स्‍वास्तिक का अर्थ और इतिहास | Swastika Meaning & History in Hindi

हिन्दू धर्म में स्‍वास्तिक चिन्ह का बहुत अधिक महत्व है। किसी भी मांगलिक एवं शुभ कार्य को शुरू करने से पूर्व देहरी या पूजा-स्थल पर स्‍वास्तिक का चिन्ह बनाया जाता है। भारतीय परंपरा में स्‍वास्तिक सदियों से उपयोग किया जाता रहा है। हमारे देश में सनातन धर्म के अतिरिक्त बौद्धों और जैन धर्म के अनुयायियों के मध्य भी इस प्रतीक का अत्यंत महत्व है। ऐसे में इस चिन्ह का अर्थ, इसकी मान्यता, इतिहास और इस प्रतीक का महत्व जानना आवश्यक है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको स्‍वास्तिक का अर्थ और इतिहास (Swastika Meaning & History in Hindi) सम्बंधित सभी जानकारी प्रदान करने वाले है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप स्वास्तिक के अर्थ और इससे जुड़ी हुयी विभिन मान्यताओं से परिचित हो सकेंगे।

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स्‍वास्तिक का अर्थ
स्वास्तिक का अर्थ एवं इतिहास

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स्‍वास्तिक का अर्थ

स्वास्तिक हिन्दू धर्म में सदियों से उपयोग किया जाने वाला प्रतीक है जिसकी चार भुजाएँ चारो दिशाओ को प्रकट करती है। स्वास्तिक संस्कृत शब्द ‘सु’ और ‘अस्ति’ के संयोग से बना है। यहाँ ‘सु’ का अर्थ अच्छा, मंगल एवं कल्याणकारी होता है वहीं ‘अस्ति’ का अर्थ संस्कृत भाषा में “है” या “होना” होता है। साथ ही यहाँ ‘का’ का उपयोग एक प्रत्यय चिन्ह के रूप में किया जाता है। इस प्रकार से स्‍वास्तिक का शाब्दिक अर्थ “मंगल एवं कल्याणकारी होना” होता है।

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स्वास्तिक का उपयोग भारत में प्राचीन-काल से ही किया जा रहा है। भारत में स्थित “दुनिया की प्राचीन सभ्यताओं में से एक हड़प्पा” में भी स्वास्तिक के उपयोग के प्रमाण मिले है। पूजा एवं अन्य धार्मिक अनुष्ठानों के दौरान स्वास्तिक का उपयोग शुभ-प्रतीक के रूप में किया जाता है। इसके अतिरिक्त बौद्ध-धर्म में भी इसे समृद्धि, सौभाग्य एवं आध्यात्मिकता के रूप में माना जाता है। जैन धर्म में इसे तीर्थकार सुपार्श्वनाथ के प्रतीक के रूप में मान्यता प्राप्त है। इसके अतिरिक्त विभिन यूरोपीय देशो और अन्य सभ्यताओं में भी स्वास्तिक के उपयोग के प्रमाण मिले है जो की स्वास्तिक की प्राचीनता को दर्शाते है।

स्‍वास्तिक का इतिहास

स्‍वास्तिक का उपयोग पूरे विश्व के विभिन धर्मो में सदियों से किया जाता रहा है। भारत में इसका उपयोग सिंधु-घाटी सभ्यता एवं वैदिक काल में किये जाने के प्राचीन साक्ष्य मिले है। सिंधु-घाटी सभ्यता के द्वारा निर्मित बर्तन एवं मुद्राओ पर स्वास्तिक चिन्ह का उपयोग किया गया है। साथ ही अशोक के शिलालेखों में भी इस चिन्ह का वर्णन किया गया है। देश के महाकाव्य रामायण एवं महाभारत में भी स्वास्तिक के उपयोग के बारे में जानकारी दी गयी है। भारतीय उप-महाद्वीप में नवपाषाण काल से लेकर सिंधु घाटी सभ्यता और उत्तर में चीन की कांस्य युगीन सभ्यता में भी इस प्रतीक के उपयोग के प्रमाण मौजूद है।

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मध्य-एशिया महाद्वीप के अतिरिक्त यूरोप में भी प्राचीन समय से ही विभिन सभ्यताओं के द्वारा स्वास्तिक चिन्ह का उपयोग किया जा रहा है। अगर दुनिया के ज्ञात सबसे प्राचीन स्वास्तिक चिन्ह की बात की जाए तो यूक्रेन के संग्रहालयों में स्वास्तिक के 15,000 साल पुराने प्रमाण मिलते है। इसके अतिरिक्त इंग्लैंड में आयरलैंड एवं बुल्गारिया देश में स्थित देवेस्तेश्का गुफाओं (Devetashka cave) में स्वास्तिक के 6000 वर्ष पुराने प्रमाण मिले है जो की इस प्रतीक की ऐतिहासिकता को प्रदर्शित करते है।

स्‍वास्तिक से जुड़ी मान्यताएँ

हिन्दू धर्म में स्वास्तिक को अत्यंत पवित्र एवं कल्याणकारी माना जाता है। हिन्दू-धर्म में इस प्रतीक का उपयोग सबसे व्यापक और वृहद रूप से किया गया है और यहाँ विभिन मांगलिक और शुभ-कार्यों के शुरुआत में स्वास्तिक का प्रतीक बनाने की प्रथा प्रचलित है। हिन्दू-धर्म में विभिन मान्यताओं के अनुसार इस प्रतीक का निम्न अर्थ है :-

  • चार-दिशाओं का प्रतीक- स्‍वास्तिक की चार भुजाएँ होती है जो की चार-दिशाओं को इंगित करती है। मान्यता है की इसकी चार भुजाये चारों दिशाओं से शुभ तथा मंगल को आकर्षित करती है और सभी कार्य निर्विघ्न सम्पन होते है। यही कारण है की सभी शुभ कार्यो से पूर्व स्वास्तिक का प्रतीक बनाकर शुभ और मंगल को आकर्षित किया जाता है।
  • चार-वेदों का प्रतीक- स्वास्तिक को हिन्दू धर्म में प्रचलित सबसे महत्वपूर्ण चार वेदों का प्रतीक भी माना जाता है।
  • ब्रह्मा के चार-मुख – स्वास्तिक को सनातन धर्म में ब्रह्मा के चार मुखों का प्रतीक भी माना गया है।
  • चार-देवो का प्रतीक- हिन्दू धर्म में स्वास्तिक को चार देवो- ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश का प्रतीक भी माना गया है।
  • चतुर्याश्रम का प्रतीक- प्राचीन भारत में प्रचलित चार- आश्रमों को भी स्‍वास्तिक से जुड़ा माना जाता है।

इसके अतिरिक्त हिन्दू धर्म में स्‍वास्तिक को भगवान-सूर्य का प्रतीक भी माना जाता है। स्‍वास्तिक के चारो और एक वृताकार रेखा खींचने पर इसे भगवान सूर्य का प्रतीक माना जाता है जो की सम्पूर्ण जगत की ऊर्जा के स्रोत माने जाते है।

विभिन धर्मो में स्‍वास्तिक से जुड़ी मान्यताएँ

हिन्दू-धर्म के अतिरिक्त विभिन धर्मों में स्वास्तिक से जुड़ी मान्यताएं निम्न प्रकार से है :-

  • बौद्ध धर्म- बौद्ध धर्म में भी स्वास्तिक को समान महत्व प्राप्त है। यहाँ इस प्रतीक को भगवान बुद्ध के साथ जोड़कर अच्छे भाग्य और समृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इसके अतिरिक्त इसे भगवान बुद्ध की हथेलियों, पैरों और हृदय में भी अंकित किया गया है।
  • जैन धर्म- जैन धर्म में स्वास्तिक का अत्यंत महत्व है जहाँ इसे जैनों के 7वें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह माना जाता है।
  • पारसी धर्म – पारसियों के पवित्र-ग्रन्थ जेंद-अवेस्ता में भी इस चिन्ह को सूर्य उपासना से जोड़कर देखा गया है।
  • चीन में कांस्य युग के दौरान भी स्वास्तिक के प्रयोग के चिन्ह प्राप्त हुए है।
  • प्राचीन यूनानी सभ्यता में भी स्वास्तिक प्रतीक का उपयोग किया जाता था जिसके प्रमाण विभिन पुरातात्विक साक्ष्यों से प्राप्त हुए है।

इसके अतिरिक्त विभिन यूरोपीय सभ्यताओं, जनजातियों एवं धार्मिक समूहों द्वारा भी समय-समय पर स्वास्तिक चिन्ह के उपयोग के प्रमाण प्राप्त हुए है यही कारण है की पूरी दुनिया में विभिन स्थानों में बर्तनों, मुद्राओं, मूर्तियों, कलाकृतियों, स्थापत्य कला एवं अन्य जगहों पर स्वास्तिक के चिन्ह प्राप्त होते है।

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स्‍वास्तिक से जुड़े विवाद

प्राचीन समय से ही स्‍वास्तिक शुभ एवं मंगल का प्रतीक रहा है और यही कारण है की विभिन संस्कृतियों में इसे समान महत्व दिया गया है। हालांकि द्वितीय विश्व-युद्ध के दौरान स्वास्तिक की प्रतिष्ठा को गहरा नुकसान पहुँचा था जब हिटलर के द्वारा इस चिन्ह को अपनी जातीय-श्रेष्ठता के प्रदर्शन के रूप में अपनी पार्टी का प्रतीक चिन्ह बनाया गया था। हिटलर द्वारा 1920 में नाजी पार्टी के गठन के बाद स्वास्तिक को अपनी पार्टी के झंडे के रूप में अपनाया गया जिसके कारण यह चिन्ह जर्मन में अंध-राष्ट्रवाद का प्रतीक बन गया।

hitler swastik logo

हालांकि यह याद रखना आवश्यक है की हिटलर द्वारा उपयोग किया गया स्वास्तिक हिन्दू स्वास्तिक से भिन्न था एवं यह सफ़ेद गोले में काले रंग का स्वास्तिक था जो की 45 डिग्री झुका हुआ था। हिटलर द्वारा जल्द ही इस चिन्ह को राष्ट्रीय झंडे, सैन्य वर्दी, पार्टी बैज और विभिन राजनीतिक गतिविधियों से जोड़कर इसे जल्द ही पूरे जर्मनी में प्रसिद्ध कर दिया। स्वास्तिक का उपयोग करके हिटलर द्वारा आर्य नस्ल और जर्मन श्रेष्ठ्वाद का सन्देश दिया गया और लाखो बेकसूर यहूदियों का क़त्ल किया गया। यही कारण है की यहूदियों के मध्य इस चिन्ह को आतंक के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। हालांकि द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद जर्मन में नाज़ी-पार्टी और इससे जुड़े चिन्हो पर प्रतिबन्ध लगाया गया जिसमे स्वास्तिक चिन्ह भी शामिल है।

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वर्तमान में स्वास्तिक का महत्व

स्‍वास्तिक प्राचीन समय से ही विभिन धर्मो में पवित्र और शुभ प्रतीक माना जाता रहा है। इसे सम्पूर्ण विश्व को ऊर्जा देने वाले भगवान सूर्य के प्रतीक चिन्ह के रूप में मान्यता प्राप्त है और यही कारण है की यह सभी संस्कृतियों में मान्य है। हालांकि द्वितीय विश्वयुद्ध के कारण हिटलर द्वारा अपने स्वार्थ हित की पूर्ति के लिए इस चिन्ह का गलत उपयोग किया गया था परन्तु यह चिन्ह विभिन धर्मों में अपने महत्व के लिए सदैव से ही महत्वपूर्ण रहा है एवं अपनी प्रसांगिकता बनाये हुए है। वर्तमान में भी स्वास्तिक विभिन संस्कृतियो में शुभ का प्रतीक है।

स्वास्तिक सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

स्वास्तिक का है ?

स्वास्तिक एक धार्मिक प्रतीक है जिसे प्राचीन काल से ही विभिन धर्मो में शुभ और मंगल का प्रतीक माना जाता है यही कारण है की इसे विभिन धर्मो में सदियों से उपयोग किया जाता रहा है।

स्वास्तिक का क्या अर्थ है ?

स्वास्तिक संस्कृत भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है अच्छा, मंगल एवं कल्याणकारी। यही कारण है की हिन्दू-धर्म में सभी शुभ कार्यो से पूर्व स्वास्तिक का चिन्ह बनाने की परंपरा रही है।

भारत में स्वास्तिक के प्राचीन उपयोग के साक्ष्य कहाँ से प्राप्त हुए है ?

भारत में स्वास्तिक के प्राचीन उपयोग के साक्ष्य सिंधु-घाटी सभ्यता, वैदिक सभ्यता तथा विभिन काव्यों के माध्यम से प्राप्त हुए है।

स्वास्तिक का क्या महत्व है ?

स्वास्तिक को विभिन धर्मो में शुभ का प्रतीक माना गया है। स्वास्तिक में चार दिशाएँ होती है जो की किसी भी कार्य में चारो दिशाओं से शुभ को आकर्षित करने का प्रतीक मानी जाती है। इसके अतिरिक्त इस चिन्ह को भगवान ब्रह्मा के चारों मुखों से जोड़ा जाता है। साथ ही इसे चार देवों-ब्रह्मा, विष्णु, महेश और गणेश का प्रतीक भी माना जाता है। इसके अतिरिक्त यह चारो वेदों एवं आश्रमों से भी सम्बंधित है। भगवान सूर्य को भी स्वास्तिक चिन्ह से सम्बंधित माना जाता है।

विभिन धर्मों में स्वास्तिक प्रतीक का क्या महत्व है ?

विभिन धर्मों में स्वास्तिक का भिन्न-भिन्न महत्व है। बौद्ध धर्म में स्वास्तिक को मंगल, समृद्धि एवं आध्यात्मिकता का प्रतीक माना जाता है वही जैन धर्म में इस चिन्ह को जैनों के 7वें तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ का प्रतीक चिन्ह माना जाता है। साथ ही पारसी धर्मग्रंथ जेंद-अवेस्ता में भी इस चिन्ह का अत्यंत महत्व माना जाता है।

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