स्वर्ण मंदिर को कब और किसने बनवाया? स्वर्ण मंदिर का इतिहास (Golden Temple History)

सिक्खों के सबसे पवित्र स्थान के रूप में पूजित स्वर्ण मंदिर दुनिया के करोड़ों सिक्ख अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। पंजाब के अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर को हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिदिन लाखों श्रद्धालु इस पवित्र स्थल का दर्शन करने के लिए आते है। स्वर्ण से निर्मित स्वर्ण मंदिर सिक्ख धर्म की पवित्रता एवं निरंतरता का जीवंत प्रतीक है जो की गुरु नानक के संदेशों को सम्पूर्ण मानवता के हित में प्रसार करने का प्रमुख केंद्र है।

सिक्ख धर्म के प्रमुख केंद्र के रूप में स्थापित स्वर्ण मंदिर स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना प्रदर्शित करता है। करोड़ों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र स्वर्ण मंदिर सभी धर्म के अनुयायियों के मध्य प्रसिद्ध है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से आपको बताने वाले है की स्वर्ण मंदिर को कब और किसने बनवाया? साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आपको स्वर्ण मंदिर का इतिहास (Golden Temple History) से सम्बंधित अन्य सभी महत्वपूर्ण बिंदुओं से भी अवगत कराया जायेगा।

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स्वर्ण मंदिर को कब और किसने बनवाया? स्वर्ण मंदिर का इतिहास (Golden Temple History In Hindi)
स्वर्ण मंदिर को कब और किसने बनवाया? स्वर्ण मंदिर का इतिहास (Golden Temple History In Hindi)

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स्वर्ण मंदिर: सिक्खों की आस्था का केंद्र

पंजाब की सांस्कृतिक राजधानी अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर सम्पूर्ण दुनिया में बसे करोड़ों सिक्ख अनुयायियों की आस्था का केंद्र है। स्वर्ण मंदिर को दरबार साहिब एवं हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है। प्रतिदिन देश एवं दुनिया भर के लाखों श्रद्धालु इस पवित्र गुरूद्वारे का दर्शन करने आते है एवं गुरु नानक के मानवता के संदेशों एवं विचारों से अवगत होते है। दरबार साहिब के द्वार बिना किसी जात-पाँत एवं धार्मिक पहचान के सभी धर्म के लोगों के लिए खुले है एवं कोई भी पवित्र मन से आकर इस पवित्र गुरूद्वारे का दर्शन कर सकता है।

सिक्खों की आस्था के केंद्र स्वर्ण मंदिर का इतिहास भी विभिन्न आश्चर्यों से भरा हुआ है। इतिहास में विभिन्न आक्रमणकारियों एवं हमलों का सामना करने के बावजूद भी स्वर्ण मंदिर पुनः अपने गौरव के साथ खड़ा हुआ है। स्वर्ण की परत से निर्मित स्वर्ण मंदिर सिक्ख धर्म के पवित्र संदेशों के प्रसार का प्रमुख वाहक बना है।

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स्वर्ण मंदिर का इतिहास

स्वर्ण मंदिर का इतिहास लगभग 400 वर्ष पुराना माना जाता है। स्वर्ण मंदिर के निर्माण का इतिहास सिक्खों के चौथे गुरु, गुरु रामदास के समयकाल से शुरू माना जाता है। स्वर्ण मंदिर के निर्माण की नींव गुरु रामदास के द्वारा 1577 ई. में रखी गयी थी। इसके पश्चात सिक्खों के पाँचवें गुरु, गुरु अर्जन सिंह के द्वारा 15 दिसंबर, 1588 से इस मंदिर का निर्माण कार्य शुरू करवा दिया गया था। इस मंदिर के निर्माण को विभिन्न चरणों में पूरा किया जाता रहा है। हरमंदिर साहिब के निर्माण कार्य 1604 में पूर्ण हुआ था एवं 16 अगस्त, 1604 को इस गुरूद्वारे में गुरु ग्रंथ साहिब को स्थापित किया गया।

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अन्य तथ्यों के अनुसार कहा जाता है की मुग़ल बादशाह अकबर सिक्खों के तीसरे गुरु, गुरु अमरदास के मिलने पंजाब आये थे। यहाँ सिक्खों धर्म की लंगर व्यवस्था एवं सभी धर्म के लोगों का बिना किसी भेदभाव के आदर एवं सम्मान देखकर अकबर ने गुरु पुत्री बीवी भानी को 500 बीघा भूमि दान दी थी। इस भूमि पर गुरु पुत्री बीवी भानी के पति एवं सिक्खों के चौथे गुरु, गुरु रामदास ने अमृतसर नामक जलाशय का निर्माण करवाया एवं आधुनिक अमृतसर नगर की नींव रखी। साथ ही गुरु रामदास द्वारा स्वर्ण मंदिर की नींव रखी गयी जिसका निर्माण कार्य गुरु अर्जन सिंह 1588 से शुरू करवाया गया। वर्ष 1604 में स्वर्ण मंदिर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।

स्वर्ण मंदिर का आधुनिकीकरण

आधुनिक इतिहास में स्वर्ण मंदिर को कई बार विभिन्न विदेशी हमलावरों का सामना करना पड़ा है। इस क्रम में इस मंदिर को कई बार हानि पहुँचायी गयी है परन्तु हर बार स्वर्ण मंदिर अपने पुराने गौरव में निर्मित किया गया है। वर्ष 1762 में सिक्ख एवं इस्लाम के अनुयायियों के मध्य विवाद के चलते स्वर्ण मंदिर को ध्वस्त किया गया था। अफगान आक्रमणकारियों के द्वारा भी इस गुरूद्वारे को नष्ट किया गया था परन्तु इसके बावजूद भी यह गुरुद्वारा अपने भव्य रूप में निर्मित किया गया।

आधुनिक स्वर्ण मंदिर के निर्माण का श्रेय महाराज सरदार जस्सा सिंह अहलुवालिया को जाता है जिनके द्वारा इस मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया था। वर्ष 1776 में इस मंदिर के मार्ग, गर्भगृह एवं नवीन प्रवेश द्वार जबकि 1784 में तालाब में चारों ओर सरोवर का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ। महाराजा रणजीत सिंह द्वारा स्वर्ण मंदिर को स्वर्ण से सजाने का वादा किया गया था जिसके परिणामस्वरूप वर्ष 1830 में इस कार्य को पूर्ण करने हेतु महाराजा रणजीत सिंह द्वारा स्वर्ण दान किया गया था।

पवित्र सरोवर है अमृत तुल्य

स्वर्ण मंदिर पवित्र अमृतसर झील के मध्य में निर्मित किया गया है। इस झील को अमृतसर के नाम से जाना जाता है जिसका अर्थ अमृत का सरोवर होता है। इस सरोवर का जल अमृत के समान पवित्र माना जाता है। अमृतसर को अमृत सरोवर और अमृत झील के नाम से भी जाना जाता है। इस सरोवर का निर्माण गुरु रामदास जी द्वारा करवाया गया था। पवित्र हरमंदिर साहिब के दर्शन से पूर्व श्रद्धालु गण इस सरोवर में स्नान करते है। श्रद्धालुओं में यह मान्यता है की इस सरोवर में स्नान करने से विभिन्न रोग दूर हो जाते है।

अमृत सरोवर के नाम पर ही अमृतसर शहर को यह नाम मिला है। स्वर्ण मंदिर में स्थित अमृत सरोवर के जल को सिक्ख धर्म में पवित्र एवं समस्त रोगों का नाश करने वाला माना गया है। इस सरोवर का आध्यात्मिक दृष्टि से भी अत्यंत महत्व है।

500 किलो स्वर्ण से निर्मित है स्वर्ण मंदिर

स्वर्ण मंदिर को यह नाम इसके स्वर्ण से निर्मित होने के कारण मिला है। प्रारम्भ में जब हरमंदिर साहिब का निर्माण किया गया तो यह गुरुद्वारा संगमरमर से निर्मित था। वर्ष 1830 में सिक्खों के वीर शासक महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा हरमिंदर साहिब को 500 किलोग्राम स्वर्ण दान दिया गया जिससे पश्चात इसके गुम्बद एवं दीवारों को स्वर्ण से सजाने के कारण इस गुरूद्वारे को स्वर्ण मंदिर के नाम से भी जाना जाने लगा। स्वर्ण मंदिर को सोने की खूबसूरत परतों से सजाया गया है एवं इस मंदिर के निर्माण में उपयोग किया गया सोना शुद्ध 24-कैरेट स्वर्ण है। स्वर्ण मंदिर के निर्माण में प्रयुक्त सोने की परतों से इस मंदिर की दीवारों पर खूबसूरत नक्काशी की गयी है जो की इसे स्वर्णिम आभा प्रदान करती है।

शिल्प सौंदर्य की अद्भुत मिसाल

स्वर्ण मंदिर अपनी आध्यात्मिकता एवं पवित्र के कारण सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध है। हालांकि शिल्प सौंदर्य की बात की जाए तो यह गुरुद्वारा दुनिया के सबसे खूबसूरत एवं नक्काशीदार गुरुद्वारों में से एक है। स्वर्ण मंदिर का शीर्ष गुम्बद पूर्ण रूप से स्वर्ण निर्मित है जहाँ गुरूद्वारे के अन्य पैनलों को भी सोने की खूबसूरत नक्काशीदार पैनलों से ढका गया है। अमृतसरोवर में स्वर्ण से निर्मित मंदिर की झिलमिल छाया इसे और भी ख़ास बनाती है।

अमृत सरोवर के केंद्र में निर्मित स्वर्ण मंदिर को पूर्ण रूप से संगमरमर के द्वारा निर्मित किया गया है जहाँ दो मुख्य बड़े परिसर एवं कई अन्य छोटे-छोटे परिसर है। हरमंदिर साहिब का मुख्य मंदिर स्वर्ण मंदिर का निर्माण पवित्र अमृत सरोवर के मध्य भाग में किया गया है। इस सरोवर में स्नान करने के पश्चात ही श्रद्धालुजन स्वर्ण मंदिर के दर्शन करते है।

स्वर्ण मंदिर में प्रवेश के लिए कुल चार द्वारों का निर्माण किया गया है जो की पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं दक्षिण चारों दिशाओं में निर्मित है। स्वर्ण मंदिर में निर्मित इन चारों द्वारों का अर्थ है की हरमंदिर साहिब बिना भेदभाव के सभी जाति एवं धर्म के लोगों का गुरुद्वारे में स्वागत करता है। सिक्ख धर्म में समानता को प्रमुख स्थान दिया गया है ऐसे में जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लिए स्वर्ण मंदिर के प्रवेश द्वार सभी आगंतुको का बिना भेदभाव के स्वागत करते है।

स्वर्ण मंदिर: दुनिया की सबसे बड़ी रसोई

स्वर्ण मंदिर सम्पूर्ण दुनिया में अपने अनोखे लंगर के लिए भी जाना जाता है। लंगर को सिक्ख धर्म में एक पवित्र एवं महत्वपूर्ण अंग माना गया है ऐसे में स्वर्ण मंदिर में आने वाले सभी श्रद्धालुओं के लिए लंगर छकने की व्यवस्था होती है। स्वर्ण मंदिर की रसोई को विश्व की सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई एवं यहाँ लगने वाले लंगर को विश्व का सबसे बड़ा लंगर माना जाता है। प्रतिदिन स्वर्ण मंदिर के लंगर में 1,00,000 लोग लंगर खाते तो जो इसे दुनिया का सबसे बड़ा कम्युनिटी किचन बनाते है। स्वर्ण मंदिर के लंगर की सबसे ख़ास बात यह है की यह लंगर पूर्ण रूप से लोगों द्वारा दिए गए दान के आधार पर संचालित की जाती है। लंगर प्रथा को सिक्खों के प्रथम गुरु, गुरु नानक देव जी द्वारा शुरु किया गया था।

ऑपरेशन ब्लू स्टार की कहानी

वर्ष 1984 का वर्ष स्वर्ण मंदिर के इतिहास के सबसे स्याह वर्षों में से एक माना जाता है। इस वर्ष कट्टरपंथियों के द्वारा स्वर्ण मंदिर पर कब्ज़ा कर लिया गया था जिसके परिणामस्वरूप इंडियन आर्मी को इस मंदिर को कट्टरपंथियों से मुक्त करने के लिए स्पेशल ऑपरेशन लांच करना पड़ा था। इस ऑपरेशन का नाम इंडियन आर्मी के द्वारा ऑपरेशन ब्लू स्टार (Operation Blue Star) रखा गया था। भारतीय सेना द्वारा इस ऑपरेशन को 1 जून से 8 जून के मध्य लांच किया गया एवं इसके परिणामस्वरूप स्वर्ण मंदिर में भीषण रक्तपात हुआ था। अंततः भारतीय सेना द्वारा स्वर्ण मंदिर को कट्टरपंथियों के कब्जे से मुक्त कराया गया। इस घटनाक्रम के दौरान स्वर्ण मंदिर की विभिन्न ऐतिहासिक एवं धार्मिक धरोहरों को भी नुकसान पहुँचा था। हालांकि इसके पश्चात पुनः स्वर्ण मंदिर को इसके भव्य रूप में पुनर्निर्मित किया गया। वर्तमान में देश एवं दुनिया के करोड़ों श्रद्धालु प्रतिवर्ष इस पवित्र स्थान के दर्शन करने आते है।

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स्वर्ण मंदिर से जुड़े अद्भुत तथ्य

धार्मिक, ऐतिहासिक, आध्यात्मिक एवं स्थापत्य कला की दृष्टि से स्वर्ण मंदिर दुनिया के सबसे पवित्र धार्मिक स्थलों में से एक है। स्वर्ण मंदिर के द्वार सभी धर्म के लोगों के लिए खुले है जहाँ बिना किसी भेदभाव के सभी लोगों की सेवा की जाती है। यहाँ आपको स्वर्ण मंदिर से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानकारी प्रदान की गयी है :-

  • स्वर्ण मंदिर का निर्माण 17वीं शताब्दी में बाबा रामदास जी एवं गुरु अर्जन सिंह जी के द्वारा अमृतसर शहर में किया गया था। अमृतसर शहर को यह नाम स्वर्ण मंदिर में स्थित अमृतसर या अमृत सरोवर नामक सरोवर के नाम पर मिला है।
  • स्वर्ण मंदिर के निर्माण में 500 किलोग्राम स्वर्ण का उपयोग किया गया है जिसे सिक्ख शासक महाराजा रणजीत सिंह के द्वारा प्रदान किया गया था। स्वर्ण मंदिर के निर्माण में 24 कैरेट शुद्ध स्वर्ण का उपयोग किया गया है।
  • स्वर्ण मंदिर में स्थित रसोई को दुनिया की सबसे बड़ी रसोई होने का गौरव प्राप्त है। साथ ही यहाँ लगने वाली लंगर भी दुनिया की सबसे बड़ी लंगर है जहाँ प्रतिदिन 1 लाख लोग लंगर छकते है।
  • अमृत सरोवर के मध्य में निर्मित स्वर्ण मंदिर के जल को अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस जल में स्नान करने के विभिन्न प्रकार के रोगों से मुक्ति मिलती है।
  • स्वर्ण मंदिर में ही सिक्खों के न्याय एवं खालसा के अधिकार की सर्वोच्च गद्दी के रूप में स्थापित अकाल तख़्त स्थित है जिसका निर्माण वर्ष 1604 में छठे सिक्ख गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह के द्वारा करवाया गया था।

स्वर्ण मंदिर के इतिहास सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

स्वर्ण मंदिर कहाँ स्थित है ?

स्वर्ण मंदिर पंजाब राज्य के अमृतसर में स्थित है।

स्वर्ण मंदिर को और किस नाम से जाना जाता है ?

स्वर्ण मंदिर को दरबार साहिब एवं हरमंदिर साहिब के नाम से भी जाना जाता है जिसका निर्माण गुरु रामदास एवं गुरु अर्जन सिंह द्वारा करवाया गया था। स्वर्ण मंदिर को स्वर्ण से सुसज्जित करने के श्रेय महाराजा रणजीत सिंह को दिया जाता है।

स्वर्ण मंदिर के इतिहास सम्बंधित जानकारी प्रदान करें ?

स्वर्ण मंदिर के इतिहास सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने के लिए ऊपर दिया गया आर्टिकल पढ़े। यहाँ आपको Golden Temple History in Hindi सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गयी है।

दुनिया की सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई कहाँ स्थित है ?

दुनिया की सबसे बड़ी सामुदायिक रसोई स्वर्ण मंदिर में स्थित है जो की प्रतिदिन 1 लाख लोगो के लिए भोजन तैयार करती है।

दुनिया का सबसे बड़ा लंगर कहाँ लगता है ?

दुनिया का सबसे बड़ा लंगर स्वर्ण मंदिर में लगता है जहाँ प्रतिदिन 1,00,000 लोग लंगर खाते है।

अकाल तख़्त कहाँ स्थित है ?

अकाल तख़्त अमृतसर में स्थित स्वर्ण मंदिर में स्थित है। इसका निर्माण वर्ष 1604 में छठे सिख गुरु, गुरु हरगोबिंद सिंह के द्वारा करवाया गया था जो की पांच तख्तों में प्रथम तख़्त है।

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