भारत के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर आधुनिक भारत की राजनीति में कांग्रेस पार्टी का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौर में विभिन राजनैतिक, सामाजिक एवं आर्थिक आंदोलनों के माध्यम से कांग्रेस द्वारा देश के स्वतंत्रता आंदोलन को संगठित करने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारत की आजादी के महानायक रहे विभिन महान नेता कांग्रेस पार्टी से जुड़े रहे है। देश की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली कांग्रेस पार्टी का इतिहास विभिन पड़ावों से होकर गुजरा है। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको कांग्रेस पार्टी के इतिहास, कांग्रेस पार्टी के संस्थापक (Congress history in hindi) एवं कांग्रेस पार्टी द्वारा देश के स्वतंत्रता संग्राम में योगदान के बारे में जानकारी प्रदान करने वाले है। साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आपको कांग्रेस के इतिहास सम्बंधित अन्य महत्वपूर्ण बिंदुओं के बारे में भी अवगत कराया जायेगा।
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भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस : Indian National Congress
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में सबसे प्रमुख राजनीतिक पार्टी के रूप में स्थापित कांग्रेस पार्टी देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी में शामिल है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को मुंबई में की गयी थी। भारत के स्वतंत्रता संग्राम के दौर में कांग्रेस पार्टी द्वारा सम्पूर्ण देश की जनता को संगठित करके देश के स्वतंत्रता आंदोलन को राष्ट्रीय आंदोलन बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी गयी थी। देश के स्वतंत्रता आंदोलन के दौर में देश के सभी प्रमुख नेता कांग्रेस पार्टी हिस्सा रहे थे। कांग्रेस पार्टी द्वारा देश के विभिन स्वतंत्रता आंदोलनों का सञ्चालन किया गया था जिसके माध्यम से देश में राजनैतिक एकता का उदय हुआ एवं नागरिको के मध्य स्वतंत्रता आंदोलन जोर पकड़ता गया।
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कांग्रेस द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान स्वदेशी आंदोलन, होमरूल लीग आंदोलन, असहयोग आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन जैसे महत्वपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया गया था जिसके माध्यम से सम्पूर्ण देश में स्वतंत्रता को जनजागृति उत्पन हुयी थी एवं अंतत देश के नागरिको के संघर्ष के माध्यम से अंग्रेजों को भारत को आजादी देनी पड़ी थी।
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने महात्मा गाँधी, सुभाष चंद्र बोस, जवाहरलाल नेहरू, सरदार बल्लभभाई पटेल, बाल गंगाधर तिलक, गोविन्द बल्लभ पंत, लाला लाजपत राय एवं अन्य महत्वपूर्ण नेता कांग्रेस से जुड़े थे। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान कांग्रेस द्वारा राजनैतिक सभाओं, स्वतंत्रता आंदोलनों, अधिवेशनों एवं अन्य जनजागृति के कार्यो से देश की जनता को संगठित किया गया था। देश की स्वतंत्रता के पश्चात भी कांग्रेस का देश की राजनीति पर गहरा प्रभाव रहा है।
कांग्रेस पार्टी की स्थापना कब हुयी ?
देश की सबसे पुरानी राजनैतिक पार्टी के रूप में स्थापित कांग्रेस पार्टी की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी ए. ओ. हयूम (A. O. Hume) द्वारा की गयी थी। कांग्रेस के संस्थापक ए. ओ. हयूम का पूरा नाम एलन ऑक्टेवियन ह्यूम (Allan Octavian Hume) था। कांग्रेस पार्टी की स्थापना में ए. ओ. हयूम का सहयोग करने में भारत के पितामाह कहे जाने वाले दादाभाई नैरोजी एवं दिनशा वाचा का भी योगदान था। ए. ओ. हयूम को Hermit Of Shimla की उपाधि भी दी गयी है।
कांग्रेस का प्रथम अधिवेशन बम्बई के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में व्योमेश चंद्र बनर्जी की अध्यक्षता में सम्पन हुआ था जिसमे कुल 72 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। इसमें सुरेन्द्रनाथ बनर्जी, एस. सुब्रमण्य अय्यर एवं रोमेश चंद्र दत्त प्रमुख प्रतिनिधि थे। कांग्रेस की स्थापना के समय गवर्नर जनरल लॉर्ड डफरिन जबकि भारत सचिव लॉर्ड क्रॉस थे।
क्यों की गयी थी कांग्रेस की स्थापना ?
कांग्रेस का भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। हालांकि कांग्रेस की स्थापना को लेकर विभिन इतिहासकारों द्वारा यह कहा जाता है की ए. ओ. हयूम द्वारा कांग्रेस की स्थापना लार्ड डफरिन की सलाह पर की गयी थी जिसका मुख्य उद्देश्य भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलन के खिलाफ Safety Wall यानी सुरक्षा घेरा तैयार करना था ताकि देश में दुबारा 1857 का संग्राम जैसी घटना की पुनरावृति ना हो। साथ ही इसका उद्देश्य देश में ब्रिटिश राज को भी अक्षुण्ण बनाये रखना था।
प्रारम्भ में यह संगठन अंग्रेज सरकार के अनुरूप संचालित होता रहा परन्तु बाद में इसकी कमान राष्ट्रवादी नेताओ के हाथ में आ गयी एवं यह भारत की आजादी की लड़ाई का सबसे प्रमुख कारक बन गया। हालांकि कांग्रेस की स्थापना को लेकर विभिन इतिहासकारों द्वारा विभिन मत दिए जाते है ऐसे में इसकी स्थापना के उद्देश्य को लेकर किसी भी प्रकार के निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचना संभव प्रतीत नहीं होता।
Congress history in hindi
वर्ष 1885 में स्थापना के पश्चात कांग्रेस द्वारा विभिन कार्यक्रमों के माध्यम से देश की जनता को स्वतंत्रता संग्राम में सहभागिता हेतु तैयार किया जाता रहा। वर्ष 1885 में सिर्फ 72 प्रतिनिधियों के साथ शुरू हुयी कांग्रेस भारत की आजादी तक देश के करोड़ो नागरिको की सहभागिता से देश का सबसे प्रमुख संगठन बन चुका था। कांग्रेस द्वारा आजादी के दौरान ब्रिटिश सरकार की जनहित विरोधी नीतियों का पुरजोर तरीके से विरोध किया गया एवं देश की जनता को औपनिवेशिक शासन के भेदभावपूर्ण नीतियों से जागरूक किया जाता रहा।
कांग्रेस द्वारा देश के विभिन विचारधारा वाले नागरिको को एक मंच पर लाकर देश के स्वतंत्रता आंदोलन को एक विशाल जनांदोलन का रूप प्रदान किया गया एवं अंग्रेजों को देश की धरती को छोड़ने पर मजबूर किया गया। आजादी के आंदोलन के दौरान कांग्रेस द्वारा नरम-दल एवं गरम दल विचारधारा वाले नेताओं के मध्य सेतु के रूप में कार्य किया गया था।
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कांग्रेस द्वारा प्रथम स्वतंत्रता आंदोलन
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस वर्ष 1985 में स्थापना के बाद स्वतंत्रता के आंदोलन में प्रथम बार वर्ष 1907 में वृहद् रूप से सक्रिय हुयी। वर्ष 1905 में गवर्नर जनरल लार्ड कर्जन द्वारा देश के स्वतंत्रता आंदोलन को कमजोर करने के लिए बंगाल विभाजन (Partition of Bengal) की घोषणा की गयी। बंगाल विभाजन के विरोध में कांग्रेस द्वारा स्वदेशी आंदोलन (Swadeshi movement) का ऐलान किया गया। स्वदेशी आंदोलन 7 अगस्त 1905 को कोलकाता के टाउन हाल से शुरू हुआ। इस आंदोलन का मुख्य उदेश्य बंगाल विभाजन को रद्द करना था। कांग्रेस द्वारा स्वदेशी आंदोलन के दौरान पूरे भारत में विभिन जगहों पर धरना प्रदर्शन किए गए साथ ही इस आंदोलन को देशव्यापी स्तर पर पहुंचाया गया।
वर्ष 1907 में स्वदेशी आंदोलन सञ्चालन के तरीके को लेकर कांग्रेस के गरम -दल एवं नरम दल के बीच फूट पड़ गयी। वर्ष 1907 के सूरत अधिवेशन में ही कांग्रेस का प्रथम बार विभाजन हुआ था। इस विभाजन में कांग्रेस के गरम दल का नेतृत्व “लाल-बाल-पाल” की तिकड़ी (बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल) कर रही थी जबकि नरम दल में फिरोजशाह मेहता, गोपाल कृष्ण गोखले एवं दादा भाई नौरोजी शामिल थे। वर्ष 1916 के लखनऊ अधिवेशन में कांग्रेस के दोनों दलों में समझौता हो गया।
20वीं सदी में कांग्रेस द्वारा चलाये गए प्रमुख आंदोलन
वर्ष 1915 में भारत की राजनीतिक पृष्ठभूमि पर महात्मा गाँधी का उदय हुआ। महात्मा गाँधी के उदय के पश्चात कांग्रेस का नेतृत्व अधिकांशता नरम दल विचारधारा वाले नेताओ के हाथों में ही रहा। वर्ष 1916 में बाल-गंगाधर तिलक द्वारा होमरूल लीग आंदोलन की शुरुआत की गयी थी जिसके माध्यम से अंग्रेजों द्वारा भारतीयों के हाथ में शासन की बागडोर सौंपने का अधिकार देने सम्बंधित मांग की गयी थी। इसी आंदोलन के दौरान बाल-गंगाधर तिलक द्वारा प्रसिद्ध “स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं इसे लेकर ही रहूँगा” नारा दिया गया था। भारत की राजनीतिक में गाँधीजी के आगमन के बाद कांग्रेस द्वारा अधिकतर अहिसंक आंदोलनों के माध्यम से देश की स्वतंत्रता सम्बंधित आंदोलन संचालित किए गए थे। गाँधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा 20वीं सदी में चलाये गए प्रमुख आंदोलन निम्न प्रकार से है :-
- चम्पारण सत्याग्रह (Champaran Satyagraha, वर्ष 1917 ) – गाँधीजी द्वारा सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग
- अहमदाबाद मिल मजदूर आंदोलन (Ahmadabad Mill Strike)– वर्ष 1918
- खेड़ा सत्याग्रह (Kheda Satyagraha)- वर्ष 1918
- असहयोग आंदोलन (Non-cooperation movement, वर्ष 1920)- गाँधीजी द्वारा संचालित प्रथम देशव्यापी आंदोलन, वर्ष 1922 में चौरा-चौरी की घटना के कारण स्थगित
- सविनय अवज्ञा आंदोलन (Civil disobedience)- नमक कानून के विरोध में 6 अप्रैल 1930 से प्रारम्भ
- भारत छोड़ो आंदोलन (Quit India Movement)- वर्ष 1942 में गांधीजी के नेतृत्व में कांग्रेस द्वारा अंतिम वृहद् आंदोलन
20वीं सदी में कांग्रेस द्वारा अधिकतर आंदोलन महात्मा गाँधी के नेतृत्व में ही संचालित किए गए। गाँधीजी द्वारा स्वतंत्रता आंदोलन में अहिंसा को प्रमुख तत्त्व माना गया था यही कारण रहा की भारत के अधिकतर स्वतंत्रता आंदोलन अहिंसक ही रहे। हालांकि इसी दौरान कांग्रेस द्वारा अन्य कई प्रमुख आंदोलन भी चलाए गए थे जिनके माध्यम से कांग्रेस द्वारा सामाजिक छुआछूत, अशिक्षा, गरीबी, निर्धनता एवं देश में व्याप्त जातिवाद एवं अन्य सामाजिक बुराईयों को दूर करने के लिए विभिन कार्यक्रम संचालित किए थे।
स्वतंत्रता पूर्व कांग्रेस के अधिवेशन
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान कांग्रेस द्वारा देश के स्वतंत्रता आंदोलनों की रूपरेखा तय करने के लिए वार्षिक रूप से विभिन अधिवेशन आयोजित किए गए थे। यहाँ आपको वर्षवार कांग्रेस के सभी अधिवेशन एवं इससे सम्बंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान की गयी है :-
अधिवेशन वर्ष 1885 से 1901 तक –
अधिवेशन | वर्ष | स्थान | अध्यक्ष |
पहला अधिवेशन | 1885 ई. | बम्बई (वर्तमान मुम्बई) | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
दूसरा अधिवेशन | 1886 ई. | कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) | दादाभाई नौरोजी |
तीसरा अधिवेशन | 1887 ई. | मद्रास (वर्तमान चेन्नई) | बदरुद्दीन तैयब जी (प्रथम मुस्लिम अध्यक्ष) |
चौथा अधिवेशन | 1888 ई. | इलाहाबाद | जॉर्ज यूल ( प्रथम ब्रिटिश अध्यक्ष) |
पाँचवा अधिवेशन | 1889 ई. | बम्बई | सर विलियम वेडरबर्न |
छठा अधिवेशन | 1890 ई. | कलकत्ता | फ़िरोजशाह मेहता |
सातवाँ अधिवेशन | 1891 ई. | नागपुर | पी. आनंद चारलू |
आठवाँ अधिवेशन | 1892 ई. | इलाहाबाद | व्योमेश चन्द्र बनर्जी |
अधिवेशन वर्ष 1893 ई से 1900 तक –
नौवाँ अधिवेशन | 1893 | लाहौर | दादाभाई नौरोजी |
दसवाँ अधिवेशन | 1894 | मद्रास | अल्फ़ेड वेब (कांग्रेस संविधान का निर्माण) |
ग्यारहवाँ अधिवेशन | 1895 | पूना | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
बारहवाँ अधिवेशन | 1896 | कलकत्ता | रहीमतुल्ला सयानी |
तेरहवाँ अधिवेशन | 1897 | अमरावती | सी. शंकरन नायर |
चैदहवाँ अधिवेशन | 1898 | मद्रास | आनंद मोहन दास |
पन्द्रहवाँ अधिवेशन | 1899 | लखनऊ | रमेश चन्द्र दत्त |
सोलहवाँ अधिवेशन | 1900 | लाहौर | एन.जी. चंद्रावरकर |
अधिवेशन वर्ष 1901 से 1908 तक –
सत्रहवाँ अधिवेशन | 1901 | कलकत्ता | दिनशा इदुलजी वाचा |
अठारहवाँ अधिवेशन | 1902 | अहमदाबाद | सुरेन्द्रनाथ बनर्जी |
उन्नीसवाँ अधिवेशन | 1903 | मद्रास | लाल मोहन घोष |
बीसवाँ अधिवेशन | 1904 | बम्बई | सर हेनरी काटन |
इक्कीसवाँ अधिवेशन | 1905 | बनारस | गोपाल कृष्ण गोखले |
बाईसवाँ अधिवेशन | 1906 | कलकत्ता | दादाभाई नौरोजी (स्वराज शब्द का प्रथम प्रयोग) |
तेईसवाँ अधिवेशन | 1907 | सूरत | डॉ. रास बिहारी घोष (कांग्रेस का प्रथम विभाजन) |
चौबीसवाँ अधिवेशन | 1908 | मद्रास | डॉ. रास बिहारी घोष |
अधिवेशन वर्ष 1909 से 1920 तक –
पच्चीसवाँ अधिवेशन | 1909 | लाहौर | मदन मोहन मालवीय |
छब्बीसवाँ अधिवेशन | 1910 | इलाहाबाद | विलियम वेडरबर्न |
सत्ताईसवाँ अधिवेशन | 1911 | कलकत्ता | पंडित बिशननारायण धर |
अट्ठाईसवाँ अधिवेशन | 1912 | बांकीपुर | आर.एन. माधोलकर |
उन्नतीसवाँ अधिवेशन | 1913 | कराची | नवाब सैयद मोहम्मद बहादुर |
तीसवाँ अधिवेशन | 1914 | मद्रास | भूपेन्द्र नाथ बसु |
इकतीसवाँ अधिवेशन | 1915 | बम्बई | सर सत्येन्द्र प्रसन्न सिन्हा |
बत्तीसवाँ अधिवेशन | 1916 | लखनऊ | अंबिकाचरण मजूमदार |
तैतीसवाँ अधिवेशन | 1917 | कलकत्ता | श्रीमती एनी बेसेन्ट |
विशेष अधिवेशन अधिवेशन | 1918 | बम्बई | सैयद हसन इमाम (कांग्रेस का दूसरा विभाजन) |
चौतीसवाँ अधिवेशन | 1918 | दिल्ली | मदन मोहन मालवीय |
पैतीसवाँ अधिवेशन | 1919 | अमृतसर | पं. मोतीलाल नेहरू |
छत्तीसवाँ अधिवेशन | 1920 | नागपुर | सी. वी. राघवचारियार (कांग्रेस संविधान में परिवर्तन) |
विशेष अधिवेशन अधिवेशन | 1920 | कलकत्ता | लाला लाजपत राय |
अधिवेशन वर्ष 1921 से 1933 तक –
सैतीसवाँ अधिवेशन | 1921 | अहमदाबाद | हकीम अजमल ख़ाँ |
अड़तीसवाँ अधिवेशन | 1922 | गया | देशबंधु चितरंजन दास |
उनतालीसवाँ अधिवेशन | 1923 | काकीनाडा | मौलाना मोहम्मद अली |
विशेष अधिवेशन अधिवेशन | 1923 | दिल्ली | मौलाना अबुल कलाम आज़ाद (सर्वाधिक युवा अध्यक्ष) |
चालीसवाँ अधिवेशन | 1924 | बेलगांव | महात्मा गाँधी |
एकतालीसवाँ अधिवेशन | 1925 | कानपुर | श्रीमती सरोजनी नायडू |
बयालीसवाँ अधिवेशन | 1926 | गुवाहाटी | एस. श्रीनिवास आयंगर |
तैंतालिसवाँ अधिवेशन | 1927 | मद्रास | डॉ.एम.ए. अंसारी (पूर्ण स्वाधीनता की मांग) |
चौवालिसवाँ अधिवेशन | 1928 | कलकत्ता | जवाहर लाल नेहरु |
पैंतालिसवाँ अधिवेशन | 1929 | लाहौर | जवाहर लाल नेहरु (पूर्ण स्वराज की मांग) |
छियालिसवाँ अधिवेशन | 1931 | कराची | सरदार वल्लभ भाई पटेल (मौलिक अधिकारों की मांग) |
सैंतालिसवाँ अधिवेशन | 1932 | दिल्ली | अमृत रणछोड़दास सेठ |
अड़तालिसवाँ अधिवेशन | 1933 | कलकत्ता | श्रीमती नलिनी सेनगुप्ता |
अधिवेशन वर्ष 1934 से 1947 तक –
उन्चासवाँ अधिवेशन | 1934 | बम्बई | बाबू राजेन्द्र प्रसाद |
पचासवाँ अधिवेशन | 1936 | लखनऊ | जवाहर लाल नेहरु |
इक्यावनवाँ अधिवेशन | 1937 | फ़ैजपुर | जवाहर लाल नेहरु |
बावनवाँ अधिवेशन | 1938 | हरिपुरा | सुभाष चन्द्र बोस |
तिरपनवाँ अधिवेशन | 1939 | त्रिपुरी | सुभाष चन्द्र बोस |
चौवनवाँ अधिवेशन | 1940 | रामगढ़ | मौलाना अब्दुल कलाम आज़ाद |
पचपनवाँ अधिवेशन | 1946. | मेरठ | आचार्य जे.बी. कृपलानी |
छप्पनवाँ अधिवेशन | 1947 | दिल्ली | राजेन्द्र प्रसाद |
स्वतंत्रता के पश्चात कांग्रेस
वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के पश्चात भारत में कांग्रेस पार्टी की सरकार बनी जिसके पश्चात देश के प्रथम प्रधानमन्त्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बने। इसके पश्चात भारत की राजनीति में कांग्रेस पार्टी का प्रभुत्व रहा है एवं आजादी के पश्चात भारत में अधिकांश समय कांग्रेस पार्टी सत्ताधीन रही है। भारत की आजादी के पश्चात कांग्रेस में विभिन विचारधाराओं वाले नेताओं के द्वारा देश की नीतियाँ तय करके देश के विकास में योगदान दिया गया है। वर्तमान समय में कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) पार्टी का नेतृत्व संभाल रहे है।
कांग्रेस का इतिहास सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
कांग्रेस पार्टी की स्थापना 28 दिसंबर 1885 को ब्रिटिश प्रशासनिक अधिकारी ए. ओ. हयूम (A. O. Hume) द्वारा मुंबई में की गयी थी।
कांग्रेस पार्टी का प्रथम अधिवेशन 28 दिसम्बर 1885 को बंबई (मुंबई) के गोकुल दास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति में हुआ था। इस अधिवेशन की अध्यक्षता व्योमेश चन्द्र बनर्जी द्वारा की गयी थी।
कांग्रेस का इतिहास के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए ऊपर दिया गया लेख पढ़े। यहाँ आपको कांग्रेस का इतिहास सम्बंधित विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है।
कांग्रेस द्वारा देश के स्वतंत्रता संग्राम में स्वदेशी आंदोलन, होमरूल लीग आंदोलन, असहयोग आंदोलन, खिलाफत आंदोलन, सविनय अवज्ञा आंदोलन एवं भारत छोड़ो आंदोलन संचालित किए गए थे। इसके अतिरिक्त कांग्रेस द्वारा विभिन समयांतराल पर अलग-अलग आंदोलनों का संचालन भी किया गया था।
गाँधीजी द्वारा कांग्रेस की अध्यक्षता वर्ष 1924 के बेलगाँव अधिवेशन में की गयी।
कांग्रेस द्वारा वर्ष 1929 में पंडित जवाहरलाल नेहरू की अध्यक्षता में पूर्ण स्वराज की माँग की गयी थी।
कांग्रेस के वर्तमान अध्यक्ष श्री मल्लिकार्जुन खड़गे (Mallikarjun Kharge) जी है।