Jesus Christ कौन थे? ईसा मसीह का जन्म कब और कहाँ हुआ था? Biography in Hindi

आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको Jesus Christ कौन थे? सम्बंधित सभी जानकारी प्रदान करने वाले है। साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आप ईसा मसीह का जन्म कब और कहाँ हुआ था सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने के अतिरिक्त Jesus Christ Biography in Hindi सम्बंधित जानकारी भी प्राप्त कर सकेंगे।

ईसाई धर्म के प्रवर्तक एवं परमपिता पमेश्वर के पुत्र के रूप में मानवता का संदेश फैलाने वाले Jesus Christ का जन्मदिवस प्रतिवर्ष 25 दिसंबर को मनाया जाता है। ईसा मसीह के जन्मदिवस 25 दिसंबर के मौके पर ईसाई धर्म के सबसे बड़े त्यौहार क्रिसमस डे (Christmas Day) का आयोजन किया जाता है।

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ईसा मसीह, ईसाई धर्म के संस्थापक के रूप में सम्पूर्ण विश्व में पूजनीय है एवं क्रिश्चियन लोग उन्हें परमपिता परमेश्वर के पवित्र पुत्र के रूप में पूजा करते है। अपने अल्प जीवनकाल में ही सम्पूर्ण मानव जाति के लिए मानवता का संदेश फैलाने वाले Jesus Christ ने जगह-जगह घूमकर लोगों को साधारण भाषा में उपदेश दिए थे।

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Jesus Christ Biography in Hindi
ईसा मसीह (Jesus Christ)

Jesus Christ कौन थे?

Jesus Christ या ईसा मसीह दुनिया में ईसाई धर्म के प्रवर्तक एवं परमेश्वर पुत्र के रूप में पूजनीय है। परमेश्वर पुत्र के रूप में ईसा मसीह द्वारा सम्पूर्ण मानवता की भलाई के लिए अनेक उपदेश दिए गए एवं ईसाई धर्म की स्थापना की गयी। अपने जीवनकाल में उन्होंने आम जनता को साधारण भाषा में मानवता का संदेश दिया जिससे की सभी लोग उनके अनुयायी बनने लगे। यीशु द्वारा शुरू किए गए धर्म को ईसाई धर्म के नाम से जाना गया एवं उनकी मृत्यु के बाद उनके अनुयायियों द्वारा ईसाई धर्म का पालन किया गया।

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ईसा मसीह को इब्रानी भाषा में यीशू या येशुआ भी कहा जाता है जो की अंग्रेजी भाषा में जेशुआ तथा अपभ्रंश के कारण जीसस हो गया जिसके पश्चात ईसा मसीह को Jesus Christ के नाम से भी पुकारा जाने लगा। अपने जीवनकाल में लोगों को ईश्वर का संदेश देने वाले Jesus Christ को यहूदी एवं इस्लाम धर्म में भी वर्णित किया गया है। साधारण से मनुष्य के रूप में जन्म लेने वाले ईश्वरपुत्र द्वारा अपने जीवन को मानवता के लिए समर्पित कर दिया गया था।

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ईसा मसीह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

ईसा मसीह का जन्म की तिथि को लेकर विभिन विद्वानों में मतभेद है। हालांकि अधिकतर विद्वान् ईसा मसीह की जन्म की तारीख़ 4-6 ई.पू. में होना संभव मनाते है। ईसा मसीह का जन्म चौथी से छठी ई.पू. में फिलिस्तीन के शहर बेथलेहेम में हुआ था। इनकी माता का नाम मरियम एवं पिता का नाम युसूफ था।

ईसाई धर्म की मान्यताओं के अनुसार ईसा मसीह की माता वर्जिन मरियम विवाह से पूर्व ही ईश्वर के प्रभाव से गर्भवती हो गयी थी जिसके पश्चात उनके पिता युसूफ द्वारा मरियम से विवाह किया गया। ईसा मसीह के जन्म से पूर्व ईश्वर के दूत गैब्रियल ने मरियम को ईसा के जन्म के बारे में सूचना दे दी थी। ईसा मसीह का जन्म बेथलेहेम में एक जानवरो के तबेले में हुआ था।

ईसा मसीह के प्रारंभिक वर्ष

ईसा मसीह का जन्म होने के पश्चात उनके माता-पिता द्वारा बेथलेहेम के अत्याचारी राजा हेरोद से ईसा मसीह को बचाने के लिए मिस्र देश में प्रवास किया गया। बेथलेहेम के राजा हेरोद द्वारा 2 वर्ष से कम उम्र के सभी बच्चों को मारने के आदेश के कारण उन्हें ऐसा करना पड़ा।

राजा हेरोद की मृत्यु के बाद ईसा के माता-पिता पुनः बेथलेहेम लौट आए एवं मरियम के गाँव नाजरेथ में जाकर बस गए। कहा जाता है की मात्र 12 वर्ष की उम्र में यीशु यहूदी धर्म के पुजारियों से विचार-विमर्श करने लगे थे। इसके पश्चात अपने जीवन के प्रारंभिक वर्षो में उन्होंने अपने पिता का पुश्तैनी कार्य सीख लिया एवं बढ़ई का कार्य करने लगे।

ईसा मसीह के धार्मिक जीवन का प्रारम्भ

ईसा मसीह द्वारा 30 वर्ष की उम्र तक बढ़ई के रूप में कार्य करते हुए साधारण जीवन व्यतीत किया गया। 30 वर्ष की उम्र में उन्होंने  यूहन्ना (जॉन) नामक संत के बपतिस्मा अर्थात धर्म की दीक्षा ली एवं लोगों को उपदेश देना प्रारम्भ कर दिया। ईसा आम लोगो को साधारण भाषा में उपदेश देते थे एवं ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बतलाते थे।

यीशु द्वारा स्वयं को ईश्वर पुत्र के रूप में लोगो के उद्धार हेतु समर्पित कर दिया। यहूदी पुजारियों द्वारा व्याप्त जटिल कर्मकांड एवं अन्धविश्वास की जगह यीशु ने नैतिकता एवं प्रेम को ईश्वर का मार्ग बताया। रोमन साम्राज्य के अत्याचारों से त्रस्त जनता को यीशु के सरल उपदेशों ने अत्यधिक आकर्षित किया एवं जनता उन्हें उद्धारक के रूप में पूजने लगी। यीशु को मसीहा का अवतार मानकर जनता द्वारा उनके उपदेशों का पालन किया जाने लगा एवं ईसाई धर्म का उद्भव हुआ।

ईसा मसीह का क्रूशिफिकेशन

अपने सरल उपदेशों एवं नैतिक जीवन के आधार पर ईश्वर को प्राप्त करने के मार्ग दिखाने वाले यीशु मसीह जल्दी ही आमजनों के बीच प्रसिद्ध हो गए। यीशु जहाँ भी जाते लोग उनके उपदेशों को ध्यान से सुनते एवं उनके उपदेशों का पालन करते। हालांकि कट्टर यहूदी नेताओं के द्वारा यीशु द्वारा स्वयं को ईश्वर पुत्र कहना जरा भी रास नहीं आया एवं उन्होंने इसकी शिकायत रोमन सम्राट से की जिसके पश्चात राजा पोंटियंस के आदेश पर रोमन गवर्नर पिलातुस द्वारा शुक्रवार के दिन ईसा मसीह को सूली पर लटका दिया गया जिसे की क्रूशिफिकेशन कहा जाता है।

हालांकि अपनी मृत्यु के 3 दिन पश्चात ही यीशु पुनः जीवित हो उठे। इस घटना को ईसाई धर्म में संडे ईस्टर के रूप में मनाया जाता है। ईसाई मान्यताओं के अनुसार पुनः जीवित होने के पश्चात यीशु 40 दिनों के बाद स्वर्ग चले गए थे। उनके उपदेशों एवं शिक्षाओ के आधार पर एक नवीन धर्म ईसाई धर्म का उदय हुआ।

Jesus Christ कौन थे सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

Jesus Christ कौन थे?

Jesus Christ ईसाई धर्म के प्रवर्तक एवं परमेश्वर पुत्र के रूप ईसाई धर्म में पूजनीय है जिनके द्वारा ईसाई धर्म की स्थापना की गयी थी। अपने जीवन में नैतिकता एवं मानवीय गुणों के आधार पर ईश्वर प्राप्ति का मार्ग बताने वाले Jesus Christ को ईसाई धर्म के संस्थापक के रूप में जाना जाता है।

ईसा मसीह का जन्म कब और कहाँ हुआ था?

ईसा मसीह का जन्म 4-6 ई.पू. में फिलिस्तीन के शहर बेथलेहेम में हुआ था। ईसाई मान्यताओं के अनुसार ईश्वर के प्रभाव से इनकी माता मरियम विवाह से पूर्व ही गर्भवती हो गयी थी जिसके पश्चात ईश्वर दूत गैब्रियल द्वारा मरियम को एक पवित्र आत्मा एवं ईश्वर पुत्र यीशु को जन्म देने की बात बताई गयी थी। यीशु का जन्म जानवरो के तबेले में हुआ था।

ईसा मसीह के माता-पिता का क्या नाम था ?

ईसा मसीह की माता का नाम वर्जिन मरियम या मेरी था एवं पिता का नाम युसूफ था।

ईसा मसीह द्वारा किस धर्म की स्थापना की गयी थी ?

ईसा मसीह द्वारा ईसाई धर्म की स्थापना की गयी थी।

ईसा मसीह द्वारा उपदेशक के रूप में किस उम्र से शिक्षा देना प्रारम्भ किया गया था ?

ईसा मसीह द्वारा उपदेशक के रूप में 30 वर्ष की उम्र के पश्चात शिक्षा देना प्रारम्भ किया गया। 30 वर्ष तक बढ़ई के कार्य में संलग्न यीशु द्वारा यूहन्ना (जॉन) नामक संत के बपतिस्मा ग्रहण कर उपदेश देना प्रारम्भ किया गया।

ईसा मसीह का क्रूशिफिकेशन किसके द्वारा किया गया ?

ईसा मसीह को सूली पर राजा पोंटियंस के आदेश पर रोमन गवर्नर पिलातुस द्वारा शुक्रवार के दिन सूली पर लटकाया गया था। अपनी मृत्यु के 3 दिन पश्चात यीशु जीवित हो गए थे।

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