प्राचीन काल से ही भारतवर्ष अपनी आध्यात्मिकता एवं पवित्रता के लिए सम्पूर्ण विश्व में प्रसिद्ध रहा है। भारत में विभिन पर्व, रीति-रिवाज एवं त्यौहार, पौराणिक कथाओं एवं आस्था से जुड़े है। भारतवर्ष के सबसे पवित्र, महत्वपूर्ण एवं सबसे बड़े उत्सव की बात की जाए तो निःसंदेह को Kumbh Mela देश का सबसे बड़ा पर्व है जिसमे विश्व के कोने-कोने से श्रद्धालु पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त करते है। कुम्भ मेला प्रति 12 वर्षों में आयोजित किया जाने वाला विशाल पर्व है जिसमे देश एवं विश्व के कोने-कोने से साधु-संतो, योगी, ऋषि-मुनि, तपस्वी, संन्यासी एवं भक्तो का सैलाब आस्था के सागर में डुबकी लगाने को उमड़ पड़ता है। वैदिक काल से प्रचलित कुम्भ मेला भारतवर्ष का सबसे प्राचीन पर्व भी माना जाता है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से आपको कुम्भ मेला (Kumbh Mela) सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान की जाएगी। जैसे की – Kumbh Mela क्या है ?
यह भी पढ़े :- (Akhara) अखाड़ा क्या होता है?
इस आर्टिकल के माध्यम से आपको Kumbh Mela क्या है कुम्भ मेला क्यों लगता है ? कुम्भ मेला कब और कहाँ लगता है तथा कुम्भ मेला का इतिहास क्या है सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में विस्तृत जानकारियाँ प्रदान की जाएगी। साथ ही यहाँ आप पवित्र कुम्भ से जुड़े अन्य महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में भी जानकारी प्राप्त कर सकेंगे।
यहाँ भी देखें -->> क्विज़ गेम खेलें और नकद जीतें
Article Contents
कुम्भ मेला (Kumbh Mela) क्या है ?
कुम्भ मेला प्रति 12 वर्ष में आयोजित किया जाने वाला भारतवर्ष का सबसे बड़ा सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक एवं पौराणिक पर्व है जिसे देश के सभी पर्वो में परम स्थान प्रदान किया गया है। कुम्भ मेला (Kumbh Mela) भारत ही नहीं अपितु विश्व के सबसे बड़े पर्व में रूप में स्थापित है। कुम्भ मेला भारतवर्ष में आस्था का सबसे बड़ा जमावड़ा है जिसके दौरान देश के कोने-कोने से संत-महात्मा, साधु-संन्यासी, ऋषि-मुनि एवं योगी एवं भक्त पवित्र नदियों में स्नान करके पुण्य लाभ प्राप्त करते है। कुम्भ मेले का आयोजन 48 दिनों तक किया जाता है जो आस्था के सबसे बड़े पर्व के रूप में प्रचलित है।
इसपर भी गौर करें :- चार धाम की यात्रा कैसे करें 2023
कुम्भ मेले का इतिहास
कुम्भ मेला भारतवर्ष के इतिहास में सबसे प्राचीन पर्वो में शामिल किया जाता है। देश के इतिहास में प्राचीन पौराणिक ग्रंथो एवं वैदिक काल में कुम्भ मेले के आयोजन सम्बंधित प्रमाण मिलते है। कुम्भ मेले का इतिहास 850 वर्ष से भी अधिक पुराना माना जाता है जिसकी शुरुआत जगतगुरु शंकराचार्य के द्वारा मानी जाती है। मध्यकालीन भारत की बात की जाए तो पुष्यमित्र वंश के महान शासक हर्षवर्द्धन के शासनकाल में आये चीनी यात्री ह्वेनसांग की सी-यू-की पुस्तक में हमे कुम्भ मेले के बारे में जानकारी मिलती है। अपनी पुस्तक में ह्वेनसांग ने कुम्भ मेले को मोक्षपर्व के नाम से सम्बोधित किया है साथ ही सम्राट हर्षवर्द्धन के मोक्षपर्व में शामिल होने के बारे में भी ह्वेनसांग द्वारा अपनी पुस्तक में वर्णन किया गया है।
कुम्भ मेले का प्रारम्भ कब हुआ ?
कुम्भ मेले के प्रारम्भ को लेकर सबसे अधिक प्रामाणिक जानकारी हमे विभिन पुराणों एवं धार्मिक ग्रंथो से प्राप्त होती है जिससे प्रतीत होता है की कुम्भ पर्व का प्रारम्भ आदिकाल से ही शुरू हो गया था। पौराणिक कथाओं के अनुसार जब अमृत प्राप्त करने के लिए देवताओ एवं असुरों ने समुद्र मंथन किया तो इस मंथन के परिणामस्वरूप सर्वप्रथम कालकूट विष निकला जिसको भगवान भोलेनाथ ने ग्रहण कर लिया जिसके कारण वे नीलकंठ कहलाये। समुद्र मंथन के अंतिम चरण में अमृत कुम्भ निकला जिसे की देवता एवं असुर दोनों ही प्राप्त करना चाहते थे जिससे की वे अमर हो जाएँ।
हालांकि देवराज इंद्र के इशारे पर उनका पुत्र जयंत अमृत का कुम्भ लेकर आकाश में उड़ गये जिन्हे पकड़ने के लिए असुर भी उनका पीछा करने लगे। अमृत को पाने के लिए असुरो एवं देवताओं में मध्य भयानक युद्ध हुआ जिसके परिणामस्वरूप अमृत की चार बूँदे धरती के चार स्थानों (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक एवं उज्जैन) में भी छलक पड़ी। जिन स्थानों पर भी अमृत की बूँदे गिरी वहाँ प्रति 12 वर्ष में कुम्भ का आयोजन किया जाता है। चूँकि अमृत पाने के लिए देवों एवं असुरों के मध्य 12 दिनों तक युद्ध चला था इसलिए कुम्भ का आयोजन प्रति 12 वर्ष में किया जाता है।
यह भी पढ़े :- रामेश्वरम मंदिर के इतिहास
Kumbh Mela कहाँ-कहाँ लगता है ?
पौराणिक ग्रंथो के अनुसार धरती पर चार स्थानों पर अमृत की बूँदे गिरी थी जहाँ प्रति 12 वर्ष में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है। कुम्भ मेला 12 वर्ष में देश के कुल चार भागो में आयोजित किया जाता है अर्थात सभी चार कुम्भ स्थलों पर 3 वर्ष के अंतराल पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है जिनका विवरण निम्न प्रकार से है :-
- हरिद्वार (उत्तराखंड)- गंगा नदी के तट पर
- प्रयागराज (उत्तर-प्रदेश)- गंगा-यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम पर
- उज्जैन (मध्यप्रदेश)- क्षिप्रा नदी के तट पर
- नासिक (महाराष्ट्र)- गोदावरी नदी के तट पर
यह ध्यान रखना आवश्यक है की कुम्भ मेला सर्वप्रथम हरिद्वार में, इसके 3 वर्ष बाद प्रयागराज में, इसके 3 वर्ष बाद उज्जैन में एवं इसके 3 वर्ष बाद नासिक में मनाया जाता है अर्थात प्रत्येक 12 वर्षों में कुम्भ मेले का आयोजन सभी कुम्भ स्थलों पर 3-3 वर्षो के अंतराल पर किया जाता है। 12 वर्ष पश्चात महाकुम्भ का आयोजन किया जाता है।
भारत के बारे में आश्चर्यजनक तथ्य | Amazing Facts About India in hindi
कुम्भ मेले के प्रकार
धार्मिक ग्रंथो में कुम्भ को निम्न प्रकार से विभाजित किया गया है:-
- महाकुम्भ मेला (Maha Kumbh Mela)– 12 पूर्ण कुम्भ मेले या 144 कुम्भ मेलों के पश्चात आयोजित होने वाला सबसे बड़ा कुम्भ। महाकुम्भ मेला सिर्फ प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
- पूर्ण कुम्भ मेला (Purna Kumbh Mela)– पूर्ण कुम्भ मेला सभी कुम्भ स्थलों (हरिद्वार, प्रयागराज, नासिक एवं उज्जैन) में प्रत्येक 12 वर्षो में बारी-बारी से आयोजित किया जाता है।
- अर्ध कुम्भ मेला (Ardh Kumbh Mela)- हालांकि अर्धकुम्भ का कोई पौराणिक इतिहास नहीं मिलता परन्तु देश में प्रति 6 वर्षो के अंतराल में कुम्भ स्थलों में सिर्फ हरिद्वार एवं प्रयागराज में अर्ध कुम्भ आयोजित किए जाते है।
- माघ कुम्भ मेला (Magha Kumbh Mela)– प्रतिवर्ष माघ माह में आयोजित किया जाने वाला कुम्भ पर्व जिसे की मिनी या लघु कुंभ भी कहा जाता है। यह सिर्फ प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।
कुम्भ पर्व की तिथि निर्धारण
कुम्भ पर्व सूर्य एवं गुरु या बृहस्पति के विभिन राशियों में स्थित होने पर किया जाता है जिसका विवरण इस प्रकार है :-
- हरिद्वार कुम्भ– सूर्य के मेष राशि एवं गुरु या बृहस्पति के कुम्भ राशि में प्रवेश करने पर हरिद्वार में कुम्भ पर्व का आयोजन किया जाता है।
- प्रयागराज कुम्भ– प्रयागराज में कुम्भ मेले का आयोजन सूर्य के मकर राशि एवं बृहस्पति के वृषभ राशि में प्रवेश करने पर किया जाता है।
- नासिक कुम्भ– बृहस्पति के सिंह राशि में प्रविष्ट होने के अवसर पर गोदावरी नदी के तट पर स्थित नासिक में कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।
- उज्जैन कुम्भ– सूर्य के मेष राशि एवं बृहस्पति के सिंह राशि में प्रवेश करने पर उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।
इस प्रकट यहाँ आपको हिंदू धर्म के सबसे पवित्र पर्व कुम्भ मेले से जुड़ी सभी प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान की गयी है।
Kumbh Mela से सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
कुम्भ मेला प्रति 12 वर्ष में आयोजित किया जाने वाला भारतवर्ष का सबसे बड़ा सांस्कृतिक, आध्यात्मिक, धार्मिक एवं पौराणिक पर्व है जिसके अवसर पर नदियों में स्नान करके पुण्य एवं मोक्ष का लाभ प्राप्त किया जाता है।
कुम्भ मेला (Kumbh Mela) भारतवर्ष में कुल चार स्थानों में आयोजित किया जाता है जो निम्न प्रकार से है :-
हरिद्वार (उत्तराखंड)- गंगा नदी के तट पर
प्रयागराज (उत्तर-प्रदेश)- गंगा-यमुना एवं अदृश्य सरस्वती के संगम पर
उज्जैन (मध्यप्रदेश)- क्षिप्रा नदी के तट पर
नासिक (महाराष्ट्र)- गोदावरी नदी के तट पर
कुम्भ मेले की शुरुआत पौराणिक ग्रंथो में वर्णित अमृत मंथन से शुरू होती है। पौराणिक ग्रंथो के अनुसार जहाँ-जहाँ अमृत की बूँदे गिरी थी उन स्थानों पर कुम्भ का आयोजन किया जाता है। ऊपर दिए गए आर्टिकल के माध्यम से आप इस सम्बन्ध में विस्तृत कथा पढ़ सकते है।
महाकुम्भ मेला (Mahakumbh Mela) प्रति 12 वर्षो में आयोजित किया जाता है। कुम्भ मेले का आयोजन 12 वर्षो में सभी चार कुम्भ स्थलों पर 3-3 वर्षो के अंतराल में किया जाता है जबकि महाकुम्भ 12 वर्षो के अंतराल में आयोजित किया जाता है।
अर्धकुम्भ मेला चार कुम्भ स्थलों में से सिर्फ 2 स्थलों, हरिद्वार एवं प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।