बुनिययडी ढांचा और आवश्यक सहायता प्रदान करते है। सामाजिक स्थिरता के मूल तत्व निम्न प्रकार है :-
- लैंगिग समानता
- व्यवस्थित सामुदायिक भागीदारी
- सरकार और मजबूत नागरिक वाला समाज बनाना।
सतत् विकास क्या है से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
वर्तमान पीढ़ी को संसाधन से समझौता किये बिना आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधन बचाना ही सतत विकास है।
सतत विकास इसलिए जरुरी है ताकि हम संसाधनों का सही तरीके से इस्तेमाल करे और आने वाली पीढ़ी के लिए संसाधनों की बचत करना सीख सके। यदि ऐसा नहीं किया गया तो आने वाली पीढ़ी को जीवन व्यतीत करने में काफी परेशानी उठानी पड़ सकती है।
सतत विकास की स्थिरता के तीन स्तम्भ है। 1) सामाजिक स्थिरता 2) पर्यावरण स्थिरता 3) आर्थिक स्थिरता।
सतत विकास का उद्देश्य सबके लिए समान न्यायसंगत, सुरक्षित, समृद्ध, शांतिपूर्ण और रहने योग्य विश्व का निर्माण करना है।
ब्राटलैंड कमीशन ने 1987 में पहली बार सतत् विकास की व्याख्या की थी संयुक्त राष्ट्र विश्व आयोग द्वारा ब्राटलैंड की रिपोर्ट को 1987 में पर्यावरण और विकास के लिए प्रकाशित किया गया था।