बहुत वर्षो पहले वर्षों की गणना करने के लिए किसी अन्य चीजों का प्रयोग किया जाता है। पहले के समय में इस प्रकार की गणना करने के लिए विक्रम संवत और शक संवत का प्रयोग करते थे।

विक्रम संवत की शुरुआत पुराने समय में राजा विक्रमादित्य के द्वारा उनके समय में की गयी थी। आपको यह भी बता दे की उस समय में एक बहुत बड़े खगोल शास्त्री जी थे।

जिनकी उस समय काफी अधिक मान्यता थी। उनका नाम शास्त्री वराहमिहिर था। यह उस समय के काफी बड़े खगोल शास्त्री थे। इनकी मदद से ही विक्रम संवत के प्रसारण के लिए कोई भी कठिनाई नहीं आयी।

आप सभी को इसके पीछे का कारण भी बता दे की इसकी शुरुआत उज्जैन से इसलिए हुई थी क्योंकि उज्जैन एक ऐसी जगह है जहाँ से कर्क रेखा होकर गुजरती है।

जिसके कारण वहां पर समय गणना, घड़ी आदि कई महत्वपूर्ण चीजें भी जुडी हुई है। इसी कारण से उज्जैन की इतनी मान्यता है और वही से इसकी शुरुआत की गयी है।

तो दोस्तों आप सभी को सबसे पहले तो यह बता दे की शक संवत का प्रयोग भी पुराने समय में वर्षों की गणना यानि के कैलेंडर के तौर पर किया जाता था।

क्या आप यह जानते है की शक संवत को भारत के आधिकारिक कैलेंडर के रूप से भी जाना जाता है। इसको भारत में सरकारी तौर पर भी मान्यता प्रदान की गयी है।

इसको आधिकारिक मान्यता प्रदान करने के पीछे भी कुछ कारण थे। वह यह है की पुराने समय के यानि प्राचीन काल के शिला लेखों में इसका वर्णन किया गया है।

तो दोस्तों आप सभी को यह बता दे की वैसे तो Vikram Samvat Aur Shak Samvat के महीनों के नाम एक ही है परन्तु दोनों एक दूसरे से भिन्न है।

क्योंकि यह दोनों की शुरुआत अलग अलग पक्ष में होती है। तो आपको बतादे की विक्रम संवत की शुरुआत महीने में आने वाली पूर्णिम के बाद आने वाले कृष्ण पक्ष को विक्रम संवत का न्य माह प्रारम्भ हो जाता है

और दूसरी और शक संवत का नया महीना अमावस्या के बाद आने वाले शुक्ल पक्ष को इसके नए महीने की शुरुआत होती है। इन दोनों के बीच में एक अंतर और भी है वो यह है की इन दोनों संवत के बीच में 135 वर्षों का अंतर है