देश की राजनीति में हमे विभिन मौकों पर चुनावों के पश्चात जनप्रतिनिधियों (सांसद एवं विधायक) द्वारा एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने की घटनाएँ दिखाई देती है। किसी पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर किसी अन्य पार्टी को ज्वाइन कर लेना भारतीय राजनीति में आम घटनाएँ है ऐसे में देश के आम वोटर अपने को ठगा हुआ सा महसूस करते है। हालांकि इसके लिए भारतीय संसद द्वारा दल-बदल अधिनियम का प्रावधान किया गया है जिसके माध्यम से ऐसी घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सके। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम भारतीय राजनीति के इसी महत्वपूर्ण टॉपिक पर चर्चा करने वाले है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले है की दल-बदल अधिनियम क्या है (anti-defection law) एवं दल-बदल अधिनियम कब लागू होता है ? साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आपको दल-बदल अधिनियम (Defection Act in Hindi) सम्बंधित सभी महत्वपूर्ण प्रावधानों की जानकारी भी प्रदान की जाएगी।
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दल-बदल अधिनियम क्या है ?
दल-बदल अधिनियम (anti-defection law) भारतीय संविधान द्वारा वर्ष 1985 में संविधान में शामिल किया गया कानून है जिसके तहत जनप्रतिनिधियों (सांसद एवं विधायक) को दल बदलने अर्थात एक पार्टी से दूसरी पार्टी को ज्वाइन करने पर रोक लगायी गयी है। दल-बदल अधिनियम के अंतर्गत किसी एक पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़कर निर्वाचित होने के पश्चात दूसरी पार्टी को ज्वाइन करने वाले जनप्रतिनिधियों की अयोग्यता से सम्बंधित प्रावधान किए गए है। इसके माध्यम से लोकतांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत निर्वाचित सरकार में स्थिरता लाना एवं जनप्रतिनिधियों को और जनोमुखी बनाना सुनिश्चित किया गया है। दल-बदल अधिनियम के अंतर्गत किसी पार्टी के टिकट पर निर्वाचित जनप्रतिनिधि एवं निर्दलीय जनप्रतिनिधि दोनों शामिल किए गए है।
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दल-बदल अधिनियम, क्यों पड़ी आवश्यकता
वर्तमान समय में हम विभिन जनप्रतिनिधियों को सत्ता के लालच, मंत्रीपद, वित्तीय लाभ एवं अन्य प्रकार के लाभ प्रस्तावों के लिए एक पार्टी से दूसरी पार्टी में जाने की घटनाओं को प्रतिदिन देखते है। जनप्रतिनिधि द्वारा चुनाव एक पार्टी के टिकट पर लड़ा गया एवं इसके बाद जनप्रतिनिधि ने अपनी पार्टी बदल दी, इस प्रकार की घटनाएँ चुनावों के पश्चात आम है। हालांकि दल-बदल अधिनियम की शुरुआत 60 के दशक में हुयी थी जब दल-बदल की राजनीति अपने जोरों पर थी।
वर्ष 1967 में हरियाणा से विधानसभा सदस्य विधायक ‘गया लाल’ द्वारा एक दिन में ही 3 पार्टी बदलने के कारण उस दौर में ‘आया राम, गया राम’ कहावत मशहूर थी यही कारण रहा की सरकारों को अस्थिरता से बचाने एवं दल-बदल को हतोत्साहित करने के लिए वर्ष 1985 में संशोधन के द्वारा संविधान में 10वीं सूची के रूप में दल-बदल अधिनियम जोड़ा गया जिससे की देश में दल-बदल की राजनीति की हतोत्साहित किया गया।
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दल-बदल अधिनियम सम्बंधित मुख्य प्रावधान
भारतीय संसद द्वारा वर्ष 1985 में दल-बदल अधिनियम को भारतीय संविधान में शामिल किया गया था। भारतीय संविधान में दल-बदल अधिनियम को 52वें संविधान द्वारा वर्ष 1985 में जोड़ा गया था जिससे की दल-बदल को हतोत्साहित किया जा सके। भारतीय संविधान की 10वीं अनुसूची दल-बदल अधिनियम से सम्बंधित है जिसके तहत निर्वाचित सदस्यों के दल-बदल सम्बंधित प्रावधानों की विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है। वर्ष 1991 एवं वर्ष 2003 में दल-बदल अधिनियम में संशोधन के माध्यम से इस कानून को और भी मजबूत बनाया गया है।
Anti-defection law कब लागू होता है ?
किसी भी निर्वाचित सदस्य पर दल-बदल अधिनियम निम्न परिस्थितियों में लागू होता है :-
- निर्वाचित सदस्य द्वारा अपनी पार्टी को छोड़ दिया जाए
- निर्दलीय सदस्य द्वारा निर्वाचन के पश्चात कोई राजनीतिक पार्टी ज्वाइन करने पर
- निर्वाचित सदस्य द्वारा अपनी ही पार्टी की नीतियों के खिलाफ हो जाना
- सदस्य द्वारा पार्टी के सचेतक द्वारा जारी निर्देशों का पालन ना करना, पार्टी के निर्देश विरुद्ध मतदान
- मनोनीत सदस्य द्वारा 6 माह पश्चात किसी राजनैतिक पार्टी को ज्वाइन कर लेना
निम्न परिस्थितियों में किसी भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि के विरुद्ध anti-defection law के तहत कार्यवाही की जाती है।
दल-बदल अधिनियम का प्रभाव
दल-बदल अधिनियम के अंतर्गत यदि किसी निर्वाचित जनप्रतिनिधि को दोषी पाया जाता है तो उसके विरुद्ध दल-बदल अधिनियम के अंतर्गत कार्यवाही की जाती है। यदि सम्बंधित जनप्रतिनिधि के विरुद्ध दल-बदल के आरोप सिद्ध हो जाते है तो सम्बंधित जनप्रतिनिधि की सदस्यता को समाप्त कर दिया जाता है। इसके अतिरिक्त वित्तीय लाभ, मंत्रीपद हेतु अनुचित खरीद-फरोख्त के लिए निषेध हेतु भी दल-बदल अधिनियम प्रभावी भूमिका निभाता है।
दल-बदल अधिनियम के अपवाद
दल-बदल अधिनियम के तहत यदि पार्टी के दो तिहाई से ज्यादा जनप्रतिनिधि किसी अन्य पार्टी को ज्वाइन करना चाहते है तो उन पर दल-बदल अधिनियम के तहत कार्यवाही नहीं की जाएगी। साथ ही किसी पार्टी के दो तिहाई सदस्य यदि अपनी स्वतंत्र पार्टी बनाना चाहते तो इस स्थिति में भी उन पर दल-बदल अधिनियम लागू नहीं होगा। वर्तमान समय में दल-बदल अधिनियम में वर्तमान परिस्थितियों के मद्धेनजर पुनः संशोधन की आवश्यकता को महसूस किया जा रहा है।
दल-बदल अधिनियम सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
दल-बदल अधिनियम भारतीय संसद द्वारा वर्ष 1985 में भारतीय संविधान के शामिल किया गया कानून है जिसके तहत निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के दल-बदल को प्रतिबंधित करने हेतु उचित प्रावधान बनाये गए है।
निर्वाचित जनप्रतिनिधियों के मध्य दल-बदल की प्रकृति को हतोत्साहित करने एवं मंत्रीपद, वित्तीय लाभ के लालच एवं हॉर्स ट्रेडिंग जैसी राजनैतिक बुराईयों को दूर करने हेतु दल-बदल अधिनियम को लागू करना आवश्यक है।
दल-बदल अधिनियम को संविधान में वर्ष 1985 में 52वें संविधान संसोधन के द्वारा शामिल किया गया है। दल-बदल अधिनियम के तहत जनप्रतिनिधियों के मध्य वित्तीय लाभ के लिए दल-बदलने की प्रवृति पर अंकुश लगाया गया है साथ ही इसमें जनप्रतिनिधियों के अयोग्यता सम्बंधित प्रावधानों का विस्तृत वर्णन किया गया है।
भारत के संविधान की 10वीं अनुसूची दल-बदल अधिनियम से सम्बंधित है जिसे की वर्ष 1985 में 52वें संविधान संशोधन द्वारा संविधान में शामिल किया गया है।
anti-defection law लागू होने सम्बंधित विस्तृत जानकारी के लिए ऊपर दिया गया लेख पढ़े। यहाँ आपको दल-बदल अधिनियम लागू होने सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है।
दल-बदल अधिनियम के तहत यदि कोई भी निर्वाचित जनप्रतिनिधि दल-बदल अधिनियम के तहत दोषी पाया जाता है तो ऐसी स्थिति में सम्बंधित जनप्रतिनिधि की सदस्यता को समाप्त किया जा सकता है।
हाँ। निर्वाचन के पश्चात किसी पार्टी को ज्वाइन करने पर निर्दलीय जनप्रतिनिधियों पर दल-बदल अधिनियम लागू किया जाता है।