देश के ज्यादातर भागों में केवल धुलंडी वाले दिन ही रंग उड़ाने और होली खेलने की परंपरा हैं। कुछ जगह पर इसे एक से ज्यादा दिन खेला जाता होगा

लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि ब्रज भूमि में होली एक या दो दिन की नही बल्कि एक महीने से ज्यादा समय तक खेली जाती (Mathura Ki Holi In Hindi) हैं।

यहाँ पर रंग-गुलाल उड़ने की शुरुआत माँ सरस्वती के पावन पर्व बसंत पंचमी से ही हो जाती हैं। उसके बाद हर दिन मथुरा-वृंदावन के किसी ना किसी मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रम होते रहते हैं

और गलियों-कूचों में रंग उड़ते रहते हैं। रंग उड़ने का यह सिलसिला लगभग चालीस दिनों तक चलता हैं और रंग पंचमी के बाद समाप्त हो जाता हैं।

क्या आपने आजतक लड्डुओं की होली खेली हैं? यदि नही तो आपको यह होली बरसाने के श्रीजी मंदिर में देखने को मिलेगी। श्रीजी राधारानी का एक भव्य मंदिर हैं।

यहाँ पर भक्तों के ऊपर लड्डुओं की बरसात कर दी जाती हैं। एक-दूसरे के ऊपर लड्डू उछाले जाते हैं। सभी भक्तों में उन लड्डुओं को पकड़ने की होड़ लगी रहती हैं।

बरसाने की लट्ठमार होली विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। यह बरसाने की संकरी गलियों में खेली जाती हैं। दरअसल द्वापर युग में जब कान्हा नंदगांव में रहा करते थे

तब वहां के कई पुरुष बरसाने की महिलाओं के साथ होली खेलने जाया करते थे। तब वहां की महिलाएं उन पर लट्ठ से वार करती थी और भगा देती थी। इन पुरुषों को हुरियारे कहा जाता था।

जिस दिन बरसाने में लट्ठमार होली खेली जाती हैं उसी के अगले दिन नंदगांव में भी लट्ठमार होली का आयोजन किया जाता हैं। अब इसमें नंदगांव की महिलाएं भाग लेती हैं तो बरसाने के पुरुष हुरियारे बनकर

वृंदावन में फूलों की होली भी बहुत प्रसिद्ध हैं। यह ज्यादातर सभी मंदिरों में बड़ी ही धूमधाम के साथ खेली जाती हैं। इसमें मंदिर के चारों और से भक्तों के ऊपर पुष्प वर्षा की जाती हैं।