भारत एक कृषि प्रधान देश है। वर्तमान समय में हमारे देश में 50 फीसदी से अधिक लोग कृषि कार्यो में संलग्न है जिसके कारण कृषि हमारे देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान निभाती है। इसी कारण से देश के खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने और खाद्यान उत्पादन में वृद्धि के लिए कृषि के लिए नए-नए वैज्ञानिक तरीको का प्रयोग किया जाता है। वर्तमान समय में खाद्य सुरक्षा को देखते हुए सरकार एवं कृषको के द्वारा जीरो बजट प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है जिससे की देश में उत्पादन में वृद्धि हो सके एवं सभी वर्गों की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के साथ कृषि का सतत विकास भी किया जा सके। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले है की जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है ? (Zero Budget Natural Farming (ZBNF) In Hindi). इसके अतिरिक्त इस आर्टिकल के माध्यम से आपको जीरो बजट प्राकृतिक खेती के लाभ एवं उपयोग सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान की जाएगी।
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जीरो बजट प्राकृतिक खेती क्या है ?
जीरो बजट प्राकृतिक खेती जैसे की इसके नाम से इंगित होता है की जीरो बजट प्राकृतिक खेती, खेती की वह विधि है जिसके तहत आपको कृषि उत्पादन के लिए किसी भी प्रकार के बजट की आवश्यकता नहीं पड़ती है अर्थात इस कृषि में आपको उत्पादन के लिए किसी भी प्रकार के व्यय की आवश्यकता नहीं पड़ती है। अब आपके मन में यह सवाल आ रहा होगा की कृषि में उत्पादन के लिए किसी भी प्रकार का व्यय नहीं होता यह कैसे संभव है क्यूंकि हम सभी जानते है वर्तमान में किसानों को खेती के लिए खाद, बीज, रसायन, कीटनाशक, उर्वरक एवं खरपतवारनाशी के लिए हजारों रुपए का व्यय करना पड़ता है ऐसे में बिना किसी व्यय के कृषि कैसे की जा सकती है।
यहीं पर जीरो बजट प्राकृतिक खेती की अवधारणा का विकास होता है। दरअसल जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत बिना किसी रसायन एवं खरपतवार के प्राकृतिक तरीके से खेती की जाती है जिसमे की शून्य रुपए (लगभग नगण्य) की लागत आती है। इसमें रसायनों एवं खरपतवार की जगह प्राकृतिक रूप से तैयार किये गये खाद एवं बीजों का प्रयोग किया जाता है। ये सभी चीजे आस-पास मौजूद प्राकृतिक चीजों जैसे गाय एवं अन्य जानवरों के गोबर, प्राकृतिक अपशिष्ट एवं अन्य जैविक वस्तुओ से तैयार किया जाता है ऐसे में किसानो पर किसी तरह का आर्थिक बोझ नहीं पड़ता है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती, क्या है आवश्यकता
जीरो बजट प्राकृतिक खेती की अवधारणा भारतवर्ष के लिए कोई नयी नहीं है। भारत में हजारों वर्ष से जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जा रही है जिसके तहत कृषक अपने आस-पास मौजूद प्राकृतिक चीजों से ही कृषि उत्पादन सम्बंधित सभी आवश्यकताएँ पूरी कर लेते है जिससे की किसानों की किसी प्रकार का व्यय नहीं करना पड़ता है। देश में बढ़ती जनसँख्या के कारण खाद्यान उत्पादन की आवश्यकता को पूरा करने एवं उत्पादन को बढ़ाने के लिए आजादी के बाद वैज्ञानिक तरीकों से खेती करने के लिए अंधाधुंध रसायनों खाद, खरपतवारनाशी एवं कीटनाशको का प्रयोग किया गया। इसके लिए सरकार द्वारा किसानों को सब्सिडी और अन्य सुविधाएँ मुहैया करवाई गयी एवं सरकार द्वारा 1967-68 की अवधि के दौरान इसके लिए हरित क्रांति कार्यक्रम भी चलाया गया था।
इन सभी प्रयासों का लाभ यह हुआ की कुछ वर्षो तक तो कृषि में बम्पर उत्पादन हुआ परन्तु रसायनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण कुछ वर्ष में ही भूमि की गुणवत्ता कम होने लगी जिससे की उत्पादन में जबरदस्त गिरावट दर्ज की गयी। इसके अतिरिक्त रसायनों के अत्यधिक उपयोग से भूमि-क्षरण जैसे समस्याओ ने भी जन्म लिया। साथ ही रसायनों को खरीदने के लिए कृषको पर अत्यधिक आर्थिक बोझ भी पड़ा। इन सबसे बढ़कर इसका असर मानव स्वास्थ्य पर पड़ा जहाँ अत्यधिक रसायनों प्रयोग से मनुष्यों में विभिन बीमारियों ने जन्म लिया। इन सभी आवश्यकताओं को देखते हुए वर्तमान में जीरो बजट प्राकृतिक खेती विकल्प नहीं अपितु आवश्यकता है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती की विधि
हमारे पूर्वज हजारो वर्ष से ही जीरो बजट प्राकृतिक खेती करते रहे है जिसके की गुणवत्ता के साथ-साथ उत्पादन में भी वर्षो से निरंतरता एवं वृद्धि बनी हुयी है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत हमारे पूर्वजो के द्वारा सिर्फ प्राकृतिक वस्तुओं का ही उपयोग किया जाता रहा है जिससे की ना सिर्फ प्राकृतिक संतुलन बना रहता था अपितु जमीन की गुणवत्ता भी बनी रहती थी। इसके कारण से लोग स्वास्थ्यवर्धक खाद्यान प्राप्त करते थे। जीरो बजट प्राकृतिक खेती के लिए कृषकों को खेती की विभिन आवश्यकताओ को पूरा करने के लिए प्राकृतिक चीजों का उपयोग करना होता है जिसमे खाद के लिए जानवरो की खाद का प्रयोग, कीटनाशकों के लिए परंपरागत कीटनाशक जैसे नीम एवं अन्य औषधीय पौधे, खरपतवार को प्राकृतिक तरीके से हटाना, प्राकृतिक बीज का प्रयोग एवं अन्य प्राकृतिक-परंपरागत कृषि विधियाँ शामिल है।
भारत में जीरो बजट प्राकृतिक खेती की शुरुआत
हालांकि हमारे देश में जीरो बजट प्राकृतिक खेती का कांसेप्ट हजारों वर्ष से ही चलन में है जिसके कारण से हमारे देश में सीमान्त क्षेत्रों एवं अन्य इलाकों में अभी भी आपको प्राकृतिक तरीके से खेती करते हुए कृषक मिल जाएँगी। वर्तमान समय में भारत में जीरो बजट प्राकृतिक खेती को शुरू करने का श्रेय कृषि विज्ञानी सुभाष पालेकर को जाता है जिन्होंने भारत के प्राचीन कृषि ज्ञान का वृहद् अध्ययन करके इस सम्बन्ध में विभिन प्रकार की पुस्तकों का लेखन किया है। सुभाष पालेकर द्वारा स्टेट फार्मर्स एसोसिएशन कर्नाटक राज्य रैथा संघ (KRRS) एवं मेंबर ऑफ ला वाया कम्पेसिना (Member Off La Via Compassina) के समन्वित प्रयासों से सर्वप्रथम भारत के कर्नाटक राज्य में जीरो बजट प्राकृतिक खेती की शुरुआत की गयी है जिसके माध्यम से प्रदेश के लाखों कृषकों को फायदा पहुँचा है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के मुख्य स्तंभ
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत कृषि उत्पादन के लिए सभी प्रकार की परम्परागत कृषि तकनीकों को अपनाया जाता है। इसमें खाद से लेकर प्राकृतिक कीटनाशक एवं खरपतवार का प्रयोग शामिल है। जीरो बजट प्राकृतिक खेती के मुख्य स्तंभ निम्न प्रकार से है :-
- जीवामृत / जीवनमूर्ति (Jivamrita)– जीवामृत / जीवनमूर्ति का सम्बन्ध कृषि को आवश्यक पोषक तत्त्व प्रदान करने की विधि है। प्राचीन-काल से मिट्टी की गुणवत्ता को बनाये रखने के लिए विभिन प्रकार के जीवामृत अर्थात खाद एवं पोषक-तत्वों का उपयोग किया जाता था। इसमें प्राकृतिक वस्तुओं जैसे गाय एवं जानवरों के गोबर एवं अन्य कृषि अपशिष्टों का उपयोग किया जाता है। इसमें किसी भी तरह की लागत नहीं आती अर्थात न्यूनतम (नगण्य) लागत आती है। इसका उपयोग एवं प्रयोग विधि निम्न प्रकार से है :-
- जीवामृत / जीवनमूर्ति निर्माण तरीका एवं उपयोग विधि – जीवामृत / जीवनमूर्ति मिश्रण बनाने के लिए 5 से 10 किलो गाय या अन्य जानवरो के गोबर को 200 लीटर पानी में, 2 किलो पल्स आटा एवं 2 ही किलोग्राम ब्राउन शुगर में मृदा के साथ मिलाकर एवं मिश्रण बनाकर 48 घंटो के लिए रख दे। इसके पश्चात प्रति एकड़ 200 लीटर मिश्रण का छिड़काव माह में 2 बार करके बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
- जीवामृत / जीवनमूर्ति निर्माण तरीका एवं उपयोग विधि – जीवामृत / जीवनमूर्ति मिश्रण बनाने के लिए 5 से 10 किलो गाय या अन्य जानवरो के गोबर को 200 लीटर पानी में, 2 किलो पल्स आटा एवं 2 ही किलोग्राम ब्राउन शुगर में मृदा के साथ मिलाकर एवं मिश्रण बनाकर 48 घंटो के लिए रख दे। इसके पश्चात प्रति एकड़ 200 लीटर मिश्रण का छिड़काव माह में 2 बार करके बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सकते है।
- बीजामृत/ बीजामूर्ति (Bijamrita/beejamrutha)– वर्तमान समय में कृषि हेतु बीजामृत एक प्रमुख आवश्यकता है। बीजामृत का अर्थ है की बीज को बीजों को नुकसान पहुंचाने वाले जीवों, कवकों एवं अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवो से बचाना। इसके लिए आपको गाय का गोबर, प्राकृतिक कवकनाशी, नींबू, एंटी-बैक्टीरिया तरल एवं अन्य पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है।
- बीजामृत/ बीजामूर्ति निर्माण तरीका एवं उपयोग विधि – बीजामृत/ बीजामूर्ति का निर्माण करने के लिए ऊपर दिए गए सभी आवश्यक पदार्थो का मिश्रण तैयार कर ले। इसके पश्चात आप इस मिश्रण को बीजों में अच्छे से लेप करके बीजों को खेतों में बो सकते है। इसके माध्यम से सूक्ष्म जीवों द्वारा बीजों को नुकसान पहुंचाने की आशंका कम हो जाती है।
- बीजामृत/ बीजामूर्ति निर्माण तरीका एवं उपयोग विधि – बीजामृत/ बीजामूर्ति का निर्माण करने के लिए ऊपर दिए गए सभी आवश्यक पदार्थो का मिश्रण तैयार कर ले। इसके पश्चात आप इस मिश्रण को बीजों में अच्छे से लेप करके बीजों को खेतों में बो सकते है। इसके माध्यम से सूक्ष्म जीवों द्वारा बीजों को नुकसान पहुंचाने की आशंका कम हो जाती है।
- आच्छादन– मल्चिंग (Acchadana Mulching)– आच्छादन– मल्चिंग का अर्थ है की मृदा की गुणवता क्षमता को बनाये रखने के लिए प्राकृतिक उपायों का सहारा लेना। इसके तहत मृदा की नमी को संरक्षित रखने के लिए विभिन उपाय किये जाते है जिससे की पौधों को पर्याप्त नमी एवं पोषण मिले एवं कृषि का विकास बेहतर हो सके। इसके लिए तीन विधियों का प्रयोग किया जाता है।
- स्ट्रॉ मल्च – स्ट्रॉ मल्च में मृदा की नमी को बढ़ाने के लिए मृदा को एक स्थान पर एकत्र किया जाता है जिससे की यह अधिक नमी को ग्रहण कर सके।
- लाइव मल्चिंग – लाइव मल्चिंग के तहत कृषि में ऐसी फसलों का चयन किया जाता है जिनकी पोषण एवं अन्य प्राकृतिक आवश्यकताएँ एक दूसरे से भिन्न-भिन्न होती है। इससे पौधों में पोषण को पाने के लिए स्पर्धा नहीं होती साथ ही सूर्य प्रकाश एवं अन्य आवश्यकताओं की आसानी से पूर्ति होने के कारण उत्पादन में वृद्धि होती है।
- स्ट्रॉ मल्च (भूसा)– स्ट्रॉ मल्च (भूसा) के तहत कृषकों द्वारा खेत में कृषि अपशिष्ट जैसे की चावल या गेहूँ के भूसे का उपयोग किया जाता है। इससे मिट्टी को पर्याप्त हूयमस मिलता है एवं फसलों के पर्याप्त पोषण की आपूर्ति होती है। सब्जी जैसी फसलों के लिए स्ट्रॉ मल्च (भूसा) अत्यधिक लाभकारी है।
- व्हापासा (Whapasa , moisture)– व्हापासा वह विधि है जिसके तहत कृषि में नमी बढ़ाने के लिए प्राकृतिक तरीकों का उपयोग किया जाता है। इसमें पौधे आवश्यक पोषण मिट्टी में उपस्थित नमी एवं वायु में मौजूद अणुओं से प्राप्त करते है।
इन सभी उपायों के माध्यम से कृषक अपने कृषि उत्पादन में पर्याप्त वृद्धि कर सकते है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के लाभ
जीरो बजट प्राकृतिक खेती के जीवन के विभिन स्तरों पर अनगिनत लाभ है। यहाँ इस कृषि पद्धति के विभिन लाभों की चर्चा की जा रही है:-
- लागत में कमी- जीरो बजट प्राकृतिक खेती का सबसे बड़ा लाभ यह है की इस कृषि पद्धति में किसानों को खेती करने के लिए शून्य बजट आता है। इसमें कृषक आस-पास की प्राकृतिक चीजों से ही कृषि आवश्यकताएँ पूरी करते है जिससे की उन्हें रसायनों, खाद एवं अन्य चीजों के लिए हजारों रुपए खर्च नहीं करने पड़ते।
- मृदा-संरक्षण- इस पद्धति में चूँकि कृषि करने के लिए सिर्फ प्राकृतिक चीजों का ही उपयोग किया जाता है ऐसे में इससे मृदा की गुणवत्ता बनी रहती है।
- उत्पादन में वृद्धि- लागत कम होने एवं प्राकृतिक तरीके से कृषि करने के कारण इस विधि से उत्पादन में वृद्धि होती है।
- गुणवत्तापूर्ण उत्पाद- वर्तमान समय में खेती में कीटनाशको एवं अन्य जहरीले रसायनो का अत्यधिक प्रयोग किया जा रहा है जिससे की मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। प्राकृतिक खेती में मानव को स्वास्थ्यपूर्ण खाद्यान उपलब्ध होता है।
- पर्यावरण संरक्षण- कीटनाशको एवं अन्य हानिकारक रसायन मिट्टी में घुलकर जल में चले जाते है और जलीय जीवों को नुकसान पहुंचाते है। प्राकृतिक खेती से इस समस्या पर अंकुश लगाया जा सकता है एवं पर्यावरण संरक्षण किया जा सकता है।
- पशुधन में वृद्धि- प्राकृतिक खेती के लिए पशुधन आवश्यक है जिससे गोबर एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति की जा सके। इस कृषि पद्धति के माध्यम से पशुधन संरक्षण संभव हो सकता है।
- सतत-विकास हेतु आवश्यक- मानव की खाद्य सुरक्षा एवं अन्य आवश्यकताओं के मद्देनजर प्राकृतिक खेती सतत विकास के लिए आवश्यक है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती-एक मूल्याङ्कन
जीरो बजट प्राकृतिक खेती वर्तमान में विकल्प नहीं अपितु वास्तविक आवश्यकता है। भविष्य में मानव जीवन की सतत खाद्य आवश्यकताओ की पूर्ति के लिए आवश्यक है की हम प्रकृति के नियमों को ध्यान में रखकर कृषि करें जिससे की मृदा का संरक्षण एवं मानव के खाद्य आवश्यकता की सतत पूर्ति हो सके। यही वास्तव में वर्तमान समय की आवश्यकता है। इससे समाज के सभी वर्गों को लाभ होगा साथ ही सतत विकास की अवधारणा को भी साकार किया जा सकेगा।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
Zero Budget Natural Farming कृषि की वह पद्धति है जिसके तहत प्राकृतिक माध्यमों से खेती के द्वारा कृषि लागत को शून्य किया जाता है।
Zero बजट प्राकृतिक खेती में हानिकारक रसायनों जैसे खाद, कीटनाशक, खरपतवार-नाशक, एवं पेस्टिसाइड के स्थान पर प्राकृतिक चीजों जैसे जानवरो के गोबर से बनी खाद एवं प्राकृतिक कीटनाशकों जैसे नीम आदि का प्रयोग किया जाता है।
जीरो बजट प्राकृतिक खेती की जानकारी के लिए ऊपर दिया गया लेख पढ़े। इसके माध्यम से आपको Zero बजट प्राकृतिक खेती सम्बंधित सभी प्रकार की जानकारी प्रदान की गयी है। साथ ही यहाँ से आप प्राकृतिक खेती के मुख्य स्तम्भों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकते है।
Zero बजट प्राकृतिक खेती अपनाने वाला प्रथम राज्य आंध्र-प्रदेश है जिसके द्वारा इस तकनीक को अपनाया गया है। आंध्र-प्रदेश द्वारा वर्ष 2024 तक इस पद्धति को पूरे राज्य में लागू करने का लक्ष्य रखा गया है।
Zero बजट प्राकृतिक खेती से मानव जीवन को सभी प्रकार से लाभ है। इसके विस्तृत लाभों के लिए ऊपर दिया गया लेख पढ़े।