सभी धर्म की अपनी-अपनी मान्यताएं होती है। ऐसे ही मुस्लिम धर्म में भी रमजान लेकर कुछ मान्यताएं है। मुस्लिम धर्म में रमजान महत्वपूर्ण महीना होता है। आज हम बात करेंगे रमजान क्यों मनाया जाता है? जानिए रमजान का महत्व व इतिहास | (Ramadan History in hindi) और रमजान के बारे में जानेंगे। सभी मुस्लिम लोग अल्लाह के प्रति सच्चे मन से अपनी कृतज्ञता प्रकट करते हुए रोजा रखते है।
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रमजान या रमदान इस्लामिक कैलेंडर का नौवाँ महीना होता है इस महीने को बेहद पाक माना जाता है। इसमें मुस्लिम धर्म के लोग एक महीने के लिए रोजे रखते है। रोजे रखने वालो को रोजेदार कहते है। रमज़ान शब्द अरबी भाषा से लिया गया है जिसका अर्थ होता है चिलचिलाती सूखापन। रात में तरावीह की नमाज पड़ते है। कुरान के दूसरे पारे के 183 आयत में रोजा हर मुस्लिम के लिए जरुरी बताया गया है। रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है। इस पूरे महीने मुस्लिम वर्ग के लोग अल्लाह की इबादत करते है और इबादत के साथ-साथ दान धर्म भी करते है। रोजा रखने की शुरुआत अर्धचन्दाकार(आधा चाँद) दिखाई देने के बाद होती है। चाँद दिख जाने के बाद लोग एक दूसरे को रमजान मुबारक बोलकर बधाई देते है और एक-दूसरे से गले मिलते है।
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रमजान क्यों मनाया जाता है
इस्लाम धर्म में रमजान के महीने को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से शुद्ध होने का महीना माना जाता है। इसमें आप अनुशासन और संयम भी सीखते है रमजान को अरबी भाषा में रमदान कहा जाता है। रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बाँटा गया है हर हिस्से में 10 दिन दिन आते है। 10 दिन को अरबी में अशरा कहा जाता है इसलिए रमज़ान के हर हिस्से को अशरा कहा जाता है। पहला अशरा रहमत का ,दूसरा अशरा इबादत का और तीसरा अशरा मगफिरत का कहलाता है। मुस्लिम मान्यताओं के अनुसार रमजान का महीना अपने आप पर नियंत्रण रखने और संयम रखने का इम्तिहान होता है। पूरे दिन भूखे-प्यासे रहना संयम का एक तरीका माना जाता है और दूसरा कारण ये भी है कि किसी गरीब की भूक-प्यास, दुःख-दर्द और लाचारी को समझ सके और उनकी मदद करे।
अपने आँख कान जीभ सब पर नियंत्रण रखना भी जरुरी है यानी न कुछ बुरा देखना है न कुछ बुरा सुनना है और ना ही कुछ बुरा बोलना है। इन सब चीजों पर भी आपका संयम होना चाहिए। इस तरह ये पाक महीना धार्मिक श्रद्धा के साथ-साथ बुरी आदते भी छुड़ा देता है। रमजान में सूर्योदय से लेकर सूर्यास्त तक रोजा रखा जाता है। सहरी खा कर रोजे की शुरुआत की जाती है और इफ्तार खा कर रोजे को खोला जाता है। वैसे तो 12 महीने जकात दी जा सकती है लेकिन रमजान के महीने में जकात देने से ज्यादा सबाब मिलता है। मान्यता है की अपनी सालाना कमाई का 2.5% हिस्सा किसी गरीब को दे देना चाहिए। रमज़ान महीने में की गयी इबादत से अल्लाह ताला खुश होते है और मांगी हुई दुआ भी क़बूल होती है।
रमजान का महत्त्व
मुस्लिम समुदाय के लिए रमजान का महीना सबसे पाक माना होता है। इस महीने जो अल्लाह की इबादत करता है उसके गुनाहों की माफ़ी मिल जाती है। मान्यता है की इस महीने जन्नत के दरवाजे खुल जाते है। रमजान के दौरान किये गए पुण्य के काम को 70 गुना बढ़ाकर सबाव मिलता है। रोजा रखने से इंसान अल्लाह की इबादत के करीब जाता है और इसमें कुछ नियम ऐसे होते है कि लोग अल्लाह की इबादत के करीब जा सके। रमज़ान के महीने के अल्लाह की इबादत का महीना भी कहते है। अल्लाह के प्रति श्रद्धा रखने वाले मुस्लिम लोग अल्लाह की इबादत में रोजा रखते है।
इस महीने को अल्लाह की इबादत, रहमत और बरकत का महीना कहा जाता है। रोजा रखना इस्लाम धर्म के पाँच स्तम्भ में से एक है। अल्लाह ने अगर आपको इतना सामर्थ्य बनाया है की आप गरबों की या जरूरतमंद की मदद कर सकते हो तो रमजान के महीने में आपको मदद जरूर करनी चाहिए। नेक काम करने से आप अल्लाह ताला के और भी करीब जाते है और आपको गुनाहों की माफ़ी भी मिल जाती है। रमज़ान का रोजा हमेशा ईमानदारी और मेहनत से कमाए पैसो से ही करना चाहिए। हराम के पैसो से सहरी और इफ्तार करने वालो को अल्लाह भी माफ़ नहीं करते।
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रमजान का इतिहास | Ramadan History in hindi
इस्लाम धर्म में रोजे का नियम काफी पुराना है। इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार 610 ईस्वी में जब मोहम्मद साहब (इस्लामिक पैगम्बर) को इस्लाम की पवित्र पुस्तक कुरान शरीफ की आयतों का ज्ञान मिला था। तभी से इस्लामी कैलेंडर के नौवें महीने को पवित्र मान कर रोजे रखने की परम्परा चली आ रही है। कुरान के मुताबिक अल्लाह ने पैगम्बर साहब को अपने दूत के रूप में चुना था। तभी से ये महीना मुस्लिम वर्ग के लोगो के लिए विशेष एवं पवित्र माना जाता है। वैसे तो सभी मुस्लिम लोगो को रोजा रखना अनिवार्य है लेकिन इसमें कुछ छूट भी दी गयी है जैसे बीमार व्यक्ति, गर्भवती महिला, नासमझ बच्चे या कोई अन्य परेशान व्यक्ति अगर रोजा नहीं रखना चाहते तो वे ऐसा कर सकते है। रमजान में 29 या 30 दिन हो सकते है। रोजे को अरबी में सोम कहा जाता है।
रमजान के रोजे के नियम
- सेहरी से इफ्तार तक के बीच के समय में किसी भी चीज का सेवन न करना।
- रोजे में आपको खाने के बारे में भी नहीं सोचना।
- मैं को भी साफ़ रखना चाहिए कोई बुरे ख्याल नहीं आने देने चाहिए।
- बुरी आदत जैसी बीड़ी, तम्बाकू, दारु ये सब का सेवन नहीं कर सकते।
- रोजेदार को बुरे विचार दिमाग में नहीं लाने चाहिए इसके आँख कान और जीभ का रोजा कहते है।
- यदि आप रोजा रखते है और आपके दन्त में खाने को आप निग़ाज जाते है तो भी आपका रोजा टूट
- रमजान में संगीत नहीं सुन सकते
- 5 वक्त की नमाज अदा करे
- सही समय पर सहरी और इफ्तारी ले।
- लड़ाई झगड़े के बारे में सोचना और करना दोनों की मनाही है।
- ऐसा कोई कार्य न करे जिससे दूसरे को दुःख हो।
- अल्लाह की राह में दान-धर्म करने में कंजूसी नहीं करनी चाहिए।
- अवैध गतिविधियों के बारे में ना सोचे।
- बदनामी करना, झूठ बोलना ,झूठी कसम खाना, लालच करना, बुराई करना इन पांच काम करने से रोजा टूट जाता है
तरावीह की नमाज
रमजान के समय में पाँच नमाज तो अदा की ही जाती है साथ ही में तरावीह की नमाज भी पढ़ी जाती है ताकि आप अपने रब की इबादत अच्छे से करे और सब आपकी इबादत से खुश हो सके। तरावीह की नमाज रमजान के महीने में पढ़ना अनिवार्य माना जाता है। इस नमाज को मर्द और औरत दोनों अदा सकते है। चाँद रात से लेकर आखिरी रमजान तक इसको रोज पढ़ा जाता है रमजान महीने में रोजेदार द्वारा तरावीह की नमाज न पढ़ना गुनाह माना जाता है।
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सहरी किसे कहते है ?
- रोजा रखने के लिए सूर्योदय से पहले फज़्र की अजान के साथ जो खाना खाया जाता है उसको सहरी कहते है। रमज़ान शुरू होने से पहले ही सहरी के लिए समय निर्धारित कर दिया जाता है जिसके अनुसार ही रोज की सहरी करनी होती है और सहरी करने के पश्चात ही रोजा रखा जाता है।
इफ्तार किसे कहते है ?
- रमजान में जब रोजेदार शाम को अपना रोजा खोलते है उस समय के खाने को इफ्तार कहते है। इफ्तार में ज्यादातर लोग खजूर खाना पसंद करते है क्योंकि इस्लामिक मान्यताओं के अनुसार अल्लाह के दूत को खजूर खा कर रोजा खोलने को कहा गया था तभी से ये परम्परा चली आ रही है।
ईद
- रमज़ान का महीना अल्लाह की इबादत का महीना होता है। रमजान का यह महीना ईद-उल-फितर पर खत्म होता है जिसको मीठी ईद भी कहते है। यह दिन मुस्लिम समुदाय के लिए काफी हर्षोल्लास भरा होता है। इस दिन लोग मस्जिद या ईदगाह जाते है नमाज पढ़ने के लिए और उनपर इतनी रहमो कर्म करने के लिए अल्लाह का शुक्रिया अदा करते है। जग कल्याण के लिए भी दुआ मांगते है। नमाज अदा करने के बाद एक दूसरे के गले मिलकर उनको बधाई देते है। एक दूसरे के घर में खीर भिजवाते है। रमजान में चाँद नजर आने बाद ईद का त्यौहार मनाया जाता है।
रमजान क्यों मनाया जाता है से सम्बंधित प्रश्न व उनके उत्तर
उपवास को अरबी भाषा में सौम कहते है।
रमजान में 10-10 दिन के तीन आशरे होते है।
जकात का मतलब दान होता है।
इस्लाम धर्म की पवित्र पुस्तक कुरान है
शहादा, नमाज, रोजा, ज़कात और हज इस्लाम धर्म के पांच स्तम्भ है।
इस्लाम धर्म में रमजान के महीने को आध्यात्मिक और शारीरिक रूप से शुद्ध होने का महीना माना जाता है। इसमें आप अनुशासन और संयम भी सीखते है रमजान को अरबी भाषा में रमदान कहा जाता है। रमजान के महीने को तीन हिस्सों में बाँटा गया है हर हिस्से में 10 दिन दिन आते है। 10 दिन को अरबी में अशरा कहा जाता है इसलिए रमज़ान के हर हिस्से को अशरा कहा जाता है।