होलिका दहन का उत्सव होली के पहले दिन मनाया जाता है। वैसे तो हिन्दू धर्म सभी त्यौहार किसी न किसी दैविक कथाओं से या ऋतुओं से जुडी होती हैं । होली सभी त्योहारों में से एक खास त्यौहार माना जाता है। क्योंकि होली को लोग बुराई पर जीत के तौर पर भी मानते हैं। होली के एक दिन पहले होलिका दहन का कार्यक्रम होता है। जो की बहुत ही सभी लोगों द्वारा बहुत धूम-धाम व हर्षोल्लास से मनाया जाता है। होलिका पर सभी लोग लकड़ियों उपलों व सजावट के लिए रंगीन कपड़ों को लगा कर रखते हैं। होलिका दहन के लिए लोग कई दिन पहले से तैयारी करने में जुटे होते हैं, व होलिका दहन वाले दिन सभी लोग एकत्रित होकर सभी बुराई व सभी अपनी इच्छाओं को ईश्वर के समक्ष रख कर सभी के अच्छे के लिए प्रार्थना कर होलिका दहन करते हैं। आगे जानिए होलिका दहन पर निबंध के बारे में विस्तार से।
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होलिका दहन पौराणिक कथा (Holika Dahan Mythology)
हिन्दू धर्म में लगभग हर त्यौहार किसी न किसी पौराणिक घटना व ऋतु से अवश्य ही संबंधित होता है। इसी प्रकार होली को मनाने की भी अलग अलग मान्यताएँ हैं।
होलिका की ऋतु संबंधित कथा होली फाल्गुन महीने की पूर्णिमा को होती है जब की शरद ऋतु समाप्त हो रही होती है, व ग्रीष्म ऋतु आरम्भ होने वाली होती है। इसके मध्य में ही होली मनाई जाती है। ऋतु के आधार पर होली की ऐसी मान्यता है, की इस ऋतु की सभी फसलें इस समय तक पक जाती हैं। तो इन सभी फसलों से उपजे अन्न का सबसे पहले भगवान को भोग लगाया जाता है। इसके पश्चात ही इसका उपयोग किया जा सकता है। इसलिए होलिका दहन में सभी नई फसल के अन्न का कुछ हिस्सा पहले अग्नि को चढ़ाया जाता है। व इसके बाद इसके प्रसाद को सभी लोगो में वितरित किया जाता है।
होलिका की पौराणिक कथा होलिका दहन पौराणिक कथा के आधार पर भी मनाई जाती है। होलिका नाम की राक्षसी की मृत्यु इस दिन होने पर लोग इसको बुराई की विजय के तौर पर भी जानते हैं। इसी कारण इस त्यौहार कानाम होलिका पड़ गया। होलिका सतयुग में हिरण्यकश्यप नाम के एक अभिमानी राजा की बहन थी। जो राजा की अपनी दानवीय शक्तियों के अहंकार मे डूब कर स्वयं को सबसे शक्तिशाली समझने लगा था। व अपनी प्रजा व सभी से ईश्वर की जगह अपनी पूजा करवाता था। किन्तु हिरण्यकश्यप का बेटा प्रहलाद जो की भगवान विष्णु का भक्त था उसने यह करने से मना किया व अपने पिता से भी भगवान की शरण में जाने को कहा। व बताया की संसार में ईश्वर केवल वही हैं। इस प्रकार हिरण्यकश्यप ने अपने बेटे के ही द्वारा उसकी बात न मानने पर व विष्णु भक्त होने पर अपना अपमान समझ कर। प्रहलाद को कई प्रकार की पीड़ा दी। मारने की योजनाए बनाई। किंतु हमेशा ही भगवान विष्णु अपने भक्त की रक्षा करते।
अतः अंत में हिरण्यकश्यप ने अपनी सारी योजनाओं से भी प्रहलाद को बचते देख कर अपनी बहन होलिका से कह कर प्रहलाद को अग्नि में जलने का षड़यंत्र रचा। होलिका जिसको की अग्नि में न जलने वाली कंबल वरदान स्वरूप ईश्वर से प्राप्त हो रखा था। इस प्रकार होलिका व हिरण्यकश्यप ने प्रहलाद को जला कर मारने के लिए चिता तैयार करवाई व होलिका इस चिता पर प्रहलाद को लेकर बैठ गई। हिरण्यकश्यप जनता था की होलिका के पास यह कम्बल होते हुए उसको किसी प्रकार की हानि नहीं होगी किन्तु चिता में आग लगते ही क्षण वह कंबल होलिका के शरीर से उड़ कर प्रहलाद से चिपक जाती। व उसी समय अग्नि की लपटों में होलिका भस्म हो जाती है।
इसके पश्चात भगवान नरसिंह रूप में महल के स्तम्भ को चीर प्रकट होते हैं। व हिरण्य कश्यप को कहते हैं की उनका वास हर स्थान पर है। अब तुम अपने काल को देखो। व वह महल के द्वार पर हिरण्यकश्यप को अपने जाँघ में रखकर दो भागों में चीर देते हैं। क्योंकि हिरण्यकश्यप को भगवान ब्रह्मा से वरदान प्राप्त था की न तो वह दिन में मरेगा ना ही रात व न तो जमीन पर न आकाश में और ना ही कोई ईश्वर उसको मार सकेगा न कोई मनुष्य व ना कोई जानवर न ही कोई राक्षस। इसलिएभगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लेकर हिरण्यकश्यप का वध किया व प्रहलाद की रक्षा की। इसलिए होलिका को बुराई पर अच्छाई की जीत के रूप में मनाई जाने लगी।
होली पर निबंध | Holi Essay in Hindi
होलिका दहन की परम्परा व रिवाज (Tradition and custom of burning Holika)
होलिका दहन के लिए इसकी तैयारियां कई दिन पहले से शुरू हो जाती है। चाहे गांव हो या शहर सभी लोग होलिका के लिए लकड़ियां व उपले सब जमा करने लगते हैं। होलिका देखने के लिए सभी लोग एक स्थान पर एकत्रित हो जाते हैं व होलिका जलने के बाद सब लोगों में प्रसाद बाँटा जाता है। सभी लोग ईश्वर से प्रार्थना के बाद आपस में मिलकर उन सभी चीज़ों को इस आग में भस्म कर देते हैं जिको की वे अशुद्ध या बेकार समझते हैं। क्योंकि अग्नि किसी भी बुरी वस्तु या शक्ति का नाश कर सकती है। व चारों और केवल प्रकाश कर देती है, व होलिका के जलने के बाद इसकी भस्म को लोग अपने पास रखते हैं तथा लोग इसको बुरी शक्तियों से बचने के लिए अपने माथे पर यह भस्म लगाते भी हैं। इस प्रकार होलिका दहन हर वर्ष धूम धाम से होता है।
होलिका दहन का आधुनिक तरीका (Modern method of Holika Dahan)
होलिका दहन करने के पुराने ढंग में व इस समय में काफी बदलाव हो चुके हैं। जैसे पुराने समय में लोग अलग अलग मान्यताओं के आधार पर होलिका जलाते थे। किन्तु वर्तमान समय में लोग केवल मनोरंजन आदि के लिए यह करते है, पहले समय में लोग छोटी छोटी होलिका जलाते थे जिसमे केवल लकड़ियां, उपले, या फिर घास-फूस होती थी लेकन आज के समय में लोग लकड़ी प्लास्टिक, रबड़, खरब पुराने कपड़ों का प्रयोग करते हैं। व बहुत बड़ी बड़ी होलिकाएँ बनाते हैं। व कभी कभी तो इनकी लपटें हवा के वेग से इधर उधर बह कर आग भी लग जाती है। इसका केवल यही अर्थ है, की इस समय में लोग केवल मनोरंज के लिए ही यह सब करते हैं
होलिका दहन का महत्व (Significance of Holika Dahan)
होलिका दहन के उत्सव का हम सभी के लिए एक अलग ही महत्व रखत है। इस त्योहार से सिख मिलती है की भले ही बुराई कितनी भी शक्तिशाली क्यों न हो लेकिन जीत केवल अच्छाई की होती है। व हमको अपनी शक्तियों व योग्यताओं पर किसी भी प्रकार का अहंकार नहीं करना चाहिए। जो व्यक्ति बुरे मार्ग पर चलते हैं व स्वयं से कमज़ोर लोगो पर अत्याचार करते हैं। उनका अवश्य ही नाश होता है। इसलिए हमको सदैव ही सदमार्ग पर चलना चाहिए।
होलिका दहन पर निबंध से सम्बंधित प्रश्न
होलिका हिरण्यकश्यप की बहन थी जिन्हें वरदान था कि वो आग में जल नहीं सकती। इसलिए हिरण्यकश्यप के कहने पर होलिका प्रह्लाद को लेकर गोद में बैठी जिसमें होलिका जल गयी और प्रह्लाद बच गया क्योंकि वह भगवान् विष्णु का भक्त था और उसपर विष्णु जी का आशीर्वाद था।
होलिका प्रह्लाद की बुआ थी और हिरण्यकश्यप की छोटी बहन थी। होलिका को भगवान शिव से वरदान के रूप में एक वस्त्र मिला था जिसे पहनकर वो कभी भी जल नहीं सकती थी। पर प्रह्लाद को मारने के इरादे से होलिका की मृत्यु हुई।
होली के त्यौहार को विभिन्न प्रकार के रंगों से मनाया जाता है, जिसे सभी लोग बड़े प्यार से मनाते हैं, बिना किसी भेद-भाव व भाईचारे के साथ इस त्यौहार को खेला जाता है। होली में नकारात्मक विचारों और वस्तुओं का दहन करके भीतरी और बाहरी पवित्रता की स्थापना होती है।