आप सभी यह तो जानते ही है की भारत देश में बहुत से वीरों का जन्म हुआ है। इसलिए इस भारत देशज को वीरों की जन्मभूमि भी कहा जाता है। ऐसे ही एक वीर थे जिन्होंने भारत माता की रक्षा के लिए अपनी जान गवा दी थी। परन्तु वह इतने वीर थे की उनके नाम से सभी मुग़ल काँप जाते थे। भारत के उस वीर का नाम महाराणा प्रताप था। इनका नाम भारत के महान योद्धाओं में गिना जाता है। इनके पास एक घोडा भी था जिसका नाम चेतक था। वह हवा की भांति दौड़ता था मानो जैसे हवा से बायत कर रहा हो। तो दोस्तों क्या आप इनके बारे में जानते है अगर नहीं तो आपको चिंता करने की कोई भी आवश्यकता नहीं है क्योंकि आज हम आप सभी को इस लेख के जरिये महाराणा प्रताप व चेतक के इतिहास के बारे में बताने वाले है।
तो दोस्तों अगर आप भी महाराणा प्रताप व उनके घोड़े चेतक के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करना चाहते हो तो उसके लिए आपको हमारे इस लेख को अंत तक ध्यानपूर्वक पढ़ना होगा तब ही आप उनके इतिहास के बारे में जान सकोगे। तो दोस्तों कृपया कर इसे पूर्ण पढ़े।
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महाराणा प्रताप व चेतक का इतिहास | History of Maharana Pratap and Chetak
महाराणा प्रताप जी का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था। इनका जन्म भारत के उत्तर दक्षिण भाग में मेवाड़ राज्य में हुआ था। आज के समय भी 9 मई को प्रति वर्ष महाराणा प्रताप जी की जयंती के रूप में मनाया जाता है। इनके पिता पिता का नाम राणा उदय सिंह था और इनकी माता का नाम था महारानी जयवंता बाई था। इनके पिता उदयपुर के राजा थे। महाराणा प्रताप जी की पहली पत्नी का नाम अजबदे पुनवार था और अजबदे पुनवार सहित इनकी 11 और रानिया थी। महाराणा प्रताप के दो पुत्र भी जिनका नाम अमर सिंह और भगवान दास था। प्रताप के निधन के बाद इनके पुत्र अमर सिंह ने इनकी राजगद्दी संभाली थी।
क्योंकि पुराने समय में राजाओं की बहुत सी रानियाँ हुआ करती थी इसलिए राणा उदय सिंह की भी एक से अधिक रानिया थी। उदय सिंह अपनी बाकी पत्नियों में से सबसे अधिक प्रिय रानी धीर बाई को मानते थे। धीर बाई और राणा उदय सिंह के बेटे का नाम जगमाल राणा था। धीर बाई यह चाहती थी की उनका बीटा जगमाल राणा ही रना उदय सिंह के बाद उस पद पर बैठे। केवल यह ही नहीं बल्कि राणा उदय सिंह के और भी पुत्र थे जिनका नाम शक्ति सिंह और सागर सिंह था। राणा उदय सिंह के यह दोनों पुत्र भी उत्तराधिकारी बनना चाहते थे। लेकिन राणा उदय सिंह और उनकी प्रजा महाराणा प्रताप को ही अगला राजा मानती थी।
यह ही वजह थी की महारणा प्रताप के तीनों भाई उनसे नफरत करते थे। उस समय देश पर मुग़लों का राज था और उस समय मुग़लों का राजा अकबर था। उस बारे में अकबर को खबर मिली थी जिसका लाभ उठाकर मुग़लों ने चित्तोड़ राज्य पर अपनी हुकूमत जमाई थी। मुग़लों के डर के कारण बहुत से राजपूत अपने हथियार त्याग चुके थे और उन्होंने अकबर के आगे अपने घुटने तक दिए थे। उसके बाद वह सभी अकबर के अधीन कार्य करने लगे थे। जिसकी वजह से मुग़ल पहले से भी अधिक ताकतवर हो चूका था। लेकिन तब भी महाराणा प्रताप ने बहादुरी के साथ मुग़लों का मुक़ाबला किया। महाराणा प्रताप और उनके पिता मुग़लों से हार मानने को तैयार नहीं थे।
क्योंकि राणा उदय सिंह के परिवार में आपसी माध भेद चल रहे थे इसी कारण महाराणा प्रताप और राणा उदय सिंह अपना चित्तोड़ का किला मुग़लों से हार चुके थे। लेकिन राणा उदय सिंह और महाराणा प्रताप दोनों ही अपनी प्रजा को प्रिय मानते थे इसलिए उन्होंने किला छोड़ दिया फिर उन वह दोनों कीलें से बाहर निकल गए और फिर उन्होंने अपनी प्रजा की रक्षा बाहर से की थी। उसके बाद वह अपनी प्रजा और परिवार के साथ वापस उदयपुर चले जाते है और उदयपुर को वापस से खुशाल राज्य बनाते है और वह अपनी प्रजा की रक्षा भी करते थे।
महाराणा प्रताप के खिलाफ राजपुताना | Rajputana against Maharana Pratap
जैसा की हमने आपको बताया है की बहुत से राजपूत ने डर के कारण अकबर से हाथ मिला लिया था और कई राजपूतो ने लालच के कारण भी अकबर से हाथ मिला लिया था। जिस प्रकार से अकबर ने बाकि राजपूतों को अपने आधीन कर लिया था उसी प्रकार से अकबर महाराणा प्रताप के पिता यानि के राणा उदय सिंह को भी अपने आधीन करना चाहता था। उसके बाद अकबर ने राजा मान सिंह को अपनी ध्वज तल सेना का सेनापति बना दिया था। और राजा भगवान सिंह जो की तोडरमल के राजा था उनसे भी हाथ मिलाया था। उसके बाद अकबर ने 1576 में महाराणा प्रताप और राणा उदय सिंह के खिलाफ युद्ध छेड़ दिया। उस युद्ध को हल्दी घाटी युद्ध के नाम से भी जाना जाता है।
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हल्दी घाटी युद्ध | Haldi Ghati War
आप सभी इस युद्ध के बारे में तो जानते ही होंगे इस युद्ध को इतिहास के सबसे बड़े व भयानक युद्ध में से एक माना जाता है। इस युद्ध में राजपूत और मुग़लों के बीच में काफी भयानक युद्ध छिड़ा था। इस युद्ध के दौरान महाराणा प्रताप का साथ बहुत से राजपूतों ने छोड़ दिया था और वह सभी अकबर के आधीन हो गए थे परन्तु महाराणा प्रताप ने ऐसा नहीं किया वह जुटे रहे।
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फिर उसके बाद जब यह युद्ध छिड़ा तब उस समय राजा मान सिंह ने भी अकबर का साथ दिया और उन्होंने अकबर के करीब 5000 सेनिको का नेतृत्व किया। राजा मान सिंह ने हल्दी घाटी पर पहले से ही 3000 सेनिको को तैनात किया हुआ था उसके बाद उन्होंने युद्ध का बिगुल बजाय। लेकिन उसी और महाराणा प्रताप का साथ कई अफगानी राजाओं ने दिया। महाराणा प्रताप का आखरी दम तक साथ देने वाले अफगानी राजा का नाम हाकिम खान सुर था। यह युद्ध काफी भयानक था और इसलिए यह युद्ध कई दिनों तक चला था। ताकि मेवाड़ के लोगो को हानि न पहुंचे इसलिए महाराणा प्रताप ने वहां की प्रजा को अपने कीलें में जगह दी और सभी लोग मिलकर साथ रह रहे थे।
इस युद्ध में उस राज्य के सभी लोगो ने मिलकर एकता के साथ महाराणा प्रताप का साथ दिया था। उनकी इस एकता और ताकत को देखकर अकबर भी राजपूतों की तारीफ करने लगा था। लेकिन प्रताप के राज्य में अन्न की अधिक कमी होने के कारण वह इस युद्ध को जीतने में असफल रहे। जब वह युद्ध हार गए तो उस दिन सभी राजपूतों की महिलाओं ने जोहर प्रथा को अपनाया और उन सभी महिलाओं ने अपने शरीर को आग को सौंप दिया और उन सभी ने आत्मदाह कर लिया। बाकी के लोगो ने युद्ध में लड़कर अपनी जान दे दी। राज्य के सभी बड़े अधिकारीयों ने राणा उदय सिंह, महारानी धीर बाई जी और जगमाल के साथ प्रताप के पुत्र को पहले ही चित्तोड़ राज्य से दूर भेज दिया था।
युद्ध के एक दिन पूर्व महाराणा प्रताप और उनकी पत्नी अजब्दे को नींद की दवा देकर उनको बेहोश कर दिया था और उन्होंने उन दोनों को गुप्त द्वारा से महाराणा प्रताप को भी उस राज्य से निकाल दिया था। उन्होंने ऐसा इसलिए किया ताकि महाराणा प्रताप वापस मुग़लों से बदला ले सके और ताकि राजपूत वंश खत्म न हो। युद्ध खत्म होने के बाद जब मुग़ल उनके कीलें पर पहुंचे तब उन्होंने महाराणा प्रताप को ढूंढा पर वह नहीं मिले उसी इस प्रार उनका सपना पूरा न हो सका। उसके बाद महाराणा प्रताप जंगल में जीवन व्यतीत करने लगे। उन्होंने एक नया साम्राज्य बनाया ओर उस साम्राज्य का नाम उन्होंने चांवड रखा।
प्रताप और चेतक के सम्बन्ध | Relationship between Maharana Pratap and Chetak
Maharana Pratap के प्रिय घोड़े का नाम चेतक था। चेतक बहुत ही वफादार और बहादुर और बहुत ही ताकतवर होता है। चेतक नीले रंग का घोडा था और चेतक एक अफगानी घोडा था। चेतक ने महाराणा प्रताप का बहुत साथ दिया था। महाराणा प्रताप भी चेतक को अपने पुत्र की तरह प्रेम करते थे। एक बार की बात है महाराणा की पिता ने उनको अपने पास बुलाया था। जब प्रताप वहां पर पहुंचे तो वहां पर दो घोड़े थे एक सफ़ेद रंग का और एक नीले रंग का और उनके पिता ने उनसे पुछा की तुम्हे कौनसा घोड़ा पसंद है उसका चयन करो लेकिन उस समय प्रताप के भाई शक्ति सिंह भी वहा पर मौजूद थे और उन्होंने कहा की उन्हें भी घोडा चाहिए।
लेकिन Maharana Pratap को नीले रंग का घोडा यानोई के चेतक पसंद आ चूका था लेकिन उन्होंने उस समय सफ़ेद घोड़े की झूटी तारीफ़ की ताकि उनका भाई उस घोड़े के लेले इसलिए ओर वैसा ही हुआ उनके भाई ने सफ़ेद घोड़े को चुन लिया और नीले घोड़े को महाराणा प्रताप को सौंप दिया गया। चेतक को पाकर महाराणा प्रताप बहुत ही प्रश्न हुए। चेतक ने कई बार महाराणा प्रताप का साथ दिया और उन्होंने चेतक के साथ बहुत से युद्ध भी जीते थे। लेकिन हल्दी घाटी के युद्ध के दौरान चेतक के रस्ते में एक बड़ी करीब 21 फ़ीट चौड़ी लम्बी नदी को चेतक कूद के पार करता है।
लेकिन कूदते ही चेतक घायल हो जाता है और थोड़ी ही दूरी पर उसकी मृत्यु हो जाती है। 21 जून 1576 को चेतक की मृत्यु हो जाती है और वह प्रताप से अलग हो जाता है। लेकिन उसके बाद भी प्रताप हेतैक से बहुत प्रेम करते थे। आपको यह भी बता दे की आज के समय में भी हल्दीघाटी में राजसमंद में चेतक की समाधी बनायीं हुई है लोग उसको उसी प्रकार देखते है जिस प्रकार महाराणा प्रताप की मूर्ति को।
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महाराणा प्रताप की मृत्यु | Death of Maharana Pratap
एक बार जंगल में शिकार खेलते हुए Maharana Pratap घायल हो जाते है और फिर वह उससे उभर नहीं पते है और 29 जनवरी 1597 के दिन उनकी मृत्यु हो जाती है। जिस समय उनकी मृत्यु होती है उस समय उनकी आयु 57 वर्ष की होती है। आज के समय में भी महाराण प्रताप की समाधी बनायीं गयी है। उस दिन लोग उनकी समाधी पर लोग श्रद्धापूर्वक फूल अर्पित कर उनको याद करते है।
क्योंकि महाराणा प्रताप का जन्म जन्म ज्येष्ठ माह की शुक्ल पक्ष की तीज को हुआ था इसलिए हर वर्ष इसी दिनको उनकी जयंती के रूप में मनाया जाता है। 2023 में भी महाराणा प्रताप की जयंती 9 मई को मनाई जाएगी।
महाराणा प्रताप से सम्बंधित प्रश्न और उनके उत्तर
Maharana Pratap के पिता का नाम राणा उदय सिंह था।
Maharana Pratap का जन्म 9 मई 1540 को हुआ था।
हल्दीघाटी युद्ध 1576 में हुआ था।
चेतक नीले रंग का घोडा था।
Maharana Pratap की मृत्यु 29 जनवरी 1597 को हुई थी