भारत के स्वतंत्रता संग्राम के आंदोलनों में चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का प्रमुख महत्व है। गांधीजी के मोहनदास करमचंद गाँधी से महात्मा गाँधी बनने में सबसे प्रमुख योगदान चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का ही रहा है चूँकि इस आंदोलन में ही गांधीजी ने सर्वप्रथम बार सत्याग्रह का प्रयोग किया था। वर्ष 1917 में संचालित चंपारण सत्याग्रह का भारत की आजादी के इतिहास में विशेष महत्व है। इसी आंदोलन के माध्यम से प्रथम बार भारत के किसानों ने ब्रिटिश सरकार के शोषण के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की थी। आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको चंपारण सत्याग्रह आंदोलन क्या था (Champaran Satyagraha Movement [History Date] Hindi), इसका इतिहास, कारण एवं परिणाम सम्बंधित जानकारी प्रदान करने वाले है।
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साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से आपको भारत के स्वतंत्रता संग्राम में चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के महत्वपूर्ण प्रभावों के बारे में भी जानकारी प्रदान की जाएगी।
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चंपारण सत्याग्रह आंदोलन क्या था ?
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन वर्ष 1917 में बिहार के चम्पारण जिले में नील कृषको का ब्रिटिश हुक्मरानों एवं शोषक जमींदारों के अत्याचारों एवं शोषण के विरुद्ध संचालित आंदोलन था। इस आंदोलन का नेतृत्व राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा किया गया था। गांधीजी की अफ्रीका यात्रा के पश्चात भारत में यह सत्याग्रह का प्रथम प्रयोग था अतः यह मोहनदास करमचंद गाँधी जी की महात्मा गाँधी बनने की भी शुरुआत थी। भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में चंपारण सत्याग्रह आंदोलन का विशेष महत्व है चूँकि इस आंदोलन के द्वारा ही भारत के निर्धन एवं वंचित वर्ग के किसानो ने सर्वप्रथम बार अपने हको के लिए शोषक वर्ग के खिलाफ आवाज बुलंद की थी।
इसी आंदोलन के फलस्वरूप भारत में अन्य वर्ग के नागरिको को भी अपने हको के लिए ब्रिटिश सरकार के खिलाफ आवाज उठाने के प्रोत्साहन मिला। चंपारण सत्याग्रह आंदोलन में मुख्य योगदान चम्पारण के नील किसान पंडित राजकुमार शुक्ल का था जिन्होंने गांधीजी को इस आंदोलन के लिए प्रेरित किया था। संत राउत भी चम्पारण आंदोलन के प्रमुख किरदार थे।
चंपारण सत्याग्रह आंदोलन, क्या था कारण
ब्रिटिश शासन के अंतर्गत देश के सभी वर्गों के नागरिको की आर्थिक दशा अत्यंत ख़राब थी। बिहार के चम्पारण जिले में रहने वाले निर्धन, भूमिहीन, वंचित कृषको से वहाँ के जमींदारों एवं साहूकारों के द्वारा जबरदस्ती नील की खेती करवाई जा रही थी। नील की खेती करने से ना सिर्फ किसानों की उपजाऊ कृषि भूमि की उर्वरता नष्ट हो रही थी अपितु वे अपने लिए आवश्यक खाद्यान उत्पन करने में भी सक्षम नहीं थे। साथ ही जमींदारों द्वारा किसानों से मनमाने ढंग से फसल की वसूली करने के साथ विभिन नियम कानून भी लागू किये जाते थे जो शोषक प्रकृति के थे। अकाल एवं अन्य प्राकृतिक आपदाओं के समय भी किसानों को किसी प्रकार की रियायत नहीं दी जाती थी। समय पर फसल जमा ना करने वाले कृषको को जमींदार के लठैतों के द्वारा बुरी तरीके से पीटा जाता था।
ब्रिटिश सरकार भी इन कामो में जमींदारों एवं साहूकारों का साथ दे रही थी। यूरोप में नील की अत्यधिक मांग थी एवं नील के निर्यात से ब्रिटिश सरकार को भारी मुनाफा होता था अतः ब्रिटिश सरकार भी प्रत्यक्ष रूप से इन शोषक वर्ग के जमींदारों का साथ दे रही थी। जमींदारों एवं ब्रिटिश सरकार के बढ़ते अत्याचारों से तंग होकर ही चम्पारण के कृषक चंपारण सत्याग्रह आंदोलन के लिए मजबूर हुए।
चंपारण सत्याग्रह, गांधीजी से मुलाकात
चंपारण सत्याग्रह को शुरू करने में चम्पारण जिले के पंडित राजकुमार शुक्ल का विशेष योगदान है जिन्होंने गांधीजी को चम्पारण आने के लिए मनाया एवं नील कृषकों की दशा से गांधीजी को अवगत कराया। वर्ष 1916 में गांधीजी जब कांग्रेस के लखनऊ अधिवेशन में भाग लेने के लिए लखनऊ आये थे तो राजकुमार शुक्ल भी अपनी पीड़ा लेकर गांधीजी से इस समस्या का समाधान माँगने आये थे। गांधीजी ने अपनी कार्य की व्यस्तता के चलते प्रारम्भ में चम्पारण आने से मना कर दिया था परन्तु दृढ निश्चयी कृषक राजकुमार शुक्ल के अत्यधिक आग्रह करने पर गांधीजी चंपारण आने को राजी हुए।
गांधीजी द्वारा कहा गया की वे जल्द ही बिहार का आएंगे परन्तु राजकुमार शुक्ल ने उन्हें एक निश्चित तारीख देने को कहा। इसके बाद जहाँ भी गाँधीजी गए राजकुमार शुक्ल भी उनके साथ गए। अंतत गांधीजी अप्रैल माह में चम्पारण आये।
गाँधीजी का चंपारण आगमन
गांधीजी का चम्पारण आगमन 10 अप्रैल 1917 को हुआ। यहाँ वे भारत के प्रथम राष्ट्रपति एवं विधिवेता डॉ. राजेंद्र प्रसाद, नारायण सिन्हा, ब्रज किशोर प्रसाद एवं रामनाथवी प्रसाद के साथ आये थे। इसके पश्चात उन्होंने यहाँ के किसानों की दशा का अध्ययन करना शुरू किया एवं किसानो पर हो रहे अत्याचारों की पड़ताल करना शुरू किया।
यहाँ से गांधीजी ने बिहार के विभिन नील उत्पादक क्षेत्रों का दौरा करना शुरू किया और नील की खेती के किसानों के जीवन पर पड़ने वाले प्रभाव के बारे में अध्ययन करना शुरू कर किया। इस आंदोलन के दौरान गांधीजी मुजफ्फरपुर का भी दौरा किया किया जहाँ उन्होंने 15 अप्रैल 1917 को प्रोफेसर जे. बी. कृपलानी से भी मुलाकात की। इसके पश्चात मुजफ्फरपुर के वकीलों ने भी गांधीजी का साथ देने की घोषणा की।
चम्पारण में गाँधीजी के प्रति ब्रिटिश शासन का रुख
गाँधीजी के चम्पारण पहुंचने की खबर से ही ब्रिटिश अधिकारियों में हड़कंप मच गया था यही कारण था की गाँधीजी के बिहार आगमन पर ही ब्रिटिश अधिकारी उन्हें बिहार की सीमा से बाहर करना चाहते थे। गाँधीजी के चम्पारण पहुंचने पर सर्वप्रथम तिरहुत डिवीज़न के ब्रिटिश ऑफिसियल कमिश्नर के ऑफिस में पहुंचे। यहाँ ब्रिटिश अधिकारी ने उन्हें परेशान करने की कोशिश की एवं चम्पारण को छोड़कर जाने को कहा। हालांकि गांधीजी इन बातो से विचलित ना होकर चम्पारण की राजधानी मोतिहारी के लिए निकले जहाँ उन्हें कई वकीलों का साथ मिला।
गांधीजी को अब तक हजारों किसान ज्वाइन कर चुके थे यही कारण रहा की उन्हें चम्पारण के डिस्ट्रिक्ट कोर्ट द्वारा समन किया गया एवं चम्पारण छोड़ने का आदेश दिया गया परन्तु गांधीजी ने मानवता की सेवा के लिए चम्पारण छोड़ने से इंकार कर दिया। गाँधीजी का दृढ निश्चय एवं जनता का भारी समर्थन देखकर ब्रिटिश सरकार ने उन्हें चम्पारण में प्रवास की अनुमति दे दी एवं हजारों कृषकों ने भी गांधीजी के इस आंदोलन में साथ दिया।
चम्पारण सत्याग्रह का परिणाम एवं निष्कर्ष
अपने चम्पारण प्रवास के दौरान गांधीजी ने चम्पारण के विभिन कृषको की समस्याओं को सुना एवं उनकी दशा का विश्लेषण किया। हजारों कृषको की कहानी, दस्तावेजों एवं अपने साथियों की मदद से इकठा सबूतों के आधार पर गांधीजी ने लेफ्टिनेंट गवर्नर सर एडवर्ड गेट को नील कृषको की दशा के बारे में अवगत कराया। जिसके पश्चात एडवर्ड गेट द्वारा नील कृषको की दशा के अध्ययन के लिए कमीशन का गठन किया गया जिसमे गांधीजी भी शामिल थे।
इस कमीशन की रिपोर्ट में नील कृषको की दुर्दशा की पुष्टि हुयी एवं सरकार द्वारा चंपारण कृषि विधेयक पास किया गया जिसके माध्यम से कृषको के हितो की रक्षा हेतु दमनकारी व्यवस्था को समाप्त करने, कृषको की उचित मुआवजा देने एवं अन्य राहतो पर सहमति बनी। साथ ही गाँधीजी द्वारा चम्पारण क्षेत्र में अशिक्षा को दूर करने एक लिए भी विभिन प्रयास किया गए जिससे की सभी नागरिको को बेहतर शिक्षा एवं जीवन मिल सके। चम्पारण सत्याग्रह के फलस्वरूप भारत के स्वतंत्रता आंदोलन को तेजी मिली एवं देश के सभी आम नागरिक अपने हितो के लिए लड़ने के लिए प्रेरित हुए। इसी के परिणामस्वरुप ब्रिटिशर्स को 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्र करना पड़ा।
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चम्पारण सत्याग्रह सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)
चम्पारण सत्याग्रह बिहार के चम्पारण जिले के नील उत्पादक कृषको का जमींदारों एवं शोषक वर्ग के प्रति असंतोष के उपजा आंदोलन था जिसका नेतृत्व गांधीजी ने किया था। यहाँ गांधीजी ने प्रथम बार सत्याग्रह का प्रयोग किया था।
चम्पारण सत्याग्रह का नायक चम्पारण सत्याग्रह के लिए गांधीजी को मनाने वाले बिहार के कृषक पंडित राजकुमार शुक्ल को माना जाता है।
चम्पारण सत्याग्रह के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए ऊपर दिया गया आर्टिकल पढ़े। इसके माध्यम से आप चम्पारण सत्याग्रह के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते है।
चम्पारण आंदोलन वर्ष 1917 में गाँधीजी द्वारा संचालित किया गया।
चम्पारण आंदोलन के फलस्वरूप ब्रिटिश सरकार ने नील कृषको की दशा के लिए एक कमीशन का गठन किया जिसके परिणामस्वरूप शोषककारी व्यवस्था को समाप्त कर दिया गया एवं कृषको को विभिन रियायते प्रदान की गयी।