हीरा दुनिया के सबसे महँगे रत्न में शुमार किया जाता है यही कारण है की पूरी दुनिया में हीरे की अत्यधिक डिमांड है। हीरे की अंतर्राष्ट्रीय बाजार में अधिक माँग और इसके महँगे दामों के कारण कई लोगो और संगठनो द्वारा हीरे का अवैध व्यापार भी किया जाता है। हीरा व्यापार के अंतर्गत रफ़ डायमंड की अंतरराष्ट्रीय बाजार में सप्लाई रोकने के लिए कुछ वर्ष पूर्व विभिन देशों के मध्य समझौते के आधार पर किम्बरली प्रक्रिया शुरू की गयी है जिसके आधार पर हीरे के अवैध व्यापार को रोकने के प्रभावी प्रयास किये जा रहे है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले है की किम्बरली प्रक्रिया, ब्लड डायमंड, रफ़ डायमंड क्या है ? (What is Kimberley Process, Blood Diamond, Rough Diamond in Hindi). साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आपको किम्बरली प्रक्रिया के कार्यान्वयन एवं प्रभाव सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी भी प्रदान की जाएगी।
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किंबरले प्रक्रिया क्या है ? what is Kimberley Process?
किंबरले प्रक्रिया हीरा व्यापार हेतु अंतरराष्ट्रीय प्रमाणन योजना है जिसका मुख्य उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले ब्लड डायमंड या रफ़ डायमंड के व्यापार को नियंत्रित करके हीरा व्यापार में पारदर्शिता लाना है। किंबरले प्रक्रिया का मूलभूत उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले हीरा व्यापार (Diamond trade) में अवैध स्तर पर आयात-निर्यात होने वाले रफ़ डायमंड की चेन को तोड़ना है जिससे की डायमंड के ट्रेड में सिर्फ वैध तरीके से उत्पादित किए गए हीरों का व्यापार किया जा सके। किंबरले प्रक्रिया जिसे की किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (KPCS) भी कहा जाता है को वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पास किए गए प्रस्ताव के आधार पर शुरू किया गया है जिसमे की भाग लेने वाले देशों के मध्य आपसी सहमति से इस समझौते को लागू किया जाता है। इस प्रक्रिया में सिर्फ KPCS प्रमाणित हीरों के व्यापार को ही अनुमति प्रदान की जाती है।
ब्लड डायमंड, रफ़ डायमंड क्या है ?
किंबरले प्रक्रिया के बारे में जानने से पूर्व हमे रफ़ डायमंड के बारे में भी ज्ञात होना आवश्यक है। दरअसल जो हीरा आप विभिन आभूषणों जैसे अँगूठी, गले का हार या अन्य आभूषणों में देखते है वह अच्छी तरह से तराश किया गया होता है। परन्तु रफ़ डायमंड वह डायमंड होता है जिसे की बिना तराशे हुए ही मार्केट में बेचा जाता है अर्थात इसे खदानों से निकालकर सीधे मार्केट में सप्लाई कर दिया जाता है जो की बिल्कुल पत्थर की तरह अनियमित होता है। हालांकि प्रारम्भ में हर हीरा ही रफ़ डायमंड (Rough Diamond) होता है परन्तु जब इस डायमंड को अवैध तरीके से विद्रोही बलों, लड़ाकू समूहों, बेईमान व्यापारियों, आतंकी और अवैध संगठनो द्वारा युद्ध या संकटग्रस्त क्षेत्र से अवैध खुदाई करके मार्केट में बेचा जाता है तो इसे रफ़ डायमंड (Conflict Diamond) या ब्लड डायमंड कहा जाता है।
रफ़ डायमंड को अकसर ब्लड डायमंड भी कहा जाता है जिसका मुख्य कारण इस हीरे को विद्रोही गुटों, लड़ाकू समूहों, तानाशाह सरकारों, अवैध समूहों एवं आतंकी गुटों के द्वारा लोगो से जबरन खुदाई करके निकलवाया जाता है जिसमे की कई लोगो की मृत्यु भी हो जाती है जिसके कारण इस डायमंड को ब्लड डायमंड भी कहते है। इस अवैध व्यापार से प्राप्त धन का उपयोग इन गुटों द्वारा पूरी दुनिया में आतंक फैलाने एवं अवैध कार्यो के लिए किया जाता है यही कारण है की इस व्यापार को नियंत्रित करने के लिए किंबरले प्रक्रिया को शुरू किया गया है।
किम्बरली प्रक्रिया, क्या है इतिहास ?
किम्बरली प्रक्रिया का इतिहास वर्ष 1998 से शुरू होता है जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा अफ्रीकी देश अंगोला के एक विद्रोही गुट UNITA (National Union for the Total Independence of Angola) के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा पारित किए गए संकल्प 1173 के माध्यम से प्रतिबन्ध लगाया गया। इसके पश्चात वर्ष 2000 में जब जांचकर्ता रोबर्ट फाउलर की अध्यक्षता में जांच समिति ने विद्रोही गुट UNITA पर लगे प्रतिबंधों की जांच की तो समिति ने पाया की विद्रोही गुट पर लगे प्रतिबन्ध कारगर नहीं है जिसका कारण यह था की विद्रोही गुटों द्वारा रफ़ डायमंड (Conflict Diamond) या ब्लड डायमंड की अवैध तस्करी के माध्यम से अच्छा-ख़ासा धन कमाया जा रहा था और वे इससे अपने लिए हथियार और अन्य सामान खरीद रहे थे। इसी प्रक्रिया के बाद यूनाइटेड नेशन के माध्यम से ब्लड डायमंड के व्यापार पर नियंत्रण के लिए सहमति बनी।
ब्लड डायमंड के व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिए संयुक्त-राष्ट्र जनरल असेंबली द्वारा वर्ष 2000 में संकल्प A/RES/55/56 पास किया गया जिसके आधार पर किम्बरली प्रक्रिया को शुरू करने पर सहमति बनी। जनवरी 2003 में संयुक्त-राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा संकल्प 1459 के माध्यम से इसे मजबूत आधार प्रदान किया गया। इसके बाद प्रतिवर्ष सहभागी सदस्यों के द्वारा इस सम्बन्ध में बैठक आयोजित की जाती है।
कैसे काम करती है किम्बरली प्रक्रिया
किम्बरली प्रक्रिया के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र द्वारा पारित संकल्प के आधार पर पूरी दुनिया में होने वाले रफ़ डायमंड के व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिए विभिन प्रकार के कदम उठाये गए है। किम्बरली प्रक्रिया के अंतर्गत निम्न माध्यमों से अंतर्राष्ट्रीय रफ़ डायमंड के व्यापार को प्रतिबंधित किया जाता है।
- व्यापक आवश्यकताएं – किम्बरली प्रक्रिया के तहत ब्लड-डायमंड को प्रतिबंधित करने के लिए इसके सदस्य देशों के लिए व्यापक आवश्यकताएं निर्धारित की जाती है। इन आवश्यकताओं के अंतर्गत यह सुनिश्चित किया जाता है की सदस्य देशों के मध्य होने वाला डायमंड ट्रेड पूर्ण रूप से ब्लड-डायमंड मुक्त है एवं इसमें किसी भी प्रकार का अवैध व्यापार शामिल नहीं है। इसके लिए सदस्य देशो के लिए निम्न नियमो को आवश्यक किया गया है –
- किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेट- सदस्य देशो के बीच सिर्फ किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेट के माध्यम से प्रमाणित हीरों का ही व्यापार किया जाएगा। किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (KPCS) के तहत प्रमाणित हीरों के माध्यम से फ्री ब्लड-डायमंड के व्यापार को सुनिश्चित किया जा सकता है।
- कानून का पालन- सभी सदस्य देशों की जिम्मेदारी होगी की वे रफ़-डायमंड के व्यापार को रोकने के लिए अपने यहाँ निर्धारित कानूनों को लागू करें जिससे की मार्केट में ब्लड-डायमंड की पहुंच ना हो सके।
- संस्थानों को स्थापित करना- देश में चल रहे ब्लड डायमंड के कारोबार को प्रभावी रूप से नियंत्रित करने के लिए सदस्य देशो के लिए यह अनिवार्य होगा की वे अपने यहाँ सम्बंधित संस्थानों को स्थापित करें जिससे की किम्बरली प्रक्रिया का देश में प्रभावी रूप से क्रियान्वयन किया जा सके।
- वाणिज्य सम्बंधित आँकड़े उपलब्ध करवाना- सभी सदस्य देशों को किम्बरली प्रक्रिया के तहत निर्धारित नियमो का पालन करते हुए डायमंड ट्रेड से सम्बंधित आँकड़ो का ब्यौरा सही से रखना होगा जिससे की व्यापार में पारदर्शिता की जांच की जा सके।
- KPCS आयत-निर्यात सम्बंधित नियम- किम्बरली प्रक्रिया में सभी सदस्य देशो के लिए यह आवश्यक है की वे किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेशन स्कीम (KPCS) के माध्यम से सर्टिफाइड हीरों का ही आयात-निर्यात करे। इसके लिए सभी डायमंड का किम्बरले प्रोसेस सर्टिफिकेट प्रमाणित होना आवश्यक है इसके अतिरिक्त उन्हें सिर्फ टेम्पर प्रूफ कंटेनर (tamper proof container) के माध्यम से आयात-निर्यात किया जायेगा।
- आवश्यक वारन्टी- सभी सदस्य देशो के मध्य रफ़-डायमंड मुक्त व्यापार को सुनिश्चित करने के लिए सभी सदस्य देशो के लिए आवश्यक होगा की सम्बंधित देश में किसी भी कंपनी या व्यक्ति द्वारा ख़रीदे या बेचे जा रहे डायमंड के लिए वारंटी को सुनिश्चित किया जाए जिसमे की डायमंड के रफ़-डायमंड से मुक्त होने सम्बंधित जानकारी दर्ज हो।
- सदस्य देशों के मध्य सहभागिता- किम्बरली प्रक्रिया पूर्ण रूप से इसके सदस्य देशो के मध्य आपसी सहयोग पर निर्भर करती है। वर्तमान में इस संस्था के 85 सदस्य देश है। इस संस्था के सदस्य देशो के मध्य ही किम्बरली प्रक्रिया को लागू किया जायेगा। जो भी सदस्य इस प्रक्रिया में शामिल नहीं है उन्हें इस प्रक्रिया का लाभ नहीं दिया जायेगा।
किम्बरली प्रक्रिया सम्बंधित महत्वपूर्ण बिंदु
किम्बरली प्रक्रिया के द्वारा सभी सदस्य देशो के मध्य हीरा व्यापार में पारदर्शिता लाने के लिए महत्वपूर्ण कदम उठाये गए है। इस प्रक्रिया से सम्बंधित मुख्य बिंदु निम्न प्रकार से है :-
- वर्तमान समय में किम्बरली प्रक्रिया के अंतर्गत कुल 85 सदस्य देश शामिल है जिनमे यूरोपियन यूनियन के अतिरिक्त चीन, अमेरिका एवं भारत को भी शामिल किया गया है। भारत वर्ष 2003 से ही इस संगठन का सदस्य रहा है।
- किम्बरली प्रक्रिया के अंतर्गत शामिल देश दुनिया में रफ़ डायमंड के कुल 99.8 फीसदी हिस्से को नियंत्रित करते है। ऐसे में सदस्य देशों के मध्य सहभागिता से ब्लड-डायमंड के व्यापार को पूर्णता नियंत्रित किया जा सकता है।
- ब्लड-डायमंड के व्यापार पर प्रभावी नियंत्रण रखने के लिए इस संगठन के सदस्य देशो के मध्य अध्यक्षता रोटेशन के आधार पर की जाती है। भारत द्वारा भी वर्ष 2019 में किम्बरली प्रक्रिया की अध्यक्षता की जा चुकी है। इस प्रक्रिया में प्रतिवर्ष एक उपाध्यक्ष देश को भी नामित किया जाता है।
- किम्बरले प्रोसेस के अंतर्गत मेम्बरशिप प्राप्त करने के लिए सभी सदस्य देशो को इस सम्बन्ध में बनाये गए सभी नियमों का पालन करना आवश्यक होता है। इसके लिए सभी सदस्य देशों को सभी आवश्यक दस्तावेजों की ओरिजिनल हार्ड कॉपी को जमा करवाना आवश्यक है। इसके अतिरिक्त व्यापारियों को भी ट्रेड-लाइसेंस, इम्पोर्ट-एक्सपोर्ट और स्टॉक सम्बंधित आंकड़ों को निर्धारित समय में प्रस्तुत करना आवश्यक है।
किम्बरली प्रक्रिया का प्रभाव
किम्बरली प्रक्रिया के लागू होने के पश्चात सदस्य देशो के मध्य रफ़ या ब्लड डायमंड के व्यापार में उल्लेखनीय कमी दर्ज की गयी है। वर्तमान में 85 देश इस प्रक्रिया में शामिल हो चुके है जो की पूरी दुनिया के रफ डायमंड के 99.8 फीसदी हिस्से को नियंत्रित करते है यही कारण रहा है की पूरी दुनिया में ब्लड डायमंड के व्यापार पर अंकुश लगाया गया है। विश्व डायमंड कांउसिल द्वारा जारी की गयी रिपोर्ट के अनुसार किम्बरली प्रक्रिया के फलस्वरूप पूरी दुनिया में ब्लड डायमंड के व्यापार में प्रभावी कमी देखी गयी है और इसके फलस्वरूप वर्तमान में सदस्य देशो के मध्य होने वाला 99 फीसदी डायमंड व्यापार ब्लड डायमंड मुक्त व्यापार है। हालांकि कई संस्थानों के द्वारा इस प्रक्रिया की कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिन्ह भी खड़े किये गए है।
ग्लोबल विटनेस संस्थान से सम्बंधित एमी बैरी द्वारा सरकारों की इच्छाशक्ति को इस प्रक्रिया की असफलता के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है। हालांकि इन सब आलोचनाओं के पश्चात भी विश्व व्यापार संगठन के द्वारा इस प्रक्रिया के महत्व को देखते हुए वर्ष 2006 में इसे विभिन प्रकार की छूट प्रदान की गयी है। इसके अतिरिक्त विभिन अंतर्राष्ट्रीय संगठनो के द्वारा भी किम्बरली प्रक्रिया के प्रभाव को सराहा गया है। किम्बरली प्रक्रिया को और बेहतर बनाने एवम ब्लड-डायमंड के व्यापार को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित करने के लिए विभिन प्रकार के नवीन तकनीकों का उपयोग किया जा रहा है।
किम्बरली प्रक्रिया सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
किम्बरली प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र महासभा एवं संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् द्वारा अनुमोदित किया गया संकल्प है जिसके अंतर्गत सदस्य देशो के द्वारा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रफ़ डायमंड या ब्लड डायमंड के व्यापार को प्रतिबंधित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय प्रमाणन अनिवार्य किया जायेगा।
रफ़ डायमंड या ब्लड डायमंड युद्धग्रस्त क्षेत्रों में विद्रोही गुटों या चरमपंथी आतंकी गुटों के द्वारा अवैध रूप से खनन किया गया डायमंड होता है जो की अंतर्राष्ट्रीय नियमो के अनुसार अवैध होता है। चूँकि इसे इन गुटों के द्वारा आम लोगो से बर्बरतापूर्ण तरीके से खनन करवाया जाता है इसलिए इसे ब्लड डायमंड भी कहा जाता है।
रफ़ डायमंड या ब्लड डायमंड को विद्रोही गुटों या बेईमान व्यापारियों के द्वारा अवैध रूप से खनन किया जाता है और इसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचा जाता है। ऐसे में इस प्रकार से प्राप्त धन का उपयोग देश के आंतरिक व्यवस्था को ख़राब करने और चुनी हुयी सरकारों के विरुद्ध किया जाता है।
किम्बरली प्रक्रिया की कार्यविधि जानने के लिए ऊपर दिया गया लेख पढ़े। इस लेख में आपको किम्बरली प्रक्रिया की कार्यप्रणाली के बारे में सम्पूर्ण जानकारी प्रदान की गयी है।
किम्बरली प्रक्रिया को सर्वप्रथम फाउलर समिति की रिपोर्ट पर वर्ष 2000 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा सहमति प्रदान की गयी। वर्ष 2003 में इस प्रक्रिया को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद् के द्वारा भी सहमति प्रदान की गयी जिसके पश्चात इस प्रक्रिया के माध्यम से ब्लड-डायमंड के व्यापार को प्रतिबंधित करने हेतु नियम निर्धारित किये गए है।
हाँ भारत भी किम्बरली प्रक्रिया का सक्रिय सदस्य है। भारत द्वारा वर्ष 2003 में ही इस प्रक्रिया की सदस्यता ग्रहण की गयी है। इसके अतिरिक्त वर्ष 2019 में भारत इस प्रक्रिया की मेजबानी भी कर चुका है।