कुछ सालो से भारत में ऐसी फिल्मे बन रही है जिनमे किसी-न-किसी दृश्य को लेकर लोगो को आपत्ति होती है और कोई न कोई विवाद होता रहता है। ऐसी स्थिति में इनको सर्टिफिकेट देने वाला सेंसर सवालो के बीच घिरा रहता है। क्या आप जानते है Censor board क्या होता है | सेंसर बोर्ड कैसे काम करता है ? यदि नहीं तो हम आपको सेंसर बोर्ड से जुडी सभी जानकारी देंगे। अब फिल्म या धारावाहिक तो हर किसी को देखना पसंद ही होता है। जैसा की आप सब जानते ही है बच्चे कार्टून देखने के शौकीन होते है और व्यस्क लोग कॉमेडी या एक्शन मूवी के शौकीन होते है वही सीनियर सिटीजन पुरानी फिल्मो के शौकीन होते है। इसी तरह सेंसर बोर्ड भी फिल्मो को उनके कंटेंट के अनुसार वर्गों में रखती है।
यह भी पढ़े :- फ़िल्म सर्टिफिकेट में अ/U, अव/UA, व/A, तथा S का मतलब क्या होता है
Central board of film certification (CBFC) सेंसर बोर्ड
सेंसर बोर्ड की स्थापना 15 जनवरी 1952 को मुंबई शहर में हुई थी। शुरुवात में इसके केवल तीन क्षेत्रीय कार्यालय थे जो मुंबई, कोलकाता और चेन्नई में थे लेकिन वर्तमान समय में इसके नौ कार्यालय है जो मुंबई, नई दिल्ली, कोलकत्ता, चेन्नई, बेंगलुरु, हैदराबाद, तिरुवंतपुरम, कटक और गुवाहाटी में स्थित है। इन कार्यालयों को अलग अलग जगह इसलिए खोला गया है ताकि अलग अलग भाषा में बनी फिल्मो को समझ कर अच्छे से समीक्षा कर सके और निर्माताओं को भी इन तक पहुंचने में आसानी हो। सेंसर बोर्ड में केंद्र सरकार द्वारा एक अध्यक्ष और 25 सदस्यों की नियुक्ति की जाती है इस नियुक्ति का कार्यकाल केवल 3 वर्षो के लिए होता है। सदस्य गैर सरकारी पद पर होते है। इस संस्था के सदस्य समाज के कई क्षेत्र जैसे समाजसेवा, कला, फिल्म जगत, शिक्षा आदि से सम्बन्ध रखते है। यह ऐसे ही लोगो की नियुक्ति की जाती है जो जीवबुद्धि होते है जो अच्छे से फिल्म को समझ कर निर्णय ले सके।
Censor board क्या होता है ?
भारत में हज़ारो तरह की कई छोटी बड़ी फिल्मे बनाई जाती है चाहे वे धार्मिक हो या बॉलीवुड। निर्माता एक फिल्म को बनाने के काफी मेहनत भी करते है पैसा भी खूब लगाते है। लेकिन फिल्मो को रिलीज करने से पहले एक सर्टिफिकेट की जरूरत पड़ती है जो सर्टिफिकेट उनको सेंसर बोर्ड से जारी करवाना होता है । यदि कोई निर्माता ऐसा नहीं करता तो उसकी फिल्म लीगल नहीं मानी जाएगी और उसको रिलीज भी नहीं करने दिया जायेगा। भारतीय सेंसर बोर्ड भारत में फिल्मो, टी वी धारावाहिक, विज्ञापनों या अन्य दृश्य सामग्री की समीक्षा करके उनको सर्टिफिकेट देने का एक निकाय है। सेंसर बोर्ड एक वैधानिक संस्था है।
सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सर्टिफिकेशन जिसे सेंसर बोर्ड के नाम से भी जाना जाता है, एक ऐसी संस्था है जो सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करती है। Central board of film certification (CBFC) फिल्मो को देखकर उनकी अच्छे से समीक्षा करके उनको रिलीज करने के लिए सर्टिफिकेट प्रदान करता है। यह प्रमाणपत्र(certificate ) सिनेमेटोग्राफी एक्ट 1952 के तहत प्रावधानों के अनुसार फिल्मो को प्रदान किये जाते है। सीबीएफसी उन सभी कार्यकर्मो की समीक्षा करके सर्टिफिकेट देती है जो जनता को दिखाने के लिए बनाये जाते है। सेंसर बोर्ड इस बात का विशेष ध्यान रखती है कि फिल्म में कोई संवाद या ऐसा दृश्य न हो जिससे कोई गलत सन्देश लोगो तक पहुँचे या कोई ऐसा कार्य जो किसी व्यक्तिगत धर्म समुदाय को ठेस पहुचाये या कोई ऐसा कार्य जिससे देश की शांति भांग हो।
सेंसर बोर्ड कैसे काम करता है ?
फिल्म बनाने के बाद निर्माता सेंसर बोर्ड के पास जाता है। सर्टिफिकेट लेने के लिए निर्माता को बताना होता है कि यह फिल्म किन लोगो के लिए बनाई गयी है। बिना सर्टिफिकेट के निर्माता अपनी फिल्म रिलीज नहीं कर सकता। Censor board फिल्म को देखकर निर्णय करता है की फिल्म को किस कैटेगेरी में रखा जाएगा। फिल्मो के लिए चार कैटेगरी बनाई गयी है U, A,S और U/A
सर्वप्रथम निर्माता अपनी फिल्म के सर्टिफिकेट के लिए जाता है तो जांच समिति में 4 सदस्य होते है जिनमे से 2 महिलाए होना अनिवार्य है। इस प्रक्रिया में अध्यक्ष शामिल नहीं होता जांच समिति के सदस्य फिल्म देखते है और अपना सुझाव लिखित रूप में अध्यक्ष के पास भेज देते है। जिसको देख कर अध्यक्ष फैसला सुनाता है और केटेगरी का चुनाव करता है। यदि सेंसर बोर्ड की तय की गयी केटेगरी से निर्माता खुश है तो वो अपनी फिल्म का सर्टिफिकेट ले सकता है
यह भी जाने :- PVR Full Form in Hindi
यदि वह खुश नहीं है तो फिल्म को एक बार फिर से देख कर निर्णय लेने के लिए सेंसर बोर्ड से अपील कर सकता है। जब किसी फिल्म को दोबारा देखा जाता है तो उसको नयी कमेटी द्वारा देखा जाता है जिसमे एक सदस्य पहली कमेटी का होता है। इस दौरान फिल्म में कट लगाए जाते है इस स्थिति में निर्माता चाहे तो कमेटी के अनुसार कट लगवाकर अपना सर्टिफिकेट ले सकता है।
यदि निर्माता कट नहीं लगवाना चाहता या कट लगवाने के बाद भी उसको अपनी मन पसंद कैटगरी नहीं मिल रही तो वह दिल्ली में बने film certificate appelate tribunal (FCAT) में जा कर अपील कर सकता है। यह कमेटी रिटायर्ड जज की होती है। इस कमेटी क लोग निर्माता की बात को सुनते है और फैसला लेते है वैसे तो ज्यादातर मामले FCAT निपटा ही देती है। लेकिन निर्माता अगर वहा भी अपनी फिल्म की केटेगरी से खुश नहीं होता तो उसके पास एक आखिरी ऑप्शन भी होता है कि वह सुप्रीम कोर्ट जा कर गुजारिश कर सकता है। ज्यादातर निर्माताओं को पता होता है की सुप्रीम कोर्ट वाला प्रोसेस बहुत लम्बा चलता है इसलिए वे इस ऑप्शन को नहीं चुनते। ऐसे में उनको वही सर्टिफिकेट लेना पड़ता है जो उनको सेंसर बोर्ड देता है।
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के नियम
केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड यानि सेंसर बोर्ड ने कुछ मुद्दों को नियमबद्ध कर रखा है जिनसे सम्बंधित दृश्यों को कट कर दिया जाता है। और उनके सार्वजानिक प्रदर्शन पर रोक लहगाई जाती है ये नियम कुछ इस प्रकार है :-
- हिंसा या समाज विरोधी क्रिया अच्छी या न्यायोचित दिखाई गयी हो।
- ऐसे दृश्य या शब्द प्रस्तुत किये गए हो जिससे किसी व्यक्ति , संस्था, न्यायालय को मालहानि हो
- बच्चो को हिंसा या अपराधकर्ता के रूप में दिखाया गया हो।
- बच्चे का किसी प्रकार का दुरूपयोग दिखाया गया हो।
- मानसिक या शारीरिक दिव्यांग लोगो के साथ कोई दुर्व्यवहार किया गया हो या उनका मजाक उड़ाया गया हो।
- पशुओ पर अत्याचार या उनके दुरूपयोग का दृश्य दिखाया गया हो।
- नशीले पदार्थो का सेवन उचित ठहराया गया हो या उनको बढ़ावा दिया गया हो।
- तम्बाकू या धूम्रपान को बढ़ावा देना या उनको गौरवांतित दिखाना।
- अशिष्टता, अश्लीलता या दुराचारिता द्वारा मानवीय संवेदनाओ को चोट पहुंचाई गयी हो।
- दो अर्थ वाले अप शब्द का इस्तेमाल जिनसे नीच प्रवर्तियों को बढ़ावा मिलता हो।
- कुछ ऐसे दृश्य जो मनोरजन प्रदान करने के लिए हिंसा, अश्लीलता, क्रूरता आतंक को बढ़ावा देते हो।
- अपराधियों की कार्यप्रणाली या कोई ऐसा दृश्य जिससे कोई प्रभावित हो।
- ऐसे दृश्य जिनमे मन्दिरपान को उचित ठहराया गया हो या उसका गुणगान हो।
- महिलाओ का तिरस्कार या ऐसा कोई भी दृश्य जो उन्हें बदनाम करता हो।
- महिलाओ के साथ लैंगिग हिंसा या किसी प्रकार का उत्पीड़न।
- कानून व्यवस्था का उलंघ्घन करना।
- भारत की सम्प्रभुता या अखंडता के खिलाफ।
फिल्म सर्टिफिकेट क्या है ?
जब भी हम कोई फिल्म देखते है तो सबसे शुरू में अ/A ,अव/UA, अ/U या S लिखा आता है उसको ही फिल्म का सर्टिफिकेट कहते है। यह सर्टिफिकेट फिल्मो को सेंसर बोर्ड द्वारा दिए जाते है। इन सभी सर्टिफिकेट्स का अलग-अलग अर्थ होता है। सेंसर बोर्ड फिल्म के कंटेंट के आधार पर फिल्म को केटेगरी में रखती है। जिस प्रकार की फिल्म होती है उसको उसी केटेगरी में रखा जाता है।
फिल्म सर्टिफिकेशन केटेगरी
सेंट्रल बोर्ड ऑफ़ फिल्म सेर्टिफिकेशन की मुख्य रूप से चार केटेगरी होती ही
अ/U (Universal) केटेगरी :- इस केटेगरी में आने वाली फिल्मो को 7 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे देख सकते है। इस सर्टिफिकेट वाली फिल्म पर किसी प्रकार का कोई प्रतिबन्ध नहीं होता।
व/A केटेगरी :- इस केटेगरी की फिल्म केवल व्यस्क(Adult) वर्ग के लोग ही देख सकते है। इन फिल्मो को कुछ ऐसे सीन होते है जो कम आयु के बच्चो के लिए नहीं होते इस प्रकार की फिल्म केवल 18 वर्ष या उससे अधिक उम्र के लोग ही देख सकते है।
अव U/A :- इस केटेगरी में आने वाली फिल्मे 12 वर्ष से अधिक उम्र के बच्चे अपने माता-पिता या किसी अन्य बड़े परिजन के साथ देख सकते है। क्योंकि इस तरह की मूवी में कुछ ऐसे सीन होते है जिन्हे बच्चा खुद से नहीं समझ सकता उसको किसी बड़े की आवश्यता होती है।
S :- यह मूवी कोई आम मूवी नहीं होती है यह अलग प्रकार की मूवी होती है। इस केटेगरी की फिल्मे किसी ख़ास वर्ग के लिए होती है जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि।
यह भी जाने :- Director Kaise Bane
Censor board क्या होता है से जुड़े कुछ प्रश्न उत्तर
सेंसर बोर्ड का मुख्यालय मुंबई में है।
फिल्म सर्टिफिकेट की चार केटेगरी है :-
U, UA, A, S
सेंसर बोर्ड की स्थापना 15 जनवरी 1952 को मुंबई में हुई थी।
फिल्म को रिलीज करने से पहले निर्माता को सेंसर बोर्ड को फिल्म दिखाकर एक सर्टिफिकेट लेना होता है उस सर्टिफिकेट के मिलने के बाद ही निर्माता अपनी फिल्म रिलीज कर सकता है। उसको ही फिल्म सर्टिफिकेट कहते है।