भारतवर्ष प्राचीन काल से ही महापुरुषों की जन्मभूमि रही है। प्राचीन काल में भगवान बुद्ध, महावीर स्वामी से लेकर आधुनिक काल में महात्मा गाँधी, स्वामी-विवेकानंद एवं महर्षि दयानंद सरस्वती जैसे महापुरुषों ने भारतवर्ष को गौरान्वित किया है। आधुनिक भारत में समाज में फैली सामाजिक बुराईयों, छुआछूत, धार्मिक कर्मकांड, अस्पृश्यता एवं आडम्बर तथा अन्य सामाजिक कुरीतियों को दूर करने में महर्षि दयानंद सरस्वती का नाम अग्रणी है। आर्य समाज की स्थापना के माध्यम से स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा देश की सामाजिक स्थिति में सुधार हेतु नवीन आंदोलन का शुभारम्भ किया गया था। देश की आजादी में भी महर्षि दयानंद सरस्वती की महती भूमिका रही है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको आधुनिक भारत के महाऋषि एवं समाज सुधार के अग्रणी दूत महर्षि दयानंद सरस्वती का जीवन परिचय (Maharshi Dayanand Saraswati Biography in Hindi) सम्बंधित जानकारी प्रदान करने वाले है। साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आपको महर्षि दयानंद सरस्वती के जीवन से सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में भी अवगत कराया जायेगा।
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महर्षि दयानंद सरस्वती का संक्षिप्त जीवन परिचय
यहाँ आपको महर्षि दयानंद सरस्वती का संक्षिप्त जीवन परिचय (Maharshi Dayanand Saraswati Biography in Hindi) दिया गया है :-
नाम | महर्षि दयानंद सरस्वती |
मूल नाम | मूल शंकर तिवारी |
जन्म | 12 फरवरी 1824 |
जन्म-स्थान | टंकारा, गुजरात |
कार्य-क्षेत्र | समाज-सुधारक, स्वतंत्रता संग्राम में योगदान |
प्रमुख संगठन | आर्य-समाज |
प्रमुख पुस्तक | सत्यार्थ प्रकाश |
मृत्यु | 30 अक्टूबर 1883 |
महर्षि दयानंद का जन्म और प्रारंभिक जीवन
महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात राज्य के टंकारा (मोरबी जिला), गुजरात में ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता अंबा शंकर तिवारी टैक्स कलेक्टर के पद पर कार्यरत थे एवं माता यशोदाबाई धार्मिक महिला थी। महर्षि दयानंद सरस्वती को बचपन में मूलशंकर तिवारी के नाम से जाना जाता था। पिता के ब्रिटिश सरकार में अधिकारी होने के कारण महर्षि दयानंद का बचपन आराम से बिता एवं उन्हें किसी भी प्रकार की आर्थिक समस्या नहीं हुयी।
बचपन से ही घर में धार्मिक माहौल होने के कारण दयानंद ने उपनिषदों, वेदो, पुराणों एवं धार्मिक पुस्तकों का गहन अध्ययन किया एवं अपनी कुशाग्र बुद्धि का परिचय दिया। अपने जीवनकाल में जीवनपर्यन्त उन्होंने ब्रह्मचर्य धर्म का पालन किया।
मूलशंकर से महर्षि दयानंद बनने का सफर
महर्षि दयानंद सरस्वती की मूलशंकर तिवारी से महर्षि दयानंद बनने की कथा भी बड़ी रोचक है। कहा जाता है की एक बार महाशिवरात्रि के अवसर पर दिन भर पूजा उपवास के पश्चात बालक मूलशंकर पिता के निर्देशानुसार रात्रि जागरण व्रत के लिए शिव मंदिर में उपस्थित थे। वहाँ मूलशंकर भगवान की मूर्ति के सामने बैठे थे एवं भगवान के प्रसाद ग्रहण करने का इंतजार करने लगे। अर्धरात्रि के समय चूहों के झुण्ड ने मूर्ति के ऊपर चढ़ना एवं उत्पात मचाना प्रारम्भ कर दिया एवं वहाँ रखे हुए प्रसाद को खाने लगे। यह दृश्य देखकर मूलशंकर के मन में विचार आने लगा की जो ईश्वर खुद की रक्षा नहीं कर सकता वह मनुष्यों की क्या रक्षा करेगा।
इस घटना के पश्चात ही उन्होंने सत्य की खोज में घर त्याग कर संन्यास ग्रहण कर लिया एवं बालक मूलशंकर स्वामी दयानंद बन गए। स्वामी दयानंद बनने के पश्चात उन्होंने स्वामी विरजानंद के सानिध्य में शिक्षा ग्रहण की एवं गुरु दक्षिणा के रूप समाज सेवा का संकल्प लिया।
भारतीय समाज की नवचेतना के प्रतीक
स्वामी दयानन्द के समय काल में भारत औपनिवेशिक शासन के बोझ तले दबा हुआ था। 19वीं शताब्दी में भारत विभिन प्रकार के स्वतंत्रता आंदोलनों का केंद्र बना हुआ था। देश में औपनिवेशिक शासन से मुक्ति के लिए आजादी की भावना प्रबल हो रही थी ऐसे में देश की आजादी के लिए सशक्त मार्गदर्शन की आवश्यकता थी। इस काल में महर्षि दयानंद सरस्वती ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया एवं समाज को जागरूक करने का कार्य करने लगे। हालांकि महर्षि दयानंद सरस्वती मानते थे की देश की आजादी के लिए सर्वप्रथम आंतरिक बुराईयों-छुआछूत, आडम्बर, पाखण्ड, जातिवाद, धार्मिक कर्मकांड एवं अन्य सामाजिक बुराइयों को दूर करना आवश्यक है यही कारण रहा की उन्होंने देश को आंतरिक रूप से मजबूत करने की दिशा में विभिन कार्यक्रम संचालित किए।
आर्य समाज: एक नवीन आंदोलन की शुरुआत
देश के स्वतंत्रता संग्राम में स्वामीजी का सबसे महत्वपूर्ण योगदान आर्य समाज की स्थापना करना रहा। आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा 10 अप्रैल 1875 को मुंबई में की गयी। आर्य समाज के माध्यम से स्वामी दयानन्द सरस्वती द्वारा देश में व्यापात सामाजिक बुराइयों, छुआछूत, आडम्बर एवं अन्य बुराइयों को दूर करने हेतु शिक्षा का प्रसार करना था। इसके लिए आर्य समाज द्वारा एंग्लो-वैदिक स्कूलों की शुरुआत भी की गयी।
सत्यार्थ प्रकाश: ज्ञान की नयी किरण
आधुनिक भारत में जातिवाद के विरुद्ध सबसे प्रमुख ग्रन्थ की बात की जाए तो निसंदेह की स्वामी दयानंद द्वारा रचित ‘सत्यार्थ प्रकाश’ सबसे प्रमुख ग्रंथो में शुमार है। इस ग्रन्थ में स्वामी दयानंद द्वारा सभी मनुष्यो की समानता की चर्चा की गयी है साथ ही इसमें आडम्बर एवं चमत्कारों का खंडन भी किया गया है। “वेदो की और चलो” का नारा स्वामी दयानंद सरस्वती द्वारा ही दिया गया था। वर्तमान में भी यह पुस्तक देश के लाखों निवासियों को ज्ञान की नयी किरण देती है। साथ ही स्वामीजी द्वारा ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका, यजुर्वेद भाष्य एवं ऋग्वेद भाष्य सहित अनेक पुस्तकों की रचना की गयी।
स्वामी जी द्वारा किए गए महत्वपूर्ण कार्य
महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा देश की आंतरिक कमजोरियों को दूर करने के लिए विभिन आंदोलनों का सञ्चालन किया गया था। जातिवाद एवं आडम्बर जैसी बुराइयाँ देश को आंतरिक रूप से खोखला कर रही थी ऐसे में इन बुराईयों की जड़ो पर प्रहार करने के लिए स्वामी दयानन्द द्वारा शिक्षा को सशक्त माध्यम माना गया एवं देश में शिक्षा के प्रसार के लिए अनेक संस्थाएँ स्थापित की। इसके अतिरिक्त स्वामी जी द्वारा निम्न समाज सुधार कार्य भी कार्य किए गए।
- विधवा पुनर्विवाह
- सती प्रथा विरोध
- वर्ण भेद का विरोध
- एकता का संदेश
- नारी शिक्षा एवम समानता
महर्षि दयानंद सरस्वती का निधन
वर्ष 1883 में जोधपुर नरेश के आमंत्रण पर स्वामीजी जोधपुर रियासत में पहुंचे। वहां राजा ने स्वामीजी का खूब आथित्य सत्कार किया एवं उन्हें आध्यात्मिक शिक्षा देने का आग्रह किया। हालांकि जोधपुर के राजा नन्ही नामक नर्तकी के साथ भोग-विलास में डूबे रहते थे जिसे देखकर स्वामीजी ने उन्हें विलासिता का त्याग करने का सुझाव दिया जिसके पश्चात राजा ने ऐसा ही किया। इससे नर्तकी नाराज हो गयी एवं रसोईये के साथ मिलकर स्वामीजी के दूध में जहर मिला दिया। दूध वाले जहर के सेवन के कारण स्वामीजी का स्वास्थ्य ख़राब हो गया एवं 30 अक्टूबर 1883 को स्वामीजी इस संसार से महाप्रयाण कर गए। वर्तमान में भी स्वामी दयानंद की शिक्षाएँ देश के करोड़ो निवासियों को प्रेरणा देती है।
महर्षि दयानंद सरस्वती सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न ()
महर्षि दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात राज्य के टंकारा (मोरबी जिला), गुजरात में ब्राह्मण परिवार में हुआ था।
महर्षि दयानंद सरस्वती को बाल्यकाल में मूलशंकर तिवारी के नाम से जाना जाता था।
आर्य समाज की स्थापना स्वामी दयानंद सरस्वती के द्वारा 10 अप्रैल 1875 को मुंबई में की गयी।
वेदो की ओर चलो का नारा महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा दिया गया था।
सत्यार्थ प्रकाश की रचना महर्षि दयानंद सरस्वती द्वारा की गयी है।