Subhash Chandra Bose Jayanti: पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाती है सुभाषचंद्र बोस जयंती, जानें महत्व और इतिहास

“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” देश की आजादी के दौरान गूँजा यह नारा आज भी भारत के करोड़ों देशवासियों को प्रेरणा देने का कार्य करता है। नेता जी सुभाष चंद्र बोस आजादी के ऐसे नायक रहे है जिन्होंने देश की आजादी के लिए अपना सम्पूर्ण जीवन समर्पित कर दिया था। स्वतंत्रता संग्राम में नेता जी ने देश ही नहीं अपितु विदेशों से भी सहायता प्राप्त करके भारत की आजादी में योगदान दिया था। देश की स्वतंत्रता में नेता जी के योगदान का स्मरण करने के लिए प्रतिवर्ष सुभाष चंद्र बोस जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है। भारत की आजादी में नेता जी के अतुल्य पराक्रम को याद करने के लिए प्रतिवर्ष पराक्रम दिवस (PARAKRAM DIWAS) के माध्यम से नेता जी को श्रद्धांजलि अर्पित की जाती है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको सुभाष चंद्र बोस जयंती (Subhash Chandra Bose Jayanti), इसके इतिहास एवं महत्व के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले है। साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आप नेता जी से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।

Subhash Chandra Bose Jayanti: पराक्रम दिवस के रूप में मनाई जाती है सुभाषचंद्र बोस जयंती, जानें महत्व और इतिहास
सुभाषचंद्र बोस जयंती, जानें महत्व और इतिहास

सुभाषचंद्र बोस जयंती, जानें महत्व और इतिहास

भारत की आजादी में अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन समर्पित किया है। अपने निजी स्वार्थ को त्यागकर देश हित में सर्वोच्च बलिदान करने वाले महापुरुषों में सुभाष चंद्र बोस अग्रणी नेता रहे है। औपनिवेशिक भारत में ब्रिटिश भारतीय प्रशासनिक सेवा (तब इसे Indian Civil Services (ICS) कहा जाता था) में प्रथम प्रयास में चौथा स्थान प्राप्त करने वाले सुभाष चंद्र बोस के द्वारा देश के आजादी के आंदोलन में योगदान देने हेतु इस महत्वपूर्ण पद को छोड़कर संघर्षों से भरी हुयी देश सेवा करने का निर्णय लिया गया। नेताजी सुभाष चंद्र बोस द्वारा क्रांति के दम पर स्वराज पाने का नारा दिया गया था।

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आजाद हिन्द फ़ौज के गठन से लेकर जापान एवं जर्मनी से भारत की आजादी हेतु सहयोग प्राप्त करने के लिए सुभाष चंद्र बोस द्वारा कठिन संघर्ष किया गया। देश के युवाओं को आजादी के आंदोलन से जोड़ने के लिए उन्होंने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” का प्रसिद्ध नारा दिया था। नेताजी के अप्रतिम साहस एवं पराक्रम के स्मरण के लिए भारत सरकार द्वारा नेताजी की जयंती को पराक्रम दिवस के रूप में मनाया जाता है।

पराक्रम दिवस कब मनाया जाता है ?

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती 23 जनवरी के अवसर पर प्रतिवर्ष पराक्रम दिवस मनाया जाता है। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के देश के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान को याद करने एवं नेताजी को श्रद्धांजलि अर्पित करने हेतु प्रतिवर्ष 23 जनवरी को पराक्रम दिवस मनाया जाता है। इस वर्ष नेताजी की 127वीं वर्षगांठ मनाई जा रही है।

पराक्रम दिवस का इतिहास

सुभाष चंद्र बोस द्वारा आजादी के योगदान में देश की अमूल्य सेवा एवं देश के करोड़ों नागरिकों को देशसेवा के लिए प्रेरित करने के उपलक्ष में सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर पराक्रम दिवस मनाया जाता है। भारत सरकार द्वारा नेताजी के योगदान को स्मरण करने के लिए वर्ष 2021 में प्रथम बार पराक्रम दिवस मनाने की घोषणा की गयी थी। वर्ष 2022 में नेताजी की जन्म दिवस की 125वीं वर्षगाँठ मनाई गयी थी। नेताजी के जन्मदिवस से सम्बंधित कार्यक्रमों संबंधी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी के द्वारा उच्चस्तरीय समिति का गठन भी किया गया है जिससे की नेताजी के संदेशों को सम्पूर्ण भारत में प्रसारित किया जा सके।

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जाने नेताजी सुभाष चंद्र बोस के बारे में

आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओड़िशा राज्य के कटक शहर में हुआ था। इनके पिता जानकीनाथ कटक शहर के मशहूर वकील एवं माताजी प्रभावती आदर्श गृहणी थी। बचपन से ही बालक सुभाष को पढ़ाई में अत्यंत रूचि थी यही कारण रहा की वे सदैव पुस्तकों में ही खोये रहते। नेताजी ने अपनी प्रारंभिक पढ़ाई कटक एवं उच्च शिक्षा कोलकाता से पूरी की। बचपन से ही स्वामी विवेकानंद को अपना आदर्श मानने वाले नेताजी बचपन से ही कट्टर देशप्रेमी थे। भारत को गुलामी की जंजीरो में जकड़ा देखकर उन्हें बड़ा दुःख होता था।

उच्च शिक्षा पूरी करने के पश्चात नेताजी प्रशासनिक सेवा की तैयारी के लिए इंग्लैंड चले गए। उन दिनों प्रशासनिक सेवा में सिर्फ ब्रिटिश नागरिक ही चयनित होते थे। नेताजी ने ना सिर्फ इस परीक्षा को पास किया अपितु इसमें चौथा स्थान भी प्राप्त किया। हालाँकि देशप्रेम के कारण उन्होंने अंग्रेजी शासन की अपेक्षा देश सेवा के लिए कार्य करना बेहतर समझा एवं अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद वे कांग्रेस में शामिल होकर आजादी की लड़ाई में कूद गए। हालांकि वैचारिक मतभेदों के चलते उन्होंने वर्ष 1939 में कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया।

इसके पश्चात देश की आजादी के लिए नेताजी ने विभिन आंदोलनों का नेतृत्व किया एवं देश के युवाओ को आजादी के संग्राम में सहयोग करने हेतु प्रेरित करने लगे। उनके विचारों से देश के स्वतंत्रता आंदोलन को नयी दिशा मिली थी। वर्ष 1945 में भारत माँ का यह वीर सपूत ताइवान में हवाई जहाज दुर्घटना में शहीद हो गया। हालांकि इस दुर्घटना को प्रामाणिक नहीं माना गया है।

आजादी में नेताजी की भूमिका

आजादी की लड़ाई में नेताजी की भूमिका अतुलनीय है। भारत की आजादी के लिए नेताजी ने वर्ष 1943 में आजाद हिन्द फ़ौज (Indian National Army (INA) का नेतृत्व किया था। देश की आजादी के लिए वे हिटलर से मिलने जर्मनी भी गए थे। देश की आजादी के लिए नेताजी ने देश के करोड़ो युवाओं को प्रेरित किया था। महात्मा गाँधी को राष्ट्रपिता की उपाधि भी सुभाष चंद्र बोस के द्वारा दी गयी थी।

पराक्रम दिवस का महत्व

देश के करोड़ो युवाओं के प्रेरणास्रोत रहे नेताजी की जयंती पर पराक्रम दिवस के माध्यम से देश के युवाओं को नेताजी के विचारों से अवगत कराया जाता है। ब्रिटिश प्रशासनिक सेवा के आरामदायक जीवन को त्यागकर देश सेवा के कँटीले मार्ग को चुनकर नेताजी ने देशभक्ति का अनुपम उदाहरण पेश किया था। देश हित के लिए कष्टों को झेलते हुए निरंतर सेवा मार्ग पर बढ़कर सुभाष चंद्र बोस के द्वारा प्रदर्शित अद्भुत पराक्रम को याद करने के लिए पराक्रम दिवस देशवासियों को प्रेरित करता है।

पराक्रम दिवस से सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

पराक्रम दिवस किस महापुरुष की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है ?

पराक्रम दिवस देश की आजादी के महानायक सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।

पराक्रम दिवस कब मनाया जाता है ?

पराक्रम दिवस को प्रतिवर्ष 23 जनवरी को सुभाष चंद्र बोस की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है।

प्रथम पराक्रम दिवस कब मनाया गया था ?

प्रथम पराक्रम दिवस वर्ष 2021 में मनाया गया था।

सुभाष चंद्र बोस का जन्म कब और कहाँ हुआ था ?

सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को ओड़िशा राज्य के कटक शहर में हुआ था।

“तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” का नारा किसने दिया था ?

सुभाष चंद्र बोस ने “तुम मुझे खून दो मैं तुम्हे आजादी दूँगा” का नारा” दिया था।

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