महान हिमालय के मुकुट की भांति खड़े माउंट एवरेस्ट को पूरी दुनिया की सबसे ऊँची चोटी होने का गौरव प्राप्त है। नेपाल हिमालय में स्थित एवरेस्ट नेपाल और तिब्बत स्वायत क्षेत्र के मध्य स्थित पर्वत शिखर है जिस पर चढ़ने का प्रयास हर वर्ष लाखों पर्वतारोही करते है परन्तु कुछ विरले साहसी पर्वतारोही ही इस महान चोटी को पार कर पाते है।
ब्रिटिश सरकार द्वारा वर्ष 1856 में महान त्रिकोणमितीय सर्वेक्षण के तहत माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई मापी गयी थी जो की वर्ष 8,840 मीटर या 29,002 फीट मापी गयी थी परन्तु बाद के वर्षो में इस ऊंचाई में संशोधन किया गया था और एवरेस्ट की ऊँचाई 8848 मीटर मापी गयी।
हिमालय शिखर के मस्तक की भांति खड़े माउंट एवरेस्ट (Mount Everest) का हिमालय के भूगोल पर विस्तृत प्रभाव है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको माउंट एवरेस्ट के बारे में जानकारी (Mount Everest Information In Hindi) प्रदान करने वाले है जिससे की आप माउंट एवरेस्ट के बारे में सभी महत्वपूर्ण ऐतिहासिक, भौगोलिक एवं तात्कालिक जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
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हिमालय का मस्तक-माउंट एवरेस्ट
नेपाल में स्थित माउंट एवरेस्ट को पूरी दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी होने का गौरव प्राप्त है। साल भर बर्फ से ढ़का रहने वाला माउंट एवरेस्ट नेपाल हिमालय में स्थित है। नेपाल में इस शिखर को सागरमाथा के नाम से भी जाना जाता है जिसका यहाँ के स्थानीय समाज में भी अत्यधिक धार्मिक एवं आर्थिक महत्व है।
माउंट एवरेस्ट पर्वतारोहियों के लिए अंतिम लक्ष्य के समान माना जाता है जहाँ पहुंचने के पश्चात पर्वतारोही अपने जीवन की सबसे दुर्गम चढ़ाई को पार कर लेते है। माउंट एवरेस्ट का नाम इसके सर्वेक्षणकर्ता जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इस शिखर के सर्वेक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
विश्व के भूगोल में भी माउंट एवरेस्ट की भूमिका महत्वपूर्ण है यही कारण है की एवरेस्ट शिखर वैश्विक पर्यावरण के लिए भी महत्वपूर्ण है। समुद्र तल से 8848 मीटर की ऊँचाई पर स्थित माउंट एवरेस्ट चीन के तिब्बत एवं नेपाल के मध्य सीमा रेखा की भांति कार्य करता है। एवरेस्ट की सबसे ऊँची पीक को समिट (Summit) कहा जाता है।
माउंट एवरेस्ट का इतिहास
ब्रिटिशर्स द्वारा 19वीं शताब्दी से ही दुनिया की सबसे ऊँची चोटी को खोजने के प्रयास किये जा रहे थे। इसी क्रम में ब्रिटिशर्स के द्वारा हिमालय की पर्वत चोटियों का सर्वेक्षण किया गया। माउंट एवरेस्ट को पहले पीक XV के नाम से जाना जाता था। ब्रिटिशर्स द्वारा वर्ष 1802 से महान त्रिकोणमितीय सर्वे का कार्य शुरू किया गया।
जिसका अर्थ था की ब्रिटिशर्स द्वारा भारत के भूभाग समेत उत्तर में स्थिति हिमालयी चोटियों का वैज्ञानिक तरीके से मापन किया जायेगा।
हिमालय सदियों से ही नेपाल के जनजीवन का अहम् हिस्सा रहा है। नेपाल में रहने वाली शेरपा जनजाति के निवासी इस क्षेत्र एक मूल निवासी माने जाते है जो की स्थानीय संसाधनो का उपयोग करके अपना जीवन-यापन करते है।
ब्रिटिशर्स द्वारा प्रारम्भ से ही हिमालय की सबसे ऊँची चोटी को खोजने के लिए प्रयास किये जा रहे थे जिसमे कंचनजुंगा को भारत का सबसे ऊँचा शिखर एवं एवरेस्ट के मापन के पश्चात इसे हिमालय का सबसे ऊँचा शिखर घोषित किया गया।
माउंट एवरेस्ट की खोज
ब्रिटिशर्स के द्वारा सर्वप्रथम वर्ष 1830 में माउंट एवरेस्ट को मापने का प्रयास किया गया। हालांकि उस समय नेपाल साम्राज्य के साथ ब्रिटिशर्स के सम्बन्ध सही नहीं थे और 1815 में एंग्लो-नेपालीस वॉर के कारण नेपाली सरकार ब्रिटिशर्स पर भरोसा भी नहीं करती थी यही कारण रहा की 1830 में नेपाल सरकार ने अंग्रेजो को माउंटेन एवरेस्ट को मापने की अनुमति नहीं दी।
हालांकि ब्रिटिशर्स भी अपनी जिद पर अड़े रहे एवं उन्होंने तराई क्षेत्र एवं पटना के समीप से माउंट एवरेस्ट को मापने का प्रयास किया।
1830 से 1843 तक ब्रिटिश इंडिया के सर्वेयर जनरल रहे सर्वेक्षण वैज्ञानिक जार्ज एवरेस्ट ने सर्वप्रथम माउंटेन एवरेस्ट को मापने का प्रयास किया। इस दौरान उन्होंने एवरेस्ट शिखर के मापन में सभी महत्वपूर्ण गणनाएँ पूर्ण कर ली।
हालांकि वर्ष 1943 में जॉर्ज एवरेस्ट के रिटायर होने के पश्चात सर्वेक्षण दल की कमान एंड्रयू वॉ ने संभाली और इन्होने एवरेस्ट के मापन कार्य को वर्ष 1856 में पूर्ण किया। 1856 में पूर्ण एवरेस्ट मापन में एंड्रयू वॉ के अनुसार एवरेस्ट की ऊँचाई 8840 मीटर यानी की 29,002 फीट मापी गयी थी। हालांकि उस समय तक इस चोटी का नाम पीक XV था। वर्ष 1865 में इस चोटी का नाम सर्वेयर जनरल जार्ज एवरेस्ट के सम्मान में माउंट एवरेस्ट रखा गया।
माउंट एवरेस्ट का नामकरण
माउंट एवरेस्ट का वर्तमान नामकरण वर्ष 1865 में सर्वेयर जनरल जार्ज एवरेस्ट के नाम पर किया गया था परन्तु इससे पूर्व इस शिखर को पीक XV के नाम से जाना जाता था। हालांकि नेपाल की स्थानीय जनता को ब्रिटिशर्स द्वारा दिया गया नाम जार्ज एवरेस्ट पसंद नहीं था इसलिए यहाँ स्थानीय भाषा में इस चोटी को पूर्व में प्रचलित नाम “सागरमाथा” के नाम से ही पुकारा जाता है।
जिसका अर्थ होता है “सागर का मस्तक” . हिमालय के भूगोल के सन्दर्भ में देखा जाए तो वास्तव में यह चोटी सागर के माथे अर्थात मस्तक की भांति प्रतीत होती है यही कारण है की इस शिखर को नेपाल में सागरमाथा कहा जाता है।
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यह नाम नेपाल के इतिहासकार बाबू राम आचार्य द्वारा वर्ष 1930 में दिया गया है। नेपाल को तिब्बत की भाषा में चोमोलंगमा कहा जाता है जिसका अर्थ ब्रह्माण्ड की देवी होता है। संस्कृत भाषा में माउंट एवरेस्ट को देवगिरि पर्वत के नाम से सम्बोधित किया गया है।
माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई कितनी है ?
माउंट एवरेस्ट दुनिया की सबसे ऊँची चोटी है ऐसे में सभी लोगो के मन में यह सवाल आना स्वाभाविक है की माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई कितनी है ? चलिए आज आपको इसका उत्तर भी बता देते है। माउंटेन एवरेस्ट को प्रथम बार ब्रिटिशर्स के द्वारा वर्ष 1856 में मापा गया था जिस समय इसकी ऊँचाई 8840 मीटर यानी की 29,002 फीट दर्ज की गयी थी।
इसके पश्चात भी विभिन समयान्तरालो पर इस चोटी की ऊँचाई को मापने का प्रयास किया गया था। हालांकि वर्तमान में स्वीकृत सर्वमान्य ऊँचाई वर्ष 1954 में भारतीय सर्वेक्षण संस्थान द्वारा मापी गयी थी जो की 8848 मीटर (29028.87 फीट) दर्ज की गयी है।
हालांकि इसके बाद चीन द्वारा वर्ष 1975 में माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई 8848.43 मीटर एवं वर्ष 2005 में 8844.13 मीटर दर्ज की गयी थी। नेपाल सरकार द्वारा विवादों के कारण चीन द्वारा मापित इन सभी मापनो को ख़ारिज कर दिया गया था।
हालांकि वर्ष 2020 में चीन और नेपाल की सरकार के संयुक्त अभियान में माउंट एवरेस्ट की ऊँचाई को पुनः मापा गया है। इस मापन के अनुसार माउंट एवरेस्ट की नवीन ऊँचाई 8848.86 मीटर या 29031.69 फीट है। इस प्रकार से यह भारतीय सर्वेक्षण संस्थान द्वारा वर्ष 1954 में मापी गयी ऊँचाई 8848 मी. से 86 सेंटीमीटर अधिक है।
माउंट एवरेस्ट का भूगोल
माउंट एवरेस्ट हिमालय श्रेणी के महान या वृहद् या हिमाद्रि श्रृंखला में पड़ता है। हिमालय के उत्तरी भाग में स्थित माउंट एवरेस्ट 8848.86 मीटर की ऊँचाई पर स्थित विश्व का सबसे ऊँचा पर्वत शिखर है। हिमालय की उत्पति के सम्बन्ध में सबसे सर्वमान्य सिद्धांत प्लेट विवर्तनिक का सिद्धांत है।
जिसके अनुसार हिमालय की उत्पति टेथिस सागर में जमा अवसाद एवं प्लेटो की विवर्तनिक गति के कारण हुयी है। हिमालय पर्वत का निर्माण अवसादी एवं कायान्तरित चट्टानों की प्रक्रिया के फलस्वरूप हुआ है। हिमालय में पायी जाने वाली अधिकांश चट्टानें ग्रेनाइट निर्मित है। भौगोलिक दृष्टि से देखा जाए तो हिमालय दुनिया की सबसे नवीन पर्वत श्रृंखला है यही कारण है की प्रतिवर्ष हिमालय की ऊँचाई में 2 सेमी की वृद्धि दर्ज की जाती है।
माउंट एवरेस्ट की जलवायु एवं पारिस्थितिक तंत्र
महान हिमालय का हिस्सा होने के कारण माउंट एवरेस्ट की जलवायु सदैव ही शीतोष्ण एवं हिमानी रहती है। दुनिया की सबसे ऊँची चोटी होने के कारण यह क्षेत्र सदैव ही बर्फ से ढका रहता है। अधिक ऊँचाई के कारण यहाँ ऑक्सीजन की अत्यधिक कमी होती है जिससे की पर्वतारोहियों को यहाँ क्लाइम्बिंग के दौरान विभिन मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
मई माह में उत्तरी भाग में गर्मी बढ़ जाने के कारण इस क्षेत्र में जेट-स्ट्रीम धाराओं की प्रबलता होने के कारण यह क्षेत्र अन्य समय के मुकाबले उष्ण हो जाता है और यहाँ की जलवायु इस समय पर्वतारोहण के लिए उपयुक्त होती है। शीतकाल के इस क्षेत्र में बर्फीले तूफ़ान चलते है जिससे की यहाँ हवा की रफ़्तार 200 से 300 किलोमीटर हो जाती है।
उच्च हिमालय क्षेत्र में स्थित होने के कारण इस क्षेत्र में वानस्पतिक विविधता नगण्य होती है एवं यहाँ कुछ ही विरले जीव अपना जीवनयापन कर पाते है। यहाँ के पर्यावरण के अनुकूल हिमालयन याक एवं अन्य पशु-पक्षी ही इस क्षेत्र की जलवायु के अनुकूल होते है।
माउंट एवरेस्ट में पर्वतारोहण
दुनिया की सबसे ऊँची चोटी होने के कारण माउंट एवरेस्ट पर चढ़ाई करना सभी पर्वतारोहियों के लिए सपने को पूरा करने जैसे होता है। प्रत्येक पर्वतारोही अपने जीवनकाल में एक बार माउंटेन एवरेस्ट की दुर्गम चोटी को जरुर पार करना चाहता है। यही कारण है की प्रतिवर्ष हजारों पर्वतारोही एवं क्लाइम्बर एवरेस्ट फतह का जूनून लेकर इस पर्वत चोटी की चढ़ाई करते है हालांकि उनमे से अत्यधिक प्रशिक्षित एवं मजबूत पर्वतारोही ही इस मिशन में सफल हो पाते है।
माउंट एवरेस्ट में पर्वतारोहण के लिए सभी पर्वतारोहियों को कठिन प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है जहाँ उन्हें अपने शरीर को एवरेस्ट की जलवायु के अनुकूल ढालना पड़ता है। इसमें ऊँचाई के लिए अपने शरीर को तैयार करना एवं हाई-एल्टीट्यूड पर लो-लेवल ऑक्सीजन में अपने शरीर को अनुकूल बनाना शामिल है। साथ ही मेडिकल परिक्षण एवं अन्य प्रशिक्षण के पश्चात सभी पर्वतारोहियों को नेपाल सरकार से अनुमति पत्र प्राप्त करना भी आवश्यक होता है।
माउंट एवरेस्ट पर चढाई के लिए सभी पर्वतारोहियों को आवश्यक जीवन रक्षक उपकरण एवं क्लाइम्बिंग के कार्य में उपयोगी उपकरण जैसे स्नो-बूट, नायलॉन की रस्सी, ऑक्सीजन टैंक, हुक, विशेष रूप से तैयार सूट एवं ग्लास, आवश्यक भोजन एवं अन्य जरुरी उपकरण पास होना आवश्यक है। इस कार्य में यहाँ के स्थानीय निवासी शेरपा पर्वतारोहियों की सहायता करते है।
माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाले पर्वतारोही
माउंट एवरेस्ट को फतह करने के प्रयास ब्रिटिश पर्वतारोहियों के द्वारा वर्ष 1920 से ही किये जा रहे थे परन्तु विभिन मुश्किलों के कारण कोई भी पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट को लम्बे समय तक फतह नहीं कर पाया।
माउंट एवरेस्ट को आरोहण का प्रथम सफल प्रयास वर्ष 1953 में पूर्ण हुआ जब 29 मई 1953 को न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी एवं शेरपा तेनजिंग नोर्गे के द्वारा एवरेस्ट शिखर का सफल आरोहण किया गया। इस प्रकार से एडमंड हिलेरी एवं तेनजिंग नोर्गे माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाले प्रथम पर्वतारोही बने।
माउंट एवरेस्ट पर फतह करने वाली वाली प्रथम महिला जापान की जूनको तबई है जिन्होंने 16 मई 1975 को एवरेस्ट को फतह किया। एवरेस्ट को फतह करने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल है जिन्होंने 23 मई 1984 को एवरेस्ट को फतह किया। इसके बाद से सैकड़ो पर्वतारोही माउंट एवरेस्ट की चोटी पर झंडा गाड़ चुके है।
वर्तमान में पर्वतारोहियों की बढ़ती संख्या को देखते हुए नेपाल सरकार द्वारा पर्यावरण को ध्यान में रखकर माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले पर्वतारोहियों की संख्या को निश्चित किया जा रहा है जो को माउंट एवरेस्ट के पारिस्थितिक तंत्र के लिए सराहनीय कदम है।
माउंट एवरेस्ट सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
माउंट एवरेस्ट नेपाल देश में स्थित है।
दुनिया की सबसे ऊँची पर्वत चोटी माउंट एवरेस्ट है। माउंट एवरेस्ट शिखर महान हिमालय की श्रृंखला में पड़ता है।
भारतीय सर्वेक्षण संस्थान द्वारा वर्ष 1954 में किए गए सर्वेक्षण के अनुसार माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848 मीटर या 29028.87 फीट है जो की अभी तक सर्वमान्य ऊंचाई है। वर्ष 2020 में चीन-नेपाल के संयुक्त अभियान के तहत मापन में माउंट एवरेस्ट की ऊंचाई 8848.86 मीटर मानी गयी है जो की 1954 में मापी गयी ऊँचाई से 86 सेमी ज्यादा है।
माउंट एवरेस्ट का नाम ब्रिटिश भूगोलवेता एवं 1830 से 1843 तक भारत के सर्वेयर जनरल रहे जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर पड़ा था। एवरेस्ट चोटी के मापन में उनके योगदान के कारण वर्ष 1865 में इसका नाम माउंट एवरेस्ट का नाम रखा गया।
माउंट एवरेस्ट का नेपाल की स्थानीय भाषा में नाम सागरमाथा है जिसका अर्थ सागर का मस्तक होता है।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाले प्रथम पर्वतारोही न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी एवं शेरपा तेनजिंग नोर्गे है जिन्होंने 29 मई 1953 को एवरेस्ट शिखर को फ़तेह किया।
माउंट एवरेस्ट पर चढ़ने वाली प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल है जिन्होंने 23 मई 1984 को एवरेस्ट को फतह किया।
माउंट एवरेस्ट पर दो बार चढ़ने वाली भारतीय महिला संतोष यादव है जिन्होंने वर्ष 1992 एवं 1993 में एवरेस्ट को फतह किया था।