जानिए कौन थी होलिका और क्या है होली के पीछे का इतिहास | Holika Story In Hindi

भारतवर्ष को त्योहारों का देश कहा जाता है। देश में वर्ष भर विभिन प्रकार के उत्सव एवं त्योहारों को धूम रहती है। हालांकि प्रकाश का त्यौहार दिवाली एवं रंगो के त्यौहार होली को देश के सबसे प्रमुख त्योहारों के रूप में मान्यता प्राप्त है। देश में मनाए जाने वाले विभिन उत्सवों एवं त्योहारों के पीछे विभिन प्रकार की आध्यात्मिक एवं पौराणिक मान्यताएँ भी मौजूद है जो की मानव जीवन के विभिन पहलुओं के बारे में प्रतीकात्मक सीख प्रदान करती है। रंगो का त्यौहार होली भी हमे बुराई पर अच्छाई का संदेश देता है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको होली के त्यौहार से जुड़ी हुयी मान्यताओं के बारे में सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले है। आगे जानिए कौन थी होलिका ?

कौन थी होलिका? Holika Story In Hindi
कौन थी होलिका

होली की कथा प्रसिद्ध असुर राजा हिरणकश्यप के पुत्र प्रह्लाद एवं बहन होलिका (Holika Story In Hindi) से जुड़ी हुयी है। होली के त्यौहार पर होलिका दहन का प्रमुख महत्व होता है ऐसे में आप यहाँ होलिका दहन से जुड़ी मान्यताओं के सम्बन्ध में भी महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में अवगत हो सकेंगे।

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होलिका से जुड़ी है होली की कथा

रंगो का त्यौहार होली भारतवर्ष के सबसे प्रमुख त्योहारों में शामिल किया जाता है। प्राचीन काल से ही देश में इस त्यौहार को मनाये जाने के प्रमाण उपलब्ध हुए है जिसे की देश के विभिन भागो में विभिन रूपों में मनाया जाता रहा है। फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाने वाला होली का त्यौहार मानव जीवन को खुशियों के रंग से सरोबार कर देता है। होली के अवसर पर होलिका दहन का विशेष महत्व है। होली के एक दिन पूर्व होलिका दहन किया जाता है जो की बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक के रूप में प्रचलित है। होलिका दहन के अगले दिन रंगो, अबीर और गुलाल से होली का त्यौहार मनाया जाता है। भारतवर्ष में ब्रज के बरसाना की लट्ठमार होली सबसे प्रसिद्ध होली है।

होलिका कौन थी ? (Who was Holika)

होली की कथा असुर कुल में जन्मी होलिका से जोड़ी जाती है। सतयुग में इस धरती पर एक असुर राजा रहता था जिसे हिरण्कश्यप के नाम से जाना जाता था। होलिका इसी हिरण्कश्यप असुर की बहन थी। होलिका के माता-पिता महर्षि कश्यप और दिति थे। असुर कुल में पैदा होने के कारण होलिका को अपने भाई हिरण्कश्यप पर बड़ा अभिमान था। भगवान के वरदान से होलिका को यह शक्ति प्राप्त थी की अग्नि उसे भस्म नहीं कर सकती परन्तु नारायण भक्त प्रह्लाद को भस्म करने के प्रयास में होलिका स्वयं अग्नि में जलकर भस्म हो गयी।

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क्या है होली के पीछे का इतिहास

ब्रह्मपुराण में वर्णित कथा के अनुसार सतयुग में इस धरती पर हिरणकश्यप नाम का एक अत्याचारी दैत्य पैदा हुआ। हिरणकश्यप ने ब्रह्मादेव की कठिन तपस्या की एवं ब्रह्मादेव से अमर होने के वरदान माँग लिया। ब्रह्मादेव से आशीर्वाद से हिरणकश्यप को यह वरदान प्राप्त हो गया की उसे ना तो कोई नर मार सकता है और ना ही कोई पशु, उसे ना दिन में मारा जा सकता है और ना ही रात को, उसे ना घर के अंदर मारा जा सकता और ना ही घर के बाहर। इस वरदान को प्राप्त करके हिरणकश्यप स्वयं को नारायण समझने लगा एवं उसने समस्त जनता को स्वयं की पूजा करने का आदेश दे दिया। हालांकि असुर हिरणकश्यप का पुत्र प्रह्लाद भगवान श्रीहरि का अनन्य भक्त था एवं हर समय नारायण-नारायण, श्री-हरी, श्री-हरी, के जाप में ही मग्न रहता था। अपने पुत्र की हरी भक्ति देखकर हिरणकश्यप को बड़ा क्रोध आता था। अपने पुत्र प्रह्लाद को मारने के लिए हिरणकश्यप के द्वारा विभिन यत्न किए गए परन्तु भक्त-वत्सल प्रह्लाद हर बार भगवान की कृपा से बच निकले।

अंत में हिरणकश्यप ने प्रह्लाद को अग्नि में भस्म करने का निश्चय किया गया। हिरण्कश्यप की बहन होलिका को अग्नि में भस्म ना होने का वरदान प्राप्त था। यही कारण रहा की हिरणकश्यप द्वारा होलिका को प्रह्लाद को अपनी गोद में बैठाकर चिता में बैठने का आदेश दिया गया। हालांकि जब होलिका अग्नि में बैठी तो परिणाम आशा के बिल्कुल विपरीत था। अग्नि में भस्म ना होने वाली होलिका अग्नि में जलकर भस्म हो गयी जबकि भक्त प्रह्लाद श्रीहरि की कृपा से सकुशल अग्नि से बाहर निकल आये। कहा जाता है की होलिका के भस्म होने के उपलक्ष में ही होलिका दहन किया जाता है। इस प्रकार होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में प्रचलित है।

होली से जुड़ी अन्य कथाएँ

होली से विभिन पौराणिक कथाओं को जोड़ा जाता है। कहा जाता है ध्यान में मग्न भगवान भोलेनाथ को आकर्षित करने के लिए रति के आग्रह पर कामदेव द्वारा पुष्पबाण प्रयोग किया गया था। तपस्या में विघ्न पड़ने पर भगवान भोलेनाथ को इतना क्रोध आया की उन्होंने अपने तीसरे नेत्र के द्वारा कामदेव को भस्म कर दिया। कामदेव के भस्म होने पर अगले दिन भोलेनाथ द्वारा कामदेव को पुनः जीवित किया गया। कामदेव के भस्म होने एवं पुनः जीवित होने एक उपलक्ष में भी होली का त्यौहार मनाया जाता है। साथ ही भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पूतना राक्षसी के वध को भी होली के त्यौहार से जोड़ा जाता है।

वर्ष 2023 में होली कब है ?

होली का त्यौहार 2023 (Holi 2023 Date), बुद्धवार, 8 मार्च 2023 को मनाया जायेगा। इस वर्ष होलिका दहन शुभ मुहूर्त 2023 (Holika Dahan 2023), मंगलवार, 7 मार्च 2023 को सांय 6 बजकर 24 मिनट से रात 8 बजकर 51 मिनट तक पड़ रहा है। ऐसे में यह मुहूर्त होली दहन के लिए सर्वाधिक उपयुक्त है।

होलिका दहन एवं होली से सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

होली का त्यौहार कब मनाया जाता है ?

होली का त्यौहार फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अवसर पर मनाया जाता है।

होली का त्यौहार क्या सन्देश देता है ?

होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली के रंग जीवन में खुशियों का सन्देश लेकर आते है।

होलिका दहन से सम्बंधित जानकारी प्रदान करें ?

होलिका दहन की कथा असुर राजा हिरणकश्यप, भक्त प्रह्लाद एवं होलिका से जुड़ी है। इस सम्बन्ध में विस्तृत कथा पढ़ने के लिए आप ऊपर दिया गया आर्टिकल चेक कर सकते है।

वर्ष 2023 में होली कब है ?

होली का त्यौहार 2023 (Holi 2023 Date), बुद्धवार, 8 मार्च 2023 को मनाया जायेगा।

भारत में सबसे प्रसिद्ध होली कौन सी है ?

भारत में सबसे प्रसिद्ध होली ब्रज के बरसाना में मनाई जाने वाली लट्ठमार होली है।

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