जातिवाद पर निबंध, अर्थ और इतिहास | Casteism Meaning, Definition and history Essay in Hindi

जातिवाद पर निबंध:- भारतीय समाज में जातिवाद लम्बे समय से प्रमुख तत्त्व के रूप में विदयमान रहा है। वास्तव में देखा जाए तो लम्बे समय से भारत की सामाजिक संरचना को जातिवाद की बेड़ियों ने जितना प्रभावित किया है उतना शायद की किसी अन्य कारक ने किया हो। भारतीय समाज में जातिवाद का व्यापक असर देखने को मिलता है यही कारण है सम्पूर्ण भारत में सम्भवता ही कोई ऐसा वर्ग रहा होगा जिसे जातिवाद के पॉश ने अपने बंधन में ना जकड़ा हो। भारतीय संविधान द्वारा भारत को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित किया गया है परन्तु समाज में विभिन भागो में जातिवाद का प्रभाव देखकर यह सब बातें खोखली प्रतीत होती है। भारतीय समाज के अवचेतन मन में गहराई से व्याप्त जातिवाद का समाज के विभिन भागो पर गहरा प्रभाव है ऐसे में इस मुद्दे पर सभी नागरिकों का बात करना आवश्यक है।

भारतीय इतिहास की प्रमुख घटनाएँ

जातिवाद पर निबंध
जातिवाद पर निबंध

आज के इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको बताने वाले है की जातिवाद का अर्थ एवं इतिहास क्या है (Casteism Meaning, Definition and history Essay in Hindi). साथ ही इस आर्टिकल के माध्यम से हम आपको जातिवाद पर निबंध (Essay on Casteism in Hindi) के बारे में भी जानकारी देने वाले है जिससे की आप इस मुद्दे पर प्रभावशाली निबंध की रचना कर सकेंगे।

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जातिवाद पर निबंध, अर्थ और इतिहास (Essay)

प्रस्तावना- हमारे समाज के इतिहास में दीर्घकाल से जातिवाद ने सामाजिक संरचना को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है। वर्तमान समय में भी हमारे समाज में विभिन रूपों में जातिवाद का स्पष्ट प्रभाव दिखाई देता है। भारत की आजादी के 75 वर्ष पूर्ण होने के अवसर पर जहाँ हम आजादी का अमृत महोत्सव मना रहे है वही जातिवाद किसी ना किसी रूप में हमारे देश की तरक्की में बाधा खड़ा करने के लिए आतुर है। देश में आर्थिक व्यवस्था से लेकर व्यक्तिगत एवं सामाजिक व्यवस्था से लेकर राजनीतिक व्यवस्था में जातिवाद एक प्रमुख तत्त्व के रूप में विदयमान रहा है। कुछ समय से राजनीति में जातिवाद के घुसने से इसका स्वरुप और भी जटिल एवं विकृत हो गया है एवं वर्तमान में जाति के आधार पर राजनीति इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है।

मुख्य विषय- जातिवाद भारतीय समाज में लम्बे समय से व्यापत रहा है जिससे की यह कुछ शताब्दी से चर्चा के केंद्र में रहा है। हमारे देश की जाति व्यवस्था दुनिया में विचित्र तरह की सामाजिक संरचना है जहाँ व्यक्ति मानवता के धर्म को भूलकर सिर्फ जाति के आधार पर दूसरे व्यक्ति को देखने लगता है एवं इस प्रक्रिया में नैतिक मूल्यों को भी महत्व नहीं दिया जाता है। हालांकि दुनिया के सभी भागो में मनुष्यो ने जाति व्यवस्था को बनाये रखा है जैसे यूरोप में नस्ल एवं रंग के आधार पर भेदभाव किया जाता है तो अन्य देशो में क्षेत्रीयता एवं अन्य कारकों के आधार पर। भारत में जाति के आधार पर भेदभाव की प्रणाली विकसित हुयी है एवं समय के साथ यह और भी विकृत एवं जटिल हुयी है। यही कारण था है की जातिवाद का विश्लेषण करने के लिए दुनिया के विभिन विद्वानों ने इस प्रणाली का अध्ययन किया है।

जातिवाद के बारे में विभिन विद्वानों ने विभिन तर्क दिए है। “काका कालेकर” के अनुसार जातिवाद शक्तिशाली वर्ग द्वारा किया जाने वाला वह अंधाधुंध अवहेलना हैं जो कि एक स्वस्थ समाज के लिए आवश्यक मूलभूत तत्वों जैसे समानता एवं बंधुत्व को समाप्त करती है वही “के.एम.पणिक्कर” जातिवाद को जाति या उपजाति की राजनीति में अनुदित ईमानदारी बताते है। विभिन पाश्चात्य विद्वानों ने भी जातिवाद के बारे में भिन्न-भिन्न मत प्रस्तुत किए है।

जातिवाद शब्द दो शब्दो जाति+वाद से मिलकर बना है। जाति शब्द जहाँ वंशानुसंक्रमण से जुड़ा वर्ग होता है जो की आर्थिक एवं सामाजिक सम्बन्धो के द्वारा जुड़े होते है। सरल शब्दो में एक ही वंश से जुड़ा विस्तृत वर्ग ही जाति है। वही वाद शब्द का अर्थ है मत या सिद्धांत। इस प्रकार जातिवाद एक निश्चित वर्ग के लोगों का मत या सिद्धांत है जहाँ वे अन्य जातियों से सामाजिक, राजनैतिक एवं आर्थिक आधार पर पृथकता रखकर अपने वर्चस्व को बढाकर अपनी जाति के हितों की पूर्ति करते है।

जातिवाद के उत्पति के बारे में कोई भी निश्चित काल नियत नहीं किया जा सकता परन्तु यह व्यवस्था अस्तित्व में कैसे आयी इस बारे में निश्चित रूप से ही तथ्य प्राप्त किए जा सकते है। प्राचीन भारत में जाति आधारित अर्थव्यवस्था नहीं थी। ऋग्वेद के 10वें मंडल में पुरुषसूक्त में मनुष्य को चार जातियों का वर्णन दिया गया है जो की ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्र है। हालांकि यह याद रखना आवश्यक है की यह विभाजन जाति आधारित ना होकर कर्म आधारित था जिसका अर्थ था की मनुष्य के कार्यों के आधार पर ही उसकी जाति तय की जाती थी ना की उसके जन्म के आधार पर। समय के साथ सामाजिक व्यवस्था में विकृत आती गयी और मनुष्य की जाति का वर्गीकरण उसके कार्य के आधार पर ना होकर जन्म के आधार पर होने लगा। वर्तमान में विदेशी आक्रमकारियों के क्रम में रोटी एवं बेटी जातिवाद के वाहक बन गए एवं यह व्यवस्था मजबूत होती गयी।

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भारत में जातिवाद विभिन स्तर पर देखा जा सकता है। सामाजिक स्तर पर जातिवाद, जातिवाद का सबसे प्रभावी एवं विकृत रूप है जहाँ व्यक्ति की जाति के आधार पर उसके पूरे सामाजिक जीवन को निर्धारित किया जाता है। हमारे समाज के खानपान से लेकर पहनावा एवं रहने के स्थान से लेकर व्यवसाय एवं सामाजिक परम्पराएँ जाति व्यवस्था की देन है। सामाजिक आधार पर जातिवाद के बढ़ने से एक जाति शक्तिशाली होने लगती है फलस्वरूप दूसरी जाति कमजोर एवं वंचित होने लगती है। संसाधनों का शक्तिशाली जाति के हाथ में संकेन्द्रण होने से शक्तिशाली वर्ग शोषक एवं वंचित वर्ग शोषण का शिकार बनने लगता है। इसी कारण से लम्बे समय में समाज में विकृति पैदा होने लगती है।

वर्तमान समय में जातिवाद का जितना प्रभाव देश की राजनीति है उतना सामाजिक क्षेत्र के अलावा शायद ही किसी दूसरे क्षेत्र में हो। संविधान द्वारा भारत को पंथनिरपेक्ष राष्ट्र घोषित करने के पश्चात भी वर्तमान राजनीति में जाति का प्रभाव साफ़ रूप से देखा जा सकता है। राजनेताओं के द्वारा वोटर्स से विकास एवं सामाजिक कल्याण के मुद्दों पर वोट माँगने की बजाय जाति के आधार पर वोट मांगे जाते है। नागरिको द्वारा भी अपनी जाति के नेता को वोट देना हमारे देश में आम बात है। इस प्रकार जाति आधारित राजनीति से पूरे देश में समस्या उत्पन हुयी है।

जातिवाद के परिणामस्वरूप समाज में विभाजन पैदा होता है एवं विभिन वर्गों के बीच दूरी बढ़ने लगती है। जातिवाद की संकीर्ण मानसिकता के फलस्वरूप व्यक्ति मानव जीवन के नैतिक मूल्यों को भूलकर अपने जातीय अभिमान में चूर होकर अपनी जाति को ही सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है एवं व्यक्ति की गरिमा को हानि पहुंचाता है। साथ ही मेरी जाति का व्यक्ति या मेरी जाति की सर्वश्रेष्ठ है जैसी भावनाएँ मनुष्य के हृदय में घर करने लगती है जो की अंतत मानव समाज के लिए ही घातक सिद्ध होती है।

जातिवाद का उदय विभिन कारणों से होता है परन्तु इसमें सबसे प्रमुख हाथ सामाजिक व्यवस्था का रहा है। लम्बे समय से चली आ रही परम्पराओ ने मानव मस्तिष्क में बर्फ की भांति डेरा डाला है जहाँ नवीन विचारों के लिए स्थान नहीं है। जाति व्यवस्था जाति के सम्मान की रक्षा, अपने जाति के लोगो से ही सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक सम्बन्ध रखना, सामजिक दूरी, शिक्षा की कमी, आर्थिक स्थिति एवं अवसरों की कमी के कारण उत्पन होती है। हालांकि इन सभी कारणों के मूल में भी लम्बे समय से व्याप्त सामाजिक व्यवस्था है।

जातिवाद के परिणामस्वरूप समाज में विकृति आ जाती है एवं मानवीय गरिमा के मूल्यों को दरकिनार करके व्यक्ति अपनी जाति को ही सर्वश्रेष्ठ समझने लगता है। इसमें मानवीय गरिमा को हानि पहुँचती है एवं समाज आर्थिक, सामाजिक एवं राजनैतिक आधार पर बंट जाता है। यह व्यवस्था ना सिर्फ मानव समाज को हानि पहुँचाती है अपितु मानव विकास में सबसे बड़ी बाधा के रूप में भी सामने आती है।

उपसंहार- जातिवाद वर्तमान में हमारे समाज का सबसे बड़ा राक्षस है जो की मानवीय मूल्यों को निगलकर हमारे समाज को विकृत कर रहा है। आजादी के बाद हमारे देश के विकास में जातिवाद सबसे बड़ी बाधा उभरकर सामने आयी है जिससे की देश ही विभिन प्रकार से नुकसान उठाना पड़ा है। राजनीति में जातिवाद के वर्चस्व ने सभी वर्गों के समान विकास के अवसरों को हानि पहुंचाई है एवं देश के लोकतंत्र के लिए बड़े खतरे के रूप में खड़ा हुआ है। देश के विकास के लिए एवं समाज के सभी वर्गों को समुचित लाभ देने के लिए आवश्यक है की हम जाति रूपी राक्षस का दहन करें एवं मानवता की भलाई के लिए सभी मनुष्यो से समान व्यवहार कर समाज में समानता को बढ़ावा दे।

इस प्रकार से इस आर्टिकल के माध्यम से आपको जातिवाद के इतिहास एवं प्रभाव पर विस्तृत एवं प्रभावी निबंध की रचना प्रदान की गयी है।

जातिवाद सम्बंधित अकसर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQ)

जातिवाद क्या है ?

जातिवाद वह संकीर्ण विचारधारा है जिसके तहत एक ही जाति से जुड़े लोगो द्वारा अपनी जाति को विभिन मानवीय मूल्यों से ऊपर प्राथमिकता प्रदान की जाती है।

जातिवाद का उदय कब हुआ ?

जातिवाद के उदय के बारे में निश्चित रूप से कुछ नहीं कहा जा सकता है परन्तु यह समय के साथ-साथ विभिन कालखंडो में विकसित हुआ है।

जातिवाद के विषय में विस्तृत जानकारी दे ?

जातिवाद के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त करने के लिए ऊपर दिया गया आर्टिकल पढ़े। इसके माध्यम से आपको जातिवाद के विषय में विस्तृत जानकारी प्रदान की गयी है।

क्या प्राचीन काल में जाति जन्म आधारित होती थी ?

नहीं। प्राचीन काल में जाति जन्म आधारित ना होकर कर्म आधारित होती थी परन्तु समय के साथ इसमें विकृति आने पर जाति जन्म आधारित होने लगी।

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