जलियांवाला बाग हत्याकांड कब और कहां हुआ ? जलियांवाला बाग इतिहास | Jallianwala Bagh History in hindi

भारत की स्वतंत्रता के इतिहास के कई ऐसे अध्याय है जो आज भी हमे सोचने को विवश कर देते है। देश के स्वतंत्रता संग्राम में जलियांवाला बाग हत्याकांड (JALLIANWALA BAGH MASSACRE) एक ऐसा काला अध्याय है जो की आज भी करोड़ो भारतीयों की आत्मा को अंदर से झकझोर देता है। जलियांवाला बाग में औपनिवेशिक शासन द्वारा की गयी नृसंश कार्यवाही और रक्तपात ने भारतीय समाज को अनिश्चित काल तक ना भरने वाले घाव दिए है। 13 अप्रैल 1919 को जलियांवाला बाग में अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर द्वारा निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ चलवाकर जलियांवाला बाग की धरती को रक्तरंजित कर दिया गया था। इस घटनाक्रम ने पूरे देश को निस्तब्ध सा कर दिया था। भारतीय इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड एक ऐसे अध्याय के रूप में अंकित है जिसके बिना भारतीय स्वतंत्रता की कहानी अधूरी है।

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जलियांवाला बाग हत्याकांड, Jallianwala Bagh History in hindi

आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम Jallianwala Bagh Hatyakand से जुड़े हुए सभी महत्वपूर्ण बिन्दुओ के बारे में चर्चा करने वाले है। इस आर्टिकल के माध्यम से आपको Jallianwala Bagh Hatyakand क्या है और यह क्यों हुआ था ? जलियांवाला बाग हत्याकांड के क्या कारण है एवं इस घटना के पश्चात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम ने क्या रुख लिया ? सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले है। Jallianwala Bagh History in hindi सम्बंधित जानकारी प्राप्त करने के अतिरिक्त यहाँ आप इस घटना से जुड़े अन्य पहलुओं से भी परिचित हो सकेंगे।

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जलियांवाला बाग हत्याकांड (JALLIANWALA BAGH MASSACRE) क्या है ?

20वीं सदी के प्रारब्ध में भारत में ब्रिटिश शासन के प्रति स्वतंत्रता आंदोलन अपने चरम पर था। वर्ष 1915 में गाँधीजी के आगमन के पश्चात देश के स्वतंत्रता आंदोलन मुख्यत अहिंसक हो गया था। हालाँकि दमनकारी ब्रिटिश सरकार भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए विभिन प्रयास के कुचक्र रच रही थी। इसी क्रम के ब्रिटिश सरकार द्वारा रौलेट एक्ट (rowlatt act) पारित किया गया जिसका देश की जनता पूर्ण रूप से विरोध कर रही थी। रौलेट एक्ट के विरोध की परिणति ही भारतीय इतिहास में जलियांवाला बाग हत्याकांड के रूप में जानी जाती है जहाँ ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर द्वारा पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में निहत्थी भीड़ पर अंधाधुंध गोलियाँ बरसाई गयी थी जिसमे हजारों पुरुष, महिलाएँ तथा बच्चे शहीद हो गए थे। इस घटना के पश्चात पूरे देश में ब्रिटिश शासन के प्रति क्रोध की ज्वाला भड़क उठी एवं इस क्रांति के परिणामस्वरूप अंततः वर्ष 1947 में अंग्रेजो को भारत को आजादी देनी पड़ी।

क्या है जलियांवाला बाग हत्याकांड की पृष्ठभूमि

20वीं सदी के प्रारंभ में ब्रिटिश सरकार के प्रति विद्रोह की आग और भी तेज हो गयी थी। इसके परिणामस्वरूप औपनिवेशिक शासन द्वारा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए विभिन प्रकार के षड्यंत्र रचे जा रहे थे। इसी क्रम में 18 मार्च 1919 को ब्रिटिश सरकार द्वारा रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) को पास किया गया जिसके तहत ब्रिटिश सरकार को यह अधिकार मिल गया की वह किसी भी व्यक्ति को शक के आधार पर गिरफ्तार कर सकती थी एवं 2 वर्षो तक हिरासत में रख सकती थी।

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों के द्वारा इस अधिनियम को “ना अपील, ना वकील, ना दलील” तथा काला कानून का नाम दिया गया। ब्रिटिश सरकार द्वारा इस कानून को देश-विरोधी गतिविधियों पर लगाम लगाने के उदेश्य से प्रेरित बताया गया परन्तु इस अधिनियम का वास्तविक उद्देश्य भारतीय आंदोलनकारियों का दमन करके स्वतंत्रता की आवाज को दबाना था। इस अधिनियम के विरोध में गाँधीजी द्वारा देशव्यापी आंदोलन एवं हड़ताल का आह्वान किया गया जिसका पंजाब राज्य में भी व्यापक प्रभाव दिखायी पड़ा।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का तात्कालिक कारण

रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) के विरोध में पंजाब राज्य में भी तीखी प्रतिक्रिया हुयी। इस अधिनियम के विरोध में पंजाब में भी जगह-जगह विरोध प्रदर्शन एवं आंदोलन आयोजित किए गए। रौलेट एक्ट के विरोध के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार द्वारा दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल जो की पंजाब में प्रसिद्ध नेता एवं लोकप्रिय स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे, को गिरफ्तार करके धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया गया। इसके विरोध में जनता द्वारा 10 अप्रैल को हिंसक प्रदर्शन किए गए एवं कई सरकारी दफ्तरों को आग के हवाले कर दिया गया। पंजाब में क्रांतिकारियों की बढ़ती हिंसा के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार द्वारा यहाँ मार्शल लॉ लागू कर दिया गया एवं ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल डायर को पंजाब में स्थिति को काबू करने की जिम्मेदारी सौंप दी गयी।

पंजाब की कमान संभालते ही जनरल डायर द्वारा राज्य में कर्फ्यू लागू कर दिया गया एवं 3 अधिक लोगों के एक ही स्थान पर जमा होने पर पाबंदी लगा दी। साथ ही सार्वजनिक सभा एवं जुलूस प्रदर्शन पर भी प्रतिबन्ध आरोपित कर दिया गया जिससे की क्रांतिकारियों को आवाज को कुचला जा सके।

जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ ?

13 अप्रैल का दिन भारतीय स्वतंत्रता इतिहास में काले-अक्षरों में दर्ज है। इस दिन ब्रिटिश शासन द्वारा जलियांवाला बाग में जघन्य हत्याकांड को अंजाम दिया गया था एवं हजारों निर्दोषों को मौत के घाट उतार दिया गया। जलियांवाला बाग पंजाब के अमृतसर जिले में स्थित एक बाग़ है जहाँ 13 अप्रैल 1919 को बैशाखी के दिन हजारों लोग शांतिपूर्ण तरीके से विरोध-प्रदर्शन में शामिल हुए थे। सिखों का त्यौहार बैशाखी का दिन होने के कारण वहां अधिकतर लोग अपने परिवार के साथ घूमने भी आये थे। इस दौरान पंजाब के राष्ट्रवादी नेताओ की गिरफ़्तारो के विरोध में वहां विरोध-प्रदर्शन का आयोजन भी किया गया।

शहर में कर्फ्यू लागू होने की बात से अनजान हजारों लोग जलियांवाला बाग में सभा कर रहे थे। बाग़ में भीड़ की खबर सुनकर ब्रिगेडियर जनरल रेजिनाल्ड एडवर्ड डायर आग-बबूला हो गया और भारतीय क्रांतिकारियों को सबक सिखाने के मकसद से 90 सिपाहियों को लेकर जलियांवाला बाग पहुँच गया। यहाँ पहुँचने के बाद सबसे पहले जनरल डायर द्वारा इस बाग़ से बाहर निकलने के एकमात्र गेट पर अपने सिपाही तैनात किए गए एवं निहत्थी जनता पर 10 मिनट तक ताबड़तोड़ गोलियाँ बरसाई गयी। इस हत्याकांड में पुरुष, महिलाओं सहित बच्चो एवं बुजुर्गो को भी नहीं बक्शा गया। कुछ ही देर में जलियांवाला बाग की पूरी धरती रक्त से लहूलुहान हो गयी तथा चारों और लाशों के ढेर दिखाई देने लगे।

1,200 से अधिक लोगों ने दिया बलिदान

जलियांवाला बाग हत्याकांड को ब्रिटिश सरकार में ब्रिगेडियर जनरल एडवर्ड डायर द्वारा सुनियोजित तरीके से अंजाम दिया गया था। जलियांवाला बाग चारों ओर से 10 फीट से ऊँची-ऊँची दीवारों से घिरा था ऐसे में यहाँ से निकलने के लिए सिर्फ गेट ही सुरक्षित निकास था। हालाँकि यहाँ पहुँचने के बाद जनरल डायर द्वारा सबसे पहले इस गेट पर अपने सिपाही तैनात किए गए एवं इस बाग़ को चारों ओर से घेर लिया गया। इसके पश्चात बिना किसी चेतावनी दिए डायर द्वारा अपने सैनिको को निहत्थे लोगो पर गोली चलाने के आदेश दिए गए। ब्रिटिश सैनिकों द्वारा यहाँ 10 मिनट तक अंधाधुंध गोलियाँ बरसाई गयी। इतिहासकारों के अनुसार जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश सैनिक तब तक गोलियाँ बरसते रहे जब तक की सभी गोलियाँ खत्म नहीं हो गयी। मात्र 10 मिनट में ही इस बाग़ में 1600 राउंड से भी अधिक फायर किए गए।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के दौरान ब्रिटिश सिपाहियों की गोली से बचने के लिए लोग इधर-उधर अपनी जान बचाकर भागने लगे परन्तु बाहर निकलने का कोई रास्ता ना होने के कारण हजारो लोगो को यहाँ अपनी जान गवाँनी पड़ी। इस दौरान अनेक लोग अपनी जान बचाने के लिए बाग़ में मौजूद कुएँ में कूद पड़े परन्तु कुछ ही देर में यह कुआँ भी लाशों के ढेर से पट गया। ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों में दर्ज जानकारी के अनुसार इस घटनाक्रम में 379 लोगों की मौत हुयी थी एवं 200 लोग घायल हुए थे। हालाँकि अनधिकारिक आंकडो के अनुसार इस घटना में 1,200 से भी अधिक लोगो ने अपनी जान गवाँयी थी। जलियांवाला बाग में 388 शहीदों की सूची लगी हुयी है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद का घटनाक्रम

Jallianwala Bagh Hatyakand के पश्चात पूरे देश में इस वीभत्स घटना की कड़ी निंदा हुयी। भारतीय जनता द्वारा ब्रिटिश सरकार के प्रति हिंसक विरोध प्रदर्शन एवं आंदोलन किए गए। इस घटना ने ब्रिटिश सरकार की असली चेहरा भारतीय जनता के सामने पेश कर दिया था। जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में महात्मा गाँधी द्वारा कैसर-ए-हिन्द तथा रवीन्द्रनाथ टैगोर के द्वारा ‘नाइटहुड’ की उपाधि को लौटा दिया गया। जमनालाल बजाज द्वारा रायबहादुर की उपाधि को भी ब्रिटिश सरकार को वापस लौटा दिया गया। वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य शंकरराम नायर ने भी जलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में इस परिषद् से इस्तीफा दे दिया। इस घटना के पश्चात भारतीय स्वतंत्रता संग्राम और भी उग्र हो गया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड एवं हंटर कमीशन

जलियांवाला बाग हत्याकांड के फलस्वरूप बढ़ते दबाव से तत्कालीन भारत सचिव एडविन मांटेग्यू ने इस घटना की जांच के लिए विलियम हंटर की अध्यक्षता में हंटर कमीशन (Hunter Commission) का गठन किया गया। इस कमीशन में कुल 7 सदस्य थे जिनमे 3 भारतीय सदस्यों – सर चिमनलाल हरिलाल सीतलवाड़, सरदार साहिबजादा सुल्तान अहमद खान एवं पंडित जगत नारायण को भी शामिल किया गया। इस कमीशन द्वारा वर्ष 1920 में अपनी रिपोर्ट पेश की गयी जिसमे जलियांवाला बाग हत्याकांड की निंदा तो की गयी थी परन्तु जनरल डायर को इस घटना में निर्दोष घोषित कर दिया था। हालाँकि अधिक बल प्रयोग करने की पुष्टि होने पर इसी वर्ष जनरल डायर को सेवामुक्त कर दिया गया था। वास्तव में यह रिपोर्ट ब्रिटिश सरकार द्वारा की गयी लीपापोती मात्र थी जिसका उद्देश्य सिर्फ औपचारिकता को पूर्ण करना था। भारतीय क्रांतिकारियों द्वारा इस रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया गया।

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जलियांवाला बाग हत्याकांड, क्या कहते है स्वतंत्र स्रोत एवं तथ्य

जलियांवाला बाग हत्याकांड में शहीदो की वास्तविक सँख्या को लेकर प्रायः सवाल भी उठते रहते है। ब्रिटिश सरकार द्वारा आधिकारिक रिपोर्ट में इस हत्याकांड में शहीद होने वाले नागरिकों को सँख्या 379 बताई गयी है एवं 200 लोगो के घायल होने का वर्णन किया गया है। डिप्टी कमिश्नर कार्यालय में 484 शहीदों की सँख्या दर्ज है जबकि जलियांवाला बाग में मौजूद स्मारक में 388 शहीदों की सूची दी गयी है। जलियांवाला बाग हत्याकांड की जाँच हेतु कांग्रेस समिति द्वारा मदन मोहन मालवीय की अध्यक्षता में भी कमेटी का गठन किया गया था जिसके अन्य सदस्य मोतीलाल नेहरू, महात्मा गाँधी, अब्बास तैयबजी, आर.सी. दास एवं के. संथम थे। Jallianwala Bagh Hatyakand द्वारा कांग्रेस समिति द्वारा जारी रिपोर्ट के अनुसार इस हत्याकांड में 1,200 से भी अधिक लोग मारे गए थे। अन्य अनधिकारिक स्रोतों के अनुसार भी इस हत्याकांड में मरने वालों का आँकड़ा 1000 से अधिक था।

जनरल डायर की हत्या

जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश सरकार की लीपापोती एवं इस घटनाक्रम के दोषी जनरल डायर के खिलाफ कोई कार्यवाही ना करने के कारण पंजाब के सुनाम में जन्मे सरदार ऊधम सिंह द्वारा इस घटनाक्रम का बदला लेने का निश्चय किया गया एवं वे अपना नाम बदलकर ब्रिटेन चले गए। वर्ष 1940 में लंदन के केक्सटन हॉल में ऊधम सिंह द्वारा जनरल डायर को गोली मार दी गयी एवं इस जघन्य हत्याकांड का बदला ले लिया गया। इस घटना के पश्चात ऊधम सिंह को फाँसी की सजा दी गयी थी। इस प्रकार भारत माता का यह वीर सपूत देश की स्वतंत्रता की खातिर फाँसी के फंदे पर लटक गया।

Jallianwala Bagh Hatyakand से सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

जलियांवाला बाग हत्याकांड (JALLIANWALA BAGH MASSACRE) क्या है ?

Jallianwala Bagh Hatyakand भारत के स्वतंत्रता इतिहास के सबसे काले अध्यायों में शामिल है। पंजाब के अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रैल 1919 को घटित जलियांवाला बाग हत्याकांड में ब्रिटिश अधिकारी जनरल डायर द्वारा हजारों निहत्थे लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया था। भारतीय इतिहास में इस घटना को सर्वाधिक वीभत्स घटनाओ में शामिल किया जाता है।

जलियांवाला बाग हत्याकांड (JALLIANWALA BAGH MASSACRE) कब हुआ था ?

जलियांवाला बाग हत्याकांड 13 अप्रैल 1919 को बैशाखी के दिन अमृतसर के जलियांवाला बाग में घटित हुआ था जिसमे ब्रिटिश सरकार द्वारा हजारों निर्दोष नागरिकों को हत्या कर दी गयी।

जलियांवाला बाग हत्याकांड का मुख्य कारण क्या था ?

ब्रिटिश सरकार द्वारा रौलेट एक्ट (Rowlatt Act) का विरोध प्रदर्शन करने के कारण पंजाब के लोकप्रिय राष्ट्रवादी नेताओ सैफुद्दीन किचलू और डॉ. सत्यपाल को नजरबंद किया गया था जिसके कारण आक्रोश भड़क उठा। पंजाब में व्यवस्था स्थापित करने के लिए ब्रिटिश सरकार द्वारा कर्फ्यू लागू कर दिया गया। ब्रिटिश सरकार के अनुसार कर्फ्यू के उल्लंघन के परिणामस्वरूप जलियांवाला बाग हत्याकांड घटित हुआ था।

जलियांवाला बाग हत्याकांड में कुल कितने लोग मारे गए थे ?

जलियांवाला बाग हत्याकांड में सरकारी रिपोर्ट के अनुसार 379 लोग मारे गए थे। हालाँकि अनधिकारिक एवं अन्य स्रोतों के अनुसार इस घटना में शहीद होने वाले नागरिको की सँख्या 1,000 से भी अधिक थी।

ब्रिटिश सरकार द्वारा जलियांवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए किस कमीशन की नियुक्ति की गयी ?

ब्रिटिश सरकार द्वारा जलियांवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए हंटर कमीशन (Hunter Commission) का गठन किया गया।

जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी जनरल डायर की हत्या किसके द्वारा की गयी थी ?

जलियांवाला बाग हत्याकांड के दोषी जनरल डायर को वर्ष 1940 में लंदन के केक्सटन हॉल में ऊधम सिंह द्वारा गोली मारी गयी थी।

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