तो हेलो दोस्तों आप सभी लोगो ने श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के बारे में तो सुना ही होगा। तो क्या आप में से कोई व्यक्ति उनके पुत्र के बारे में जानता है। जी हाँ छत्रपति शिवाजी महाराज के पुत्र का नाम छत्रपति संभाजी महाराज था। वह भी अपने पिता की ही तरह एक महान राजा थे।
उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन हिंदुत्व की सेवा में प्रदान कर दिया था। संभाजी महाराज बचपन से ही बहुत ज्ञानी थे उन्होंने अपने जीवन में बहुत सी चीजे बचपन में ही सीखली थी। इन्होने अपने जीवन में जितने युद्ध लड़े हैं यह उन सभी युद्ध में से एक भी युद्ध नहीं हारे इन्होने सभी युद्धों में विजय प्राप्त की है।
तो दोस्तों आज हम आप सभी को श्री छत्रपति संभाजी महाराज के बारे में इस लेख के द्वारा बहुत सी जानकारी देने वाले हैं। जैसे की संभाजी महाराज की शिक्षा, संभाजी महाराज का जीवन परिचय आदि जैसी जानकारी आप सभी को प्रदान करने वाले हैं।
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तो अगर आप भी संभाजी महाराज के बारे में जानना चाहते हो और उनके बारे में जानकारी भी प्राप्त करना चाहतें हो तो उसके लिए आपको इस लेख को अंत तक ध्यानपूर्वक पढ़ना होगा।
छत्रपति संभाजी महाराज का जीवन परिचय
छत्रपति संभाजी का जन्म पुरंदर किले में 14 मई 1657 में हुआ था। छत्रपति संभाजी महाराज का पालन पोषण उनकी दादी के द्वारा किया गया जिनका नाम जीजाबाई था। क्योंकि संभाजी महाराज जी की माता का देहांत उनके जन्म के दो साल के पश्चात हो गया था।
जैसा की आप सभी को पता है की इनके पिता का नाम श्री छत्रपति शिवाजी महाराज था और इनकी माँ का नाम सईबाई था। बचपन में संभाजी महाराज को प्यार से सब छवा कहकर बुलाते थे। छवा नाम का मतलब होता है की शेर के बच्चे को छवा नाम से जाना जाता है। संभाजी महाराज को केवल एक नहीं बल्कि 13 अन्य भाषाओं का ज्ञान था।
छत्रपति शिवाजी महाराज की तीन पत्नीयां थी जिनका नाम सोयरा, साईबाई और पुतळाबाई था जिसमे से संभाजी महाराज उनकी दूसरी पत्नी के पुत्र थे। संभाजी महाराज की शादी यानि के विवाह येसूबाई के साथ हुआ था।
इनका एक पुत्र भी था जिसका नाम साहू था। संभाजी महारज के कई भाई व बहन भी थी जिनका नाम कुछ इस प्रकार है – राजकुंवरबाई, शकुबाई, रणुबाई जाधव, दीपाबाई, कमलाबाई और इनका अनुज का नाम राजाराम छत्रपति था।
छत्रपति संभाजी महाराज को बचपन से ही घुड़सवारी, तलवारबाजी और तो और तीरंदाजी में माहिर थे। जब छत्रपति संभाजी महाराज केवल 9 वर्ष के थे तब उन्हें जय सिंह जी के साथ रहने के लिए भेज दिया था जो की अम्बेर के राजा थे। उनको उनके साथ रहने के लिए इसलिए भेजा था ताकि वे राजनैतिक दाव भी सीख सकें।
जब छत्रपति महाराज का विवाह हुआ था तब उनकी पत्नी का नाम जीवुबाई था जिनका नाम विवाह के पश्चात बदल गया और जीवुबाई से उनका नाम येसुबाई हो गया था, संभाजी महाराज का विवाह एक राजनीतिक सम्बन्ध था क्योंकि येसुबाई के पिता जिनका नाम पिलावजीराव शिर्के था। पिलावजीराव शिर्के युद्ध में देशमुख राव राणा सूर्य से हार गए थे। उसके युद्ध में हारने के पश्चात ही येसुबाई के पिता पिलावजीराव छत्रपति शिवाजी की शरण में आ गये थे।
छत्रपति संभाजी महाराज जी को दो संताने प्राप्त हुई जिनमे से एक पुत्री और एक पुत्र था। संभाजी महाराज की पुत्री का नाम भवानीबाई था और उनके पुत्र का नाम साहू था। बताया यह भी जाता है की छत्रपति संभाजी कभी एक भी युद्ध में उनको कभी पराजय नहीं हुई उन्हें हमेशा विजय ही प्राप्त हुई है।
Chatrapati Sambhaji के जीवन के कुछ मुख्य बिंदु
विषय का नाम | छत्रपति संभाजी का जीवन परिचय |
जन्म तिथि | 14 मई 1657 |
जन्म स्थान | पुरंदर किले में |
पिता का नाम | छत्रपति शिवाजी महाराज |
माता का नाम | साईबाई |
पत्नी का नाम | येसुबाई |
धर्म | हिन्दू |
आयु | 31 वर्ष |
पुत्र का नाम | साहू |
पुत्री का नाम | भवानीबाई |
भाई का नाम | राजाराम छत्रपति |
बहनों का नाम | अम्बिकाबाई,राणुबाई,दीपाबाई,कमलाबाई,सखुबाई,राजकुँवरी |
मृत्यु | 11 मार्च 1689 |
छत्रपति शिवाजी और छत्रपति संभाजी के मध्य सम्बन्ध
आपको यह भी बता दे की छत्रपति शिवाजी और छत्रपति संभाजी के बीच के सम्बन्ध कुछ ठीक नहीं थे मतलब की इन दोनों बेटे और पिता की आपस में बिलकुल भी जमती नहीं थी जिसका भी एक कारण है .
उनका अनुज राजा राम क्योंकि छत्रपति संभाजी की दूसरी माँ यानि के सौतेली माँ सोयराबाई अपने पुत्र यानि के राजा राम को उस राज्य का उत्तराधिकारी बनाना चाहती थी। और इसी वजह से उन पिता और बेटे की आपस में बिलकुल भी नहीं बनती थी।
छत्रपति संभाजी महाराज ने कई बार अपनी बहादुरी एवं अपने गौरव का प्रदर्शन किया परन्तु छत्रपति शिवाजी महाराज को उन पर कभी विश्वास ही न हुआ।
एक बार तो ऐसा भी हुआकि किसी कारण छत्रपति शिवाजी ने संभाजी को एक सजा सुनाई परन्तु संभाजी महाराज उस सजा से बचने के लिए वह मुग़लों से जाकर मिल भी गए थे। और उस समय के दौरान शिवाजी महाराज को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पढ़ा था।
परन्तु जब संभाजी महाराज ने मुग़लों को हिन्दुओं पर अत्याचार जरते हुए देखा तब संभाजी महाराज पर रहा नहीं गया और वह लौट कर अपने पिता श्री छत्रपति शिवाजी महाराज के पास आगये थे और उन्होंने अपने पिता से माफ़ी भी मांगी थी।
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छत्रपति शिवाजी के द्वारा संभाजी महाराज को गिरफ्तार किया गया
छत्रपति शिवजी ने संभाजी महाराज को गिरफ्तार इसलिए किया था क्योंकि जब संभाजी महाराज 21 वर्ष के तब संभजी महाराज कामुक सुख के शिकार हो गए थे। उनकी इस प्रकार के व्यवहार को देखकर छत्रपति शिवजी महाराज बहुत नाराज हुए और उन्होंने संभाजी महाराज को बंदी बनाने का हुक्म दे दिया था,और उन्हें पन्हाला किले के भीतर कैद कर दिया था।
उस समय संभाजी महाराज अपनी पत्नी येसुबाई को उस किले से लेकर वहां से भाग कर वे मुग़लों के पास चले गए थे। और महलों के पास जाने के पश्चात संभाजी महाराज ने देशद्रोह का रास्ता अपना लिया था जिससे शिवाजी महाराज को बहुत कष्ट पंहुचा था।
संभाजी और कवी कलश
जिस समय संभाजी महाराज औरंगज़ेब के पास से भाग कर आ रहे थे तब संभाजी महाराज शिवाजी महाराज के मंत्री के दूर के रिश्तेदारों रघुनाथ कोर्डे यहाँ ठहर गए थे। संभाजी महाराज उन के साथ करीब एक से डेढ़ साल बिताये उस समय संभाजी महाराज ने उस स्थान पर उन्होंने एक साधारण ब्राह्मण के रूप में बिताया था।
वहाँ पर रहने के दौरान ही संभाजी की मुलाक़ात कलश से हुई। उसके बाद संभाजी महाराज ने संस्कृत भाषा का भी ज्ञान प्राप्त किया। फिर संभाजी और कलश बहुत अच्छे मित्र बन गए थे। केवल कलश ही संभाजी को समझते थे एवं कलश ही उनके क्रोध को संभल सकते थे। फिर जब संभाजी राजा बने तो संभाजी ने कलश को ही अपना सलाहकार रखा।
छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के पश्चात संभाजी बने उत्तराधिकारी
छत्रपति शिवाजी महाराज की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को हुई थी। उस समय सम्बाहजी महाराज को पन्हाला किले के भीतर देख रेख में रखा गया था। और शिवाजी की मृत्यु के पश्चात सभी के मन में यह प्रश्न उठा की उत्तराधिकारी कौन होगा जो की शिवाजी के पद को संभालेगा और फिर बात राजा राम को उत्तराधिकारी बनाने की बात हुई जो की संभाजी की सौतेली माँ सोयराबाई का बेटा था।
परन्तु जिस समय शिवाजी की मृत्यु हुई और राजा राम को राजा बनाने की बात हुई तब राजा राम की आयु केवल 10 वर्ष थी। परन्तु तब भी सभा के सभी लोग इस बात से सहमत हो गए की राजा राम ही उत्तराधिकारी बनेगा।
लेकिन जब इस खबर के बारे में संभाजी को पता चला तब 27 अप्रैल 1680 के दौरान ही संभाजी ने पन्हाला किले पर ही अपना अधिकार जमा लिया। और उसके बाद 18 जून 1680 को संभाजी ने रायगढ़ के किले पर भी अपना कर लिया।
उन दोनों किलों पर अपना अधिकार ज़माने के पश्चात 20 जुलाई 1680 को संभाजी ने अपना राजगद्दी पर भी अधिकार कर लिया। फिर उन्होंने स्वयं को मराठा का सम्राट घोषित कर दिया। संभाजी के राजा बनने के पश्चात संभाजी ने अपनी सौतेली माँ और अपने अनुज यानि के राजा राम और बहुत से मंत्रियों को बंधी बना लिया था।
Chatrapati Sambhaji Maharaj के युद्ध
छत्रपति संभाजी महाराज एक बहुत ही वीर योद्धा थे उन्होंने बहुत सी लड़ाईया लड़ी थी जिनमे से वह एक भी युद्ध नहीं हारे थे। संभाजी महाराज ने अपने जीवन का पहला युद्ध तब लड़ा था तब वह केवल 16 वर्ष के थे।
तब भी उन्होंने विजय प्राप्त की थी। बताया यह भी जाता है की छत्रपति संभाजी महाराज युद्ध में अपनी तलवार से लड़ते थे जिसका वजन 65 किलो बताया जाता है। संभाजी महाराज ने अपने सम्पूर्ण जीवन में 120 युद्ध लड़े जिसमे से वह एक भी युद्ध हारे नहीं थे।
संभाजी महाराज के पिता के मृत्यु के बाद उन्होंने मुग़लों को बहुत ही परेशां किया और तो और उनकी नाक में दम कर दिया था। उस समय उनका सबसे मुख्य व सबसे बड़ा दुश्मन एक ही था जिसका नाम औरंगजेब था।
छत्रपति शिवाजी की मृत्यु के बाद सभी मराठों को बहुत सी कठिनाइयों का सामना करना पढ़ा था। और उसके पश्चात औरंगजेब को लगा की शिवाजी की मृत्यु के बाद उनका पुत्र संभाजी उनके सामने अधिक समय तक टिक नहीं पायेगा। और औरंगजेब ने मराठा राज्यों की तरफ आक्रमण करना शुरू किया।
1682 में मुग़लों ने रामसेइ पर कब्जा करने का प्रयास किया परन्तु मुग़लों का यह प्रयास करीब 5 महीने इ समय तक चला भी उस प्रयास में सफल न हो सके। परन्तु 1687 में मराठो की सेना मुग़लों के सामने कमजोर साबित होने लगी थी ,
मराठा के सेनापति हम्बीराव मोहिते उस युद्ध के दौरान शहीद हो गए थे,सेनापति की मृत्यु के पश्चात सभी सैनिक घबरा गए थे। और उस समय के दौरान संभाजी संघमेश्वर में 1689 में वह मुग़लों के द्वारा पकडे गए थे।
Chatrapati Sambhaji Maharaj पर Aurangzeb का अत्याचार
जब संभाजी और कलश को मुग़लों के द्वारा बंधी बना लिया गया तब उन् दोनों को मुग़लों ने जेल में डाल दिया था और वहां पर मुगलों ने उन दोनों को इस्लाम कबूल करने के लिए मजबूर करने लगे।
उसके बाद जब औरंगजेब ने देखा की संभाजी को बंधी बना लिया गया है तब औरंजेब ने कहा की शिवाजी के बेटे को मेरे सामने प्रस्तुत होना ही मेरे लिए एक बहुत बड़ी उपलब्धि है और फिर वह अपने अल्लाह को याद करने लगा। और यह सब देहकर कलश बोले की यह देखिये मराठा नरेश औरंगजेब खुद अपना सिंघासन छोड़कर आपको नतमस्तक हुआ है। यह बात सुनकर औरंगजेब क्रोधित हो गया।
उसके बाद मुग़लों ने यह कहा की अगर तुम इस्लाम कबूल करते हो तो तुम्हरी ज़िन्दगी बक्श दी जाएगी। लेकिन संभाजी ने इस बात से इंकार कर दिया। उसके बाद मुग़लों ने उनपर अत्याचार करना आरम्भ कर दिया।
मुग़लों ने संभाजी एवं कलश को एक टोपी पहनाई जिसमे घंटी लगी हुई थी और टोपी पहनकर उन्होंने उन दोनों को ऊंट के पीछे बांधकर उनको तुलापुर के बाजार में घसीटा गया,जहाँ -जहाँ से उनको ले जाया गया वहा सभी लोग उनपर थूक रहे थे।
लेकिन तब भी संभाजी और कलश ने इस्लाम न कबूलक क्योंकि उनकी नज़र में अब भी हिन्दू धर्म सबसे बड़ा था और उन्होंने तब भी इनकार कर दिया।
Chatrapati Sambhaji Maharaj की मृत्यु
संभाजी और कलश ने इस्लाम न कबूला तो इस बात पर औरंगजेब क्रोधित था और तब उसने संभाजी और कलश के सभी घाव पर नमक छिड़कने का आदेश दिया और उनको अपने सिंघासन तक घसीट कर लेने का हुक्म दिया।
औरंगजेब ने उन दोनों की जीभ को काटकर अपने सिंघासन के आगे डालने का हुक्म दिया फिर उसने उन दोनों की जीभ कुत्तो को खिला दी। तब भी वह दोनों औरंगजेब को देखकर हस्स रहे थे। तब औरंगजेब ने उन दोनों की आँखें निकालने और हाथ काटने का हुक्म दे दिया। संभाजी के हाथ काटने के दो हफ्ते के पश्चात उनकी मृत्यु हो गयी थी। उनकी मृत्यु 11 मार्च 1689 को हुई थी।
Chatrapati Sambhaji Maharaj से सम्बंधित प्रश्न (FAQ)
छत्रपति संभाजी की पत्नी का नाम येसुबाई था।
छत्रपति संभाजी की दो संतान थी एक पुत्र एवं एक पुत्री
पुत्र का नाम साहू था और पुत्री का नाम भवानीबाई था।
संभाजी की माता का नाम साईबाई था उनकी माता की मृत्यु तब हुई जब वे केवल दो वर्ष के थे।
संभाजी महाराज के मित्र का नाम कलश था और उन्होंने अपने मित्र को अपने राज्य में सलाहकार का पद दिया था।
छत्रपति शिवाजी की मृत्यु 3 अप्रैल 1680 को हुई थी।